नैननि पिय मूरति बसै, तेहि रस रहै समाय
ये लच्छन सुनि प्रेम के, और न कछु सुहाय
और न कछु सुहाय, फिरै अपनौ मदमातौ
कुटुम्ब देह सों जाइ, टूटि सबहि बिधि नातौ
जहँ जहँ पिय की बात सुनै, खोजत तिन गैननि
छिन छिन प्रति ध्रुव लेत प्रेम जल भरि भरि नैननि
कहा कहौं गति प्रेम की, बढ़ी चाह की पीर
लोचन भूखे रुप के, भरि भरि ढारत नीर
हिंदी की श्रेष्ठ कविताओं का संग्रह - वीर रस श्रृंगार रस , शिक्षक पर्व दिवस , collection of best hindi poems
शनिवार, 10 दिसंबर 2016
नैननि पिय मूरति बसै,
पाब्लो नेरुदा की कविता "You start dying slowly" का हिन्दी अनुवाद......
नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता
"You start dying slowly" का हिन्दी अनुवाद......
आप धीरे धीरे मरने लगते हैं ,
अगर आप करते नहीं कोई यात्रा ,
अगर आप पढ़ते नहीं कोई किताब ,
अगर आप सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ ,
अगर आप करते नहीं किसी की तारीफ़,
आप धीरे धीरे मरने लगते हैं .
जब आप मार डालते हैं अपना स्वाभिमान ,
जब आप नहीं करने देते मदद अपनी,
न करते हैं मदद दूसरों की,
आप धीरे धीरे मरने लगते हैं .
अगर आप बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
अगर आप नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार ,
अगर आप नहीं पहनते हैं अलग अलग रंग,
या आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान,
आप धीरे धीरे मरने लगते हैं .
अगर आप नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को,
और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को ,
वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें ,
और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को ,
आप धीरे धीरे मरने लगते हैं .
अगर आप नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को
जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
अगर आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को ,
अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का ,
अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को
अपने जीवन में कम से कम एक बार
किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की ...
आप धीरे धीरे मरने लगते हैं...✍
महादेवी वर्मा* की सुंदर पंक्तिया
*महादेवी वर्मा* की सुंदर पंक्तियाँ
आ गए तुम?
द्वार खुला है, अंदर आओ..!
पर तनिक ठहरो..
*ड्योढी पर पड़े पायदान पर,*
*अपना अहं झाड़ आना..!*
मधुमालती लिपटी है मुंडेर से,
*अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना..!*
तुलसी के क्यारे में,
*मन की चटकन चढ़ा आना..!*
*अपनी व्यस्ततायें,*बाहर खूंटी पर ही *टांग आना..!*
जूतों संग, *हर नकारात्मकता उतार आना..!*
बाहर किलोलते बच्चों से,
*थोड़ी शरारत माँग लाना..!*
वो गुलाब के गमले में,
*मुस्कान लगी है..*
*तोड़ कर पहन आना..!*
लाओ, *अपनी उलझनें मुझे थमा दो..*
तुम्हारी थकान पर, *मनुहारों का पँखा झुला दूँ..!*
*देखो, शाम बिछाई है मैंने,*
*सूरज क्षितिज पर बाँधा है,*
*लाली छिड़की है नभ पर..!*
*प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर,* चाय चढ़ाई है,
घूँट घूँट पीना..!
*सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना...*
मंगलवार, 29 नवंबर 2016
रिश्ते
""" रिश्ते """
बेहद नाजुक से होते हैं ----
ये रिश्ते , फूल अमलताश के
बस , थोड़ी सी प्रीत से भीग जाते हैं
रोम रोम तक -----
और छोटी सी ही बात से
टूट जाते हैं , चकनाचूर होकर ----
इसलिए जरा संभलना ----
और रिश्तों को सम्भालना थोड़े प्यार से ,
रिश्तों में तकरार हो , पर मीठी हो ,
जिससे खिल उठें नवजीवन सा ,
बचना तानों भरे शब्दों से ---
जो तोड़ देते हैं रिश्तों को
सुखी लकड़ी सा -----
हाँ बेहद नाजुक ये रिश्ते
फूल अमलताश के -----!!!!
फूलों से नित हँसना सीखो
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।
तरु की झुकी डालियों से नित, सीखो शीश झुकाना!
सीख हवा के झोकों से लो, हिलना, जगत हिलाना!
दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना!
सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना!
लता और पेड़ों से सीखो, सबको गले लगाना!
वर्षा की बूँदों से सीखो, सबसे प्रेम बढ़ाना!
मेहँदी से सीखो सब ही पर, अपना रंग चढ़ाना!
मछली से सीखो स्वदेश के लिए तड़पकर मरना!
पतझड़ के पेड़ों से सीखो, दुख में धीरज धरना!
पृथ्वी से सीखो प्राणी की सच्ची सेवा करना!
दीपक से सीखो, जितना हो सके अँधेरा हरना!
जलधारा से सीखो, आगे जीवन पथ पर बढ़ना!
और धुएँ से सीखो हरदम ऊँचे ही पर चढ़ना!
रविवार, 27 नवंबर 2016
दूर सब फासला
❤❤दिल की देहरी से ❤❤
कुछ स्पंदन
दूर सब फासला हो गया
मंजिल खुद रास्ता हो गया
रोज ए हश्र मिल ही गए
और वादा वफा हो गया
आंख से दिल में उतरा था
बाद में लापता हो गया
किस नजर से देखा उसने
आलमे मयफिशॉ हो गया
सूरते हाल से समझ ले
पूछना मत क्या हो गया
बाखुदा आज खुश है बहुत
वो जहाँ से रिहा हो गया
©©©©©©©© *रतन सिंह चंपावत कृत*
बुधवार, 23 नवंबर 2016
ब्राँडेड वूलन गारमेंट्स
न जाने क्यों महसूस नहीं होती वो गरमाहट,
इन ब्राँडेड वूलन गारमेंट्स में ,
जो होती थी
दिन- रात, उलटे -सीधे फन्दों से बुने हुए स्वेटर और शाल में.
आते हैं याद अक्सर
वो जाड़े की छुट्टियों में दोपहर के आँगन के सीन,
पिघलने को रखा नारियल का तेल,
पकने को रखा लाल मिर्ची का अचार.
कुछ मटर छीलती,
कुछ स्वेटर बुनती,
कुछ धूप खाती
और कुछ को कुछ भी काम नहीं,
भाभियाँ, दादियाँ, बुआ, चाचियाँ.
अब आता है समझ,
क्यों हँसा करती थी कुछ भाभियाँ ,
चुभा-चुभा कर सलाइयों की नोक इधर -उधर,
स्वेटर का नाप लेने के बहाने,
याद है धूप के साथ-साथ खटिया
और
भाभियों और चाचियों की अठखेलियाँ.
अब कहाँ हाथ तापने की गर्माहट,
वार्मर जो है.
अब कहाँ एक-एक गरम पानी की बाल्टी का इन्तज़ार,
इन्स्टेंट गीजर जो है.
अब कहाँ खजूर-मूंगफली-गजक का कॉम्बिनेशन,
रम विथ हॉट वॅाटर जो है.
सर्दियाँ तब भी थी
जो बेहद कठिनाइयों से कटती थीं,
सर्दियाँ आज भी हैं,
जो आसानी से गुजर जाती हैं.
फिर भी
वो ही जाड़े बहुत मिस करते हैं,
बहुत याद आते हैं.
-गुलज़ार
बच्चे सा
❤❤ दिल की देहरी से ❤❤
कुछ स्पंदन
चलो आज किसी बच्चे सा मचल कर देखें
फिर बातों ही बातों में बहल कर देखें
≠=================≠
ज़माने को बदलने में तो नाकाम रहे
अब क्यों ना आज खुद को बदल कर देखें
≠=================≠
कहते हैं लोग कि इश्क आग का दरिया है
आओ इस पर भी कुछ कदम चल कर देखें
≠=================≠
हर नफ़स एक नयी इन्तिहां होती है
इस ज़िंदगी के सांचों में ढल कर देखें
≠=================≠
परवानों के हक़ में यह हंगामा क्यों
श़ब भर कभी शम्मा की तरह जल कर देखें
≠=================≠
तारीकियों में बेपनाह नूर सिमटा है
ज़िस्मों की हद से बाहर निकल कर देखे
©©©©©©©©©©©©©©©©©©
*रतनसिंह चंपावत कृत*
सोमवार, 21 नवंबर 2016
औरत का सफर
*औरत का सफर☺*
मेरी कलम से.........
बाबुल का घर छोड़ कर पिया के घर आती है..
☺एक लड़की जब शादी कर औरत बन जाती है..
अपनों से नाता तोड़कर किसी गैर को अपनाती है..
☺अपनी ख्वाहिशों को जलाकर किसी और के सपने सजाती है..
☺सुबह सवेरे जागकर सबके लिए चाय बनाती है..
नहा धोकर फिर सबके लिए नाश्ता बनाती है..
☺पति को विदा कर बच्चों का टिफिन सजाती है..
झाडू पोछा निपटा कर कपड़ों पर जुट जाती है..
पता ही नही चलता कब सुबह से दोपहर हो जाती है..
☺फिर से सबका खाना बनाने किचन में जुट जाती है..
☺सास ससुर को खाना परोस स्कूल से बच्चों को लाती है..
बच्चों संग हंसते हंसते खाना खाती और खिलाती है..
☺फिर बच्चों को टयूशन छोड़,थैला थाम बाजार जाती है..
☺घर के अनगिनत काम कुछ देर में निपटाकर आती है..
पता ही नही चलता कब दोपहर से शाम हो जाती है..
सास ससुर की चाय बनाकर फिर से चौके में जुट जाती है..
☺खाना पीना निपटाकर फिर बर्तनों पर जुट जाती है..
सबको सुलाकर सुबह उठने को फिर से वो सो जाती है..
हैरान हूं दोस्तों ये देखकर सौलह घंटे ड्यूटी बजाती है..
फिर भी एक पैसे की पगार नही पाती है..
ना जाने क्यूं दुनिया उस औरत का मजाक उडाती है..
ना जाने क्यूं दुनिया उस औरत पर चुटकुले बनाती है..
जो पत्नी मां बहन बेटी ना जाने कितने रिश्ते निभाती है..
सबके आंसू पोंछती है लेकिन खुद के आंसू छुपाती है..
*नमन है मेरा घर की उस लक्ष्मी को जो घर को स्वर्ग बनाती है..☺*
*☺ड़ोली में बैठकर आती है और अर्थी पर लेटकर जाती है. ......
निवेदन
पसंद आया हो तो आगे भी शेयर करें
बस मुश्किलें बढ़ गई,
हम हैं वही बस मुश्किलें बढ़ गई,
मंजिल आने से पहले हालात बदल गई.
पहले चाहत और थी अब चाहत कुछ और है,
इस तरह ज़िन्दगी बेमकसद सी रह गई.
गुमनामी में थे तो ठीक थे हम,
नाम हुआ तो दिक्कतें भी बढ़ गई.
शर्म थी, हया थी, प्यार की रस्में भी थी,
अब इश्क़ केवल बर्बादी की वजह रह गई.
क्या करूँ फैसला असमंजस में हूँ,
ज़िन्दगी चुपके से कान में क्या कह गई !!
शाम गुलाबी रहे
❤❤ दिल की देहरी से ❤❤
कुछ स्पंदन
शाम गुलाबी रहे सुबह श़ब़नमी रहे
देखना इंतजा़म में न कोई कमी रहे
य़काय़क सब विराने आबाद हो जाए
जो दिल में आकर मेरा दिलनशीं रहे
तलाश लूंगा खुद में खुद ही को एक दिन
कायम बस मुझ पर मेरा ही य़कीं रहे
विसाल ए सनम और नूर फजा़ओं में
ये लहू की रवानियां आज थमी रहे
हक़ मतलबी दुनिया का अदा करने दे
या रब ! फिर वही जो तेरी मरज़ी रहे
इतनी सी दुआ करो मेरे मेहरबां !
यह दिल की चोट मेरे सदा हरी रहे
उसी का मशविरा देना ऐ जिंदगी
जो करना मेरे लिए लाज़िमी रहे
आबेहयात भी य़कीनन मिल जायेगा
गरचे सलामत अपनी तिश्ना लबी रहे
©© *रतन सिंह चंपावत कृत*©©©©©©
शनिवार, 19 नवंबर 2016
उजाला
मेरी गज़ल।
उजाला जब बसर करने लगा है।
सवेरा भी हंसी लगने लगा है।
उठा सैलाब ऐसा मन के अंदर
उमंगो का सफर थमने लगा है।
बनाता घर निवाले छीन कर वो
निराले पाप अब करने लगा है।
लुटेरा बन सुखी होता जमाना
निराले से बहाने गढ़ने लगा है।
जमाना को दिखा मत जख़्म दीपा
दिखाने पर जहाँ हँसने लगा है।
दीपा परिहार
बुधवार, 16 नवंबर 2016
हज़ार-पाँच सौ के दोह
*हज़ार-पाँच सौ के दोहे:*
'छुट्टे' कहें 'हज़ार' से, काहे अकड़ दिखाय ।
क्या जाने कब फेंकना, रद्दी में पड़ जाय ।।
घरवाला क्या जान सके, घरवाली की पीर ।
रात रायता हो गई, दिन-दिन जोड़ी खीर ।।
रातों-रात बदल गयी, बस्ती की तस्वीर ।
साहब ठन-ठन हो गए, धनपति हुए फ़क़ीर ।।
सौ, हज़ार दोऊ पड़े, काको लियूँ उठाय ।
क़ीमत सौ के नोट की, मोदी दियो बताय ।।
लंबी लाइन में खड़े, कितनों के अरमान ।
सकल बैंक तीरथ हुए, एटीएम भगवान ।।
काले धन को रोकने, सभी लगाएँ ज़ोर ।
डाल-डाल कानून है, पात-पात पर चोर ।।
लाख टके के प्रश्न पर, हर कोई है मौन ।
दो हज़ार के नोट की, रिश्वत रोके कौन ?
थैलसीमिया-सा करे, काला धन व्यवहार ।
'ख़ून' बदलना है फ़क़त, अस्थायी उपचार ।।
मोदी जी सुन लीजिये, *पुरी* की अरदास ।
जल्दी नोट छपाइये, बचा न कुछ भी पास ।।
सोमवार, 14 नवंबर 2016
परिंदा
कुछ स्पंदन
कहने को तो वो परिंदा यह शज़र छोड़ गया
मगर हर शा़खो गुल पर अपना असर छोड़ गया
सरे शाम वह मेरी महफ़िल से रुख़सत हो गया
जाते जाते मुझ पर कातिल नज़र छोड़ गया
सिवा खुद के सब को अपने साथ लेकर जाऊंगा
तेरी दुनिया जो मैं सचमुच अगर छोड़ गया
खाली हाथ आया था खाली हाथ चला गया
जो कुछ लिया था यहीं से यहीं पर छोड़ गया
तिज़ारत ए इश्क में बराबरी का सौदा था
नूर ए च़श्म ले गया तो च़श्म ए त़र छोड़ गया
उस तिश्नालबी का भी क्या अज़ब सा आलम था
क़तरे की ख़ातिर सारा समंदर छोड़ गया
रतन सिंह चंपावत कृत
सोमवार, 7 नवंबर 2016
वफ़ा
मेरी गज़ल।
इस वफ़ा को सजा हो गई।
जिदंगी अब खफा हो गई।
फेर ली सामने से नजर
छोड़ दुनिया दफा हो गई।
पी रहा है अकेला वहॉ
मैं यहॉ खुद नशा हो गई।
चाहती ना किसी और को
खुद ही खुद पर फिदा हो गई
आ गई पास दीपा के जब
बददुआ भी दुआ हो गई।
ंंंंंंंदीपा परिहार ंंंंंं
तकदीर
*तकदीर :*
*एक हसीन लडकी*
*राजा के दरबार में*
*डांस कर रही थी...*
*( राजा बहुत बदसुरत था )*
*लडकी ने राजा से एक*
*सवाल की इजाजत मांगी*
.
*राजा ने कहा ,*
*' चलो पुछो .'*
.
*लडकी ने कहा ,*
*'जब हुस्न बंट रहा था*
*तब आप कहां थे..??*
.
*राजा ने गुस्सा नही किया*
*बल्कि*
*मुस्कुराते हुवे कहा*
*~ जब तुम हुस्न की*
*लाइन् में खडी*
*हुस्न ले रही थी , ~*
.
*~ तो में*
*किस्मत की लाइन में खडा*
*किस्मत ले रहा था*
.
*और आज*
*तुझ जैसी हुस्न वालीयां*
*मेरी गुलाम की तरह*
*नाच रही है...........*
.
*इसलिए शायर खुब कहते है,*
.
*" हुस्न ना मांग*
*नसीब मांग ए दोस्त ,*
*हुस्न वाले तो*
*अक्सर नसीब वालों के*
*गुलाम हुआ करते है...*
*" जो भाग्य में है ,*
*वह भाग कर आएगा,*
*जो नहीं है ,*
*वह आकर भी*
*भाग जाएगा....!!!!!."*
*यहाँ सब कुछ बिकता है ,*
*दोस्तों रहना जरा संभाल के,*
*बेचने वाले हवा भी बेच देते है,*
*गुब्बारों में डाल के,*
*सच बिकता है ,*
*झूट बिकता है,*
*बिकती है हर कहानी,*
*तीनों लोक में फेला है ,*
*फिर भी बिकता है*
*बोतल में पानी ,*
*कभी फूलों की तरह मत जीना,*
*जिस दिन खिलोगे ,*
*टूट कर बिखर्र जाओगे ,*
*जीना है तो*
*पत्थर की तरह जियो ;*
*जिस दिन तराशे गए ,*
*" भगवान " बन जाओगे...!!!!*
यूं गुफ्तगू
❤❤ दिल की देहरी से..❤❤
कुछ स्पंदन
यूं गुफ्तगू करते रहे हम ही से हम
खुद से भी मिले बड़ी बेरुखी से हम
कदम अपने आसमां पर भी रखे मगर
ताउम्र जुड़े रहे इस सरज़मी से हम
सुकूने दिल को खुद ही तबाह कर लिया
आशना हुए हैं इक महज़बीं से हम
बदलियां जाने किस झील में बरस गयी
तरसते रह गए सूखी नदी से हम
ज़ख्मों पर फिर से करो मरहम फ़रेब का
चोट खाकर लौेटे हैं राह ए य़कीं से हम
तेरी नसीहत हो तुझ ही को मुबारक
बाज कहां आएंगे गुस्ताखी से हम
मिले हैं ख़ाक में पर हरग़िज मिटे नहीं
बन के श़ज़र उगेंगे यहीं कहीं से हम
ज़िंदगी भर खुद की गुलामी करते रहे
ख़फ़ा बहुत है इन्सानी बुजदिली से हम.
रोज ए हश्र एक सवाल जरुर पूछेंगे
मिली जो ग़र वहां रसूल औ नबीं से हम
©©©©©©©©
रतन सिंह चाँपावत कृत
क्या देना_
अंधों को दर्पण क्या देना_
_बहरों को भजन सुनाना क्या_
_जो रक्त पान करते उनको_
_गंगा का नीर पिलाना क्या.._
_हमने जिनको दो आँखे दी_
_वो हमको आँख दिखा बैठे_
_हम शांति यज्ञ में लगे रहे_
_वो श्वेत कबूतर खा बैठे.._
_वो छल पे छल करता आया_
_हम अड़े रहे विश्वासों पर_
_कितने समझौते थोप दिए_
_हमने बेटों की लाशों पर.._
_अब लाशें भी यह बोल उठी_
_मत अंतर्मन पर घात करो_
_दुश्मन जो भाषा समझ सके_
_अब उस भाषा में बात करो.._
_वो झाड़ी है, हम बरगद हैं_
_वो है बबूल हम चन्दन हैं_
_वो है जमात गीदड़ वाली_
_हम सिंहों का अभिनन्दन हैं.._
_ऐ पाक तुम्हारी धमकी से_
_यह धरा नहीं डरने वाली_
_यह अमर सनातन माटी है_
_ये कभी नहीं मरने वाली.._
_तुम भूल गए सन् अड़तालिस_
_पैदा होते ही अकड़े थे_
_हम उन कबायली बकरों की_
_गर्दन हाथों से पकड़े थे.._
_तुम भूल गए सन् पैंसठ को_
_तुमने पंगा कर डाला था_
_छोटे से लाल बहादुर ने_
_तुमको नंगा कर डाला था.._
_तुम भूले सन् इकहत्तर को_
_जब तुम ढाका पर ऐंठे थे_
_नब्बे हजार पाकिस्तानी_
_घुटनों के बल पर बैठे थे.._
_तुम भूल गए करगिल का रण_
_हिमगिरि पर लिखी कहानी थी_
_इस्लामाबादी गुंडों को_
_जब याद दिलाई नानी थी.._
_तुम सारी दुर्गति भूल गए_
_फिर से बवाल कर बैठे हो_
_है उत्तर खुद के पास नहीं_
_हमसे सवाल कर बैठे हो.._
_बिगड़ैल किसी बच्चे जैसे_
_आलाप तुम्हारे लगते हैं_
_तुम भूल गए हो रिश्ते में_
_हम बाप तुम्हारे लगते हैं.._
_बेटा पिटने का आदी है_
_बेटा पक्का जेहादी है_
_शायद बेटे की किस्मत में_
_बर्बादी ही बर्बादी है.._
_तेरी बर्बादी में खुद को_
_बर्बाद नहीं होने देंगे_
_हम भारत माँ के सीने पर_
_जेहाद नहीं होने देंगे.._
_तू रख हथियार उधारी के_
_हम अपने दम से लड़ लेंगे_
_गर एटम बम से लड़ना हो_
_तो एटम बम से लड़ लेंगे.._
_जब तक तू बटन दबायेगा_
_हम पृथ्वी नाग चला देंगे_
_तू जब तक दिल्ली ढूंढेगा_
_हम पूरा पाक जला देंगे.._
_यह कथन सारा आवाम कहे_
_गर फिर से आँख दिखाओगे_
_तुम सवा अरब के भारत की_
_मुट्ठी से मसले जाओगे.._
मंगलवार, 1 नवंबर 2016
दिया उम्मीद का..
जरा सलीके से बटोरना, बुझे दीयों को दोस्तों,
इन्होंने अमावस की अँधेरी रात में हमें रौशनी दी थी,
किसी और को जलाकर खुश होना अलग बात है,
इन्होंने तो खुद को जलाकर हमें खुशी दी थी.....
एक दिया उम्मीद का..
शनिवार, 29 अक्तूबर 2016
उस रोज़ दिवाली होती है
जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है
*उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।*
जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
*उस रोज़ दिवाली होती है ।*
जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
*उस रोज़ दिवाली होती है ।*
जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्-भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ 'दिवाली' होती है .
बचपन
किसी ने *भींत से रगड़कर* छोड़ी तो किसी ने सड़क पर रख *चप्पल से रगड़कर* छोड़ी ,
'
किसी ने *भाटे से कूट कूट कर* छोड़ी ,
तो किसी ने *बन्दूक में डालकर* छोड़ी ......
किसी ने *नट बोल्ट* का प्रयोग किया तो किसी ने *दांतो से किचरकर* छोड़ी ।
'
और तो और कुछ कुचमादियों ने मेरा *नाखूनों से कत्ल किया* तो किसी ने मुझे *जलती आग में* डालकर माहौल बनाया ।
बचपन में अलग अलग भांत के लफंगों ने मेरा अलग अलग तरह से शोषण किया ।
-----
-----
आज आप बड़े हो गए , मुझे भूल गए ..
लेकिन मुझे आप और आपका लपरा बचपन अच्छी तरह याद है ।
:---आपकी -- *टिकड़ी*
एक दिया ऐसा
" एक दिया ऐसा भी हो, जो भीतर तलक प्रकाश करे ,
एक दिया जीवन में फिर आकर क़ुछ श्वास भरे !
एक दिया सादा हो इतना , जैसे सादा-सरल साधु का जीवन ,
एक दिया इतना सुन्दर हो , जैसे देवों का उपवन !
एक दिया भेद मिटाये , क्या तेरा -क्या मेरा है ,
एक दिया जो याद दिलाये , हर रात के बाद सवेरा है !
एक दिया उनकी खातिर हो, जिनके घर में दिया नहीं ,
एक दिया उन बेचारों का जिनको घर ही दिया नहीं !
एक दिया सीमा के रक्षक , अपने भारत के वीर जवानों का ,
एक दिया मानवता - रक्षक , चंद बचे (मुट्ठी भर) इंसानों का !
एक दिया विश्बास दे उनको , जिनकी हिम्मत टूट गयी ,
एक दिया उस राह में भी हो , जो कल पीछे छूट गयी !
एक दिया जो अंधकार का , जड़ के साथ विनाश करे ,
एक दिया ऐसा भी हो , जो भीतर तलक प्रकाश करे ,"- - - -
मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016
भगवान और शैतान....
❤❤❤❤
एक था भगवान,
एक था शैतान.....
❤❤❤❤
दोनों में जब झगड़ा हुआ तो,
बहुत हुआ नुकसान....
❤❤❤❤
दोनों ने मिलकर,
निकाला समस्या का समाधान....
❤❤❤❤
एक खिलौना बनाया,
और उसका नाम रखा इंसान....
❤❤❤❤
शैतान ने अपनी ताकतें दी,
क्रोध,धंमड और जलन.....
❤❤❤❤
भगवान ने अपने अंश दिये,
प्यार,दया और सम्मान...
❤❤❤❤
भगवान से मुस्कराकर बोला शैतान,
❤❤❤❤
न तेरा नुकसान,न मेरा नुकसान......
❤❤❤❤
तू जीते या मैं जितूं
हारेगा इंसान ....
और इसलिए कहते है...
❤❤❤❤
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,
कोई रुठे तो उसे मनाना सीखो ...
रिश्ते तो मिलते है मुकद्दर से,
बस उन्हे खूबसूरती से निभाना सीखों।
❤
जन्म लिया है तो सिर्फ साँसे⚡ मत लीजिये,
❤❤❤❤
जीने का शौक भी रखिये..
❤❤❤❤
श्मशान ऐसे लोगो की राख से...भरा पड़ा है
जो समझते थे,,,
❤❤❤❤
दुनिया उनके बिना चल नहीं सकती.
❤❤❤❤
हाथ में टच फ़ोन,
बस स्टेटस के लिये अच्छा है…
❤❤❤❤
सबके टच में रहो,
जिंदगी के लिये ज्यादा अच्छा है…
❤❤❤❤
ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री" होगी!
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।
❤❤❤❤
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" आख़री होगी...
✋✋✋✋✋✋✋✋
स्कूल की दोस्ती
10th क्लास तक
यूनीवर्सिटी की दोस्ती
फायनल इअर तक
ऑफिस की दोस्ती
रिटायरमेंट तक
लव्हर की दोस्ती
शादी तक
.....But....
हमारी दोस्ती
आप से
❤❤❤❤
30 February तक
❤❤❤❤
......क्योंकि......
❤❤❤❤
ना कभी 30 February आयेगा
ना कभी हमारी दोस्ती का end होगा✌
❤❤❤❤
Note:
ये मॅसेज उन दोस्तो को भेजो जिन का साथ आप पुरी जिंदगी भर नही छोडना चाहते ☺
❤❤❤❤
मुझे भी करें अगर आप मुझे खोना नही चाहते तो
❤❤❤❤
ये मॅसेज सबको सेंन्ड करो और देखो कितने लोग आपको खोना नहीं चाहते.
❤❤❤❤
ऐ सुख
ऐ सुख
तू कहाँ मिलता है
क्या तेरा कोई स्थायी पता है
क्यों बन बैठा है अन्जाना
आखिर क्या है तेरा ठिकाना।
कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको
पर तू न कहीं मिला मुझको
ढूंढा ऊँचे मकानों में
बड़ी बड़ी दुकानों में
स्वादिस्ट पकवानों में
चोटी के धनवानों में
वो भी तुझको ढूंढ रहे थे
बल्कि मुझको ही पूछ रहे थे
क्या आपको कुछ पता है
ये सुख आखिर कहाँ रहता है?
मेरे पास तो दुःख का पता था
जो सुबह शाम अक्सर मिलता था
परेशान होके रपट लिखवाई
पर ये कोशिश भी काम न आई
उम्र अब ढलान पे है
हौसले थकान पे है
हाँ उसकी तस्वीर है मेरे पास
अब भी बची हुई है आस
मैं भी हार नही मानूंगा
सुख के रहस्य को जानूंगा
बचपन में मिला करता था
मेरे साथ रहा करता था
पर जबसे मैं बड़ा हो गया
मेरा सुख मुझसे जुदा हो गया।
मैं फिर भी नही हुआ हताश
जारी रखी उसकी तलाश
एक दिन जब आवाज ये आई
क्या मुझको ढूंढ रहा है भाई
मैं तेरे अन्दर छुपा हुआ हूँ
तेरे ही घर में बसा हुआ हूँ
मेरा नही है कुछ भी मोल
सिक्कों में मुझको न तोल
मैं बच्चों की मुस्कानों में हूँ
हारमोनियम की तानों में हूँ
पत्नी के साथ चाय पीने में
परिवार के संग जीने में
माँ बाप के आशीर्वाद में
रसोई घर के महाप्रसाद में
बच्चों की सफलता में हूँ
माँ की निश्छल ममता में हूँ
हर पल तेरे संग रहता हूँ
और अक्सर तुझसे कहता हूँ
मैं तो हूँ बस एक अहसास
बंद कर दे मेरी तलाश
जो मिला उसी में कर संतोष
आज को जी ले कल की न सोच
कल के लिए आज को न खोना
मेरे लिए कभी दुखी न होना।
मेरे लिए कभी दुखी न होना