हम हैं वही बस मुश्किलें बढ़ गई,
मंजिल आने से पहले हालात बदल गई.
पहले चाहत और थी अब चाहत कुछ और है,
इस तरह ज़िन्दगी बेमकसद सी रह गई.
गुमनामी में थे तो ठीक थे हम,
नाम हुआ तो दिक्कतें भी बढ़ गई.
शर्म थी, हया थी, प्यार की रस्में भी थी,
अब इश्क़ केवल बर्बादी की वजह रह गई.
क्या करूँ फैसला असमंजस में हूँ,
ज़िन्दगी चुपके से कान में क्या कह गई !!
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