❤❤ दिल की देहरी से..❤❤
कुछ स्पंदन
यूं गुफ्तगू करते रहे हम ही से हम
खुद से भी मिले बड़ी बेरुखी से हम
कदम अपने आसमां पर भी रखे मगर
ताउम्र जुड़े रहे इस सरज़मी से हम
सुकूने दिल को खुद ही तबाह कर लिया
आशना हुए हैं इक महज़बीं से हम
बदलियां जाने किस झील में बरस गयी
तरसते रह गए सूखी नदी से हम
ज़ख्मों पर फिर से करो मरहम फ़रेब का
चोट खाकर लौेटे हैं राह ए य़कीं से हम
तेरी नसीहत हो तुझ ही को मुबारक
बाज कहां आएंगे गुस्ताखी से हम
मिले हैं ख़ाक में पर हरग़िज मिटे नहीं
बन के श़ज़र उगेंगे यहीं कहीं से हम
ज़िंदगी भर खुद की गुलामी करते रहे
ख़फ़ा बहुत है इन्सानी बुजदिली से हम.
रोज ए हश्र एक सवाल जरुर पूछेंगे
मिली जो ग़र वहां रसूल औ नबीं से हम
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रतन सिंह चाँपावत कृत
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