गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

समय की .. इस अनवरत बहती धारा में ..

समय की ..
इस अनवरत बहती धारा में ..
अपने चंद सालों का ..
हिसाब क्या रखें .. !!

जिंदगी ने ..
दिया है जब इतना ..
बेशुमार यहाँ ..
तो फिर ..
जो नहीं मिला उसका
हिसाब क्या रखें .. !!

दोस्तों ने .. दिया है ..
इतना प्यार यहाँ ..
तो दुश्मनी ..
की बातों का ..
हिसाब क्या रखें .. !!

दिन हैं .. उजालों से ..
इतने भरपूर यहाँ ..
तो रात के अँधेरों का ..
हिसाब क्या रखे .. !!

खुशी के दो पल ..
काफी हैं .. खिलने के लिये ..
तो फिर .. उदासियों का ..
हिसाब क्या रखें .. !!

हसीन यादों के मंजर ..
इतने हैं जिंदगानी में ..
तो चंद दुख की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

मिले हैं फूल यहाँ ..
इतने किन्हीं अपनों से ..
फिर काँटों की .. चुभन का हिसाब क्या रखें .. !!

चाँद की चाँदनी ..
जब इतनी दिलकश है ..
तो उसमें भी दाग है ..
ये हिसाब क्या रखें .. !!

जब खयालों से .. ही पुलक ..
भर जाती हो दिल में ..
तो फिर मिलने .. ना मिलने का .. हिसाब क्या रखें .. !!

कुछ तो जरूर .. बहुत अच्छा है .. सभी में यारों ..
फिर जरा सी .. बुराइयों का .. हिसाब क्या रखें .. !!!

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

उतावला सा चांद .

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

बेताब ....
उतावला सा चांद .
कल रात ..
फिर से गिर पड़ा अचानक....
यादों की गहरी झील में
शुक्र है कि वक्त पर दिख गया
वह मुझको ...
फिर .....
फिर ..    क्या ....
बड़ी मशक्कत से निकाला उसको
बाहर....  
भीग गया था वह   
पूरा का पूरा  ..
किसी अनकहे एहसास की नाजुक सी  नमी से  ...
उफ़्फ !!!!!!! .
कितना तो खामोश था ..
रात में पसरे सन्नाटे से भी ज्यादा

खैर ......

टांग दिया है मैंने उसे फिर से     दिल के खुले चंदोवे पर   
सूखने को  .... 
सवेरे सवेरे     
हसरतों की कुनकुनी धूप में..

मगर ......  
मगर पता ही नहीं चला
मुझे कि कब .
इस जद्दोजहद में ...
भीग गया हूं ....
मैं खुद भी ....
बाहर से    ..
खुद के अंदर तक !!!
तरबतर हो गया हूँ ...
पूरे वजूद से .. !!!
पशोपेश में हूं  
कि कहां टांगूं       ...
अब मैं ..

खुद  ही को सूखने के लिए...

तलाशूं कौन सी धूप  ...
जो सुखा दे ...
!
!!
!!
!!!!

अंदर तक.......

©©©©©©©
*CHAMPAWAT* *RATAN SINGH*

उतावला सा चांद .

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

बेताब ....
उतावला सा चांद .
कल रात ..
फिर से गिर पड़ा अचानक....
यादों की गहरी झील में
शुक्र है कि वक्त पर दिख गया
वह मुझको ...
फिर .....
फिर ..    क्या ....
बड़ी मशक्कत से निकाला उसको
बाहर....  
भीग गया था वह   
पूरा का पूरा  ..
किसी अनकहे एहसास की नाजुक सी  नमी से  ...
उफ़्फ !!!!!!! .
कितना तो खामोश था ..
रात में पसरे सन्नाटे से भी ज्यादा

खैर ......

टांग दिया है मैंने उसे फिर से     दिल के खुले चंदोवे पर   
सूखने को  .... 
सवेरे सवेरे     
हसरतों की कुनकुनी धूप में..

मगर ......  
मगर पता ही नहीं चला
मुझे कि कब .
इस जद्दोजहद में ...
भीग गया हूं ....
मैं खुद भी ....
बाहर से    ..
खुद के अंदर तक !!!
तरबतर हो गया हूँ ...
पूरे वजूद से .. !!!
पशोपेश में हूं  
कि कहां टांगूं       ...
अब मैं ..

खुद  ही को सूखने के लिए...

तलाशूं कौन सी धूप  ...
जो सुखा दे ...
!
!!
!!
!!!!

अंदर तक.......

©©©©©©©
*CHAMPAWAT* *RATAN SINGH*