❤ दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..
बेताब ....
उतावला सा चांद .
कल रात ..
फिर से गिर पड़ा अचानक....
यादों की गहरी झील में
शुक्र है कि वक्त पर दिख गया
वह मुझको ...
फिर .....
फिर .. क्या ....
बड़ी मशक्कत से निकाला उसको
बाहर....
भीग गया था वह
पूरा का पूरा ..
किसी अनकहे एहसास की नाजुक सी नमी से ...
उफ़्फ !!!!!!! .
कितना तो खामोश था ..
रात में पसरे सन्नाटे से भी ज्यादा
खैर ......
टांग दिया है मैंने उसे फिर से दिल के खुले चंदोवे पर
सूखने को ....
सवेरे सवेरे
हसरतों की कुनकुनी धूप में..
मगर ......
मगर पता ही नहीं चला
मुझे कि कब .
इस जद्दोजहद में ...
भीग गया हूं ....
मैं खुद भी ....
बाहर से ..
खुद के अंदर तक !!!
तरबतर हो गया हूँ ...
पूरे वजूद से .. !!!
पशोपेश में हूं
कि कहां टांगूं ...
अब मैं ..
खुद ही को सूखने के लिए...
तलाशूं कौन सी धूप ...
जो सुखा दे ...
!
!!
!!
!!!!
अंदर तक.......
©©©©©©©
*CHAMPAWAT* *RATAN SINGH*
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