बुधवार, 31 मई 2017

अजनबी सी वादियां

पेश ए. खिदमत

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

लग रही है अजनबी सी वादियां
बेरहम है वक्त की यह आंधियां

उड़ गई शाखों से सारी बुलबुलें
कह रही है फूल से यूं तितलियां

ए सियासत ! क्यों तुझे था लाजमी
मौत पर मेरी बजाना तालियां

रास आएेंगें तुझे ये हौसले
आ सजा दे लब पे मेरे सिसकियां

हो गई मसमूम सारी जिंदगी
क्या बिगाड़ेगी अब मेरा ये तल्खियां

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*CHAMPAWAT*

जिंदगी ने दिया है जब इतना बेशुमार

जिंदगी ने दिया है जब इतना बेशुमार यहाँ,
तो फिर जो नहीं मिला उसका हिसाब क्या रखें ....

खुशी के दो पल काफी हैं, खिलने के लिये,
तो फिर उदासियों का हिसाब क्या रखें......

हसीन यादों के मंजर इतने हैं जिंदगानी में,
तो चंद दुख की बातों का हिसाब क्या रखें ......

मिले हैं फूल यहाँ इतने किन्हीं अपनों से,
फिर काँटों की चुभन का हिसाब क्या रखें .....

चाँद की चाँदनी जब इतनी दिलकश है,
तो उसमें भी दाग है, ये हिसाब क्या रखें.....

कुछ तो जरूर बहुत अच्छा है सभी में यारों,
फिर जरा सी बुराइयों का हिसाब क्या रखें..... !!

हवा का रुख

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

हवा का रुख नहीं वो अब संभल जा
जमाने को बदल या खुद बदल जा

नहीं चालाकियां ये तेरे बस की
तू तो मासूम बच्चे सा मचल जा

मिलेगा कौन तुझको तुझसा बहशी
जहां में खोजने खुद को निकल जा

ज़माने से ज़मी बंजर है दिल की
कि दरिया सा किनारों से उबल जा

सुलगता ही रहा बन के धुँआ सा
दहकना लाज़मीं तेरा तू जल जा

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*CHAMPAWAT*

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....

Harivansh Rai Bachhan's poem...

मै यादों का
किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत
याद आते हैं....

...मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....

.....अब जाने कौन सी नगरी में,
आबाद हैं जाकर मुद्दत से....

....मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....

....कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
....कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
....मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
....कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.

....सबकी जिंदगी बदल गयी,
....एक नए सिरे में ढल गयी,

....किसी को नौकरी से फुरसत नही...
....किसी को दोस्तों की जरुरत नही....

....सारे यार गुम हो गये हैं...
.... "तू" से "तुम" और "आप" हो गये है....

....मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....

...धीरे धीरे उम्र कट जाती है...
...जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,
...कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है...
और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है ...

.....किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
....फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते...

.....जी लो इन पलों को हस के दोस्त,
फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ....

......हरिवंशराय बच्चन

dedicated to all beautiful people..

गुरुवार, 25 मई 2017

रवायत अजब ही रही जिंदगी की

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

रवायत अजब ही रही जिंदगी की
हुई ना ये अपनी जहां में किसी की

सितारे बिछाने में मसरूफ था वो
तलब आसमां को कहां थी जमीं की

करम फर्ज अहसान के नाम पर ही
लगी कीमतें फिर मेरी बेकसी की

हुआ फैसला रंजिशे इश्क का यूं
सुलह मैंने तो जंग उसने नहीं की

यकीन था मगर जिक्र मेरा हुआ नहीं
छिड़ी दास्तां फिर से उसी अजनबी की

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*CHAMPAWAT*

बुधवार, 24 मई 2017

कुँवर प्रताप सिंह बारहठ के शहादत दिवस पर श्रदांजलि

बरेली की काल कोठरी में
जहाँ सूरज कम निकलता था
छेदों की रोशनी में
वो फिर अपना दम भरता था

हुँकार करता ,हुँकार भरता
अपना वजूद बताता था
था सिंग मेवाड का
आजादी का दिवाना था

गोरों की यातनाओं ने
उसका मन तोडा नहीं
राज था जो मन में
उसने कभी खोला नहीं

देख प्रताप अभी बता दे
जिन्दगी अभी लम्बी है
बोल कहा कहा ठिकाने है
कितने तेरे संगी है

तेरे पिता को मिलेगी जागीर वापस
सोने का तेरा सूरज होगा
राज सब बता दे
लाख पसार तेरा यश होगा

प्रलोभन कोई हिला न पाया
फिर अंग्रेज गुरराया
देख पगले तुझे प्यार है तेरी माँ से
तेरी माँ अब सब दिन रोती है
छोड चुकी खाना पिना
अपनी आँखे भिगोती है
तु भी है अब अधमरा
कुछ प्राप्त तुमकों होगा नही
कल सुबह तक राज बता देना
देगे हम भी धोखा नही

सुबह छेद की किरण से
उसने फिर हूँकार भरी
आँखे उसकी फिर उठी
उसने फिर आवाज भरी

आज अगर नहीं बताऊ
नाम अपने मतवालों के
तो सिर्फ मेरी माँ रोयेगी
गर बता दू तो
जाने कितनी माएँ रोएगी
मैं तुमसे पार पडुगा नही
तुम्हारें अत्याचारों से हिलुगा नहीं
हुँ सिर्फ भारत माँ का बेटा आज
बलिवेदी पर चढ़ जाऊगा
नाम मेरा सिंग प्रताप
बस ये तुम्हें बतलाऊ गा

सूरज की किरणें फिर दमकी
रंगरेजों की हार हुई
केसरी पुत्र शहिद हुआ
माँ की छाती में चित्कार हुई
पिता ने समझाया
धन्य माणक तुने प्रताप जाया
देख तेरे पूत्र ने दूध न लजाया
ये शहादत अग्नी को बढाएगी
बलिवेदी पर चढ चढ कर ही
एक दिन स्वतन्त्रता चली आएगी.....

                   =  विक्रमादित्य बारहठ
                       ( रूपावास)

बुधवार, 10 मई 2017

फलक के सीने पे गर आशियां कोई बनाना है

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

फलक के सीने पे गर आशियां कोई बनाना है
परों के दम हवाओं को हरा के खुद दिखाना है

दिखाने के लिए परदे यहां  लाखों मगर फिर भी
नहीं आसां नजर से खुद की खुद को ही छिपाना है

सुनाता क्या जमाना और दास्तानें रवायत की
शरीफों को शराफत से ही आईना दिखाना है

मिलेंगे अब कहां पर दुश्मनों से खैरख्वाह मुझको
कहूं सच तो तेरी दोस्ती गरज का इक बहाना है

हसीनों ने बताया है हकीमों को इलाज ए गम
दवा हो बेअसर तो दर्द को ही आजमाना है

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*CHAMPAWAT*

मंगलवार, 9 मई 2017

वक्त  तो रेत है


*वक्त  तो रेत है*
     *फिसलता  ही  जायेगा*
     *जीवन  एक  कारवां   है*
      *चलता  चला  जायेगा*
         *मिलेंगे  कुछ खास*
      *इस  रिश्ते  के  दरमियां*
      *थाम  लेना  उन्हें  वरना*
     *कोई  लौट  के  न  आयेगा*

*जिदंगी ' बेहतर ' तब होती है.*
         *जब आप खुश होते है...*

*लेकिन जिंदगी 'बेहतरीन' तब होती है ....*
        *जब आपकी वजह से*
           *लोग खुश होते है..*        
...
                 
                        
  

जज्बात

*सभी सहेलियों  को समर्पित*

मैं तुमसे बेहतर लिखती हूँ ,
   पर जज्बात तुम्हारे अच्छे हैं !

मैं तुमसे बेहतर दिखती हूँ ,
   पर अदा तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं खुश हरदम रहती हूँ ,
   पर मुस्कान तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं अपने उसूलों पर चलती हूँ ,
   पर ज़िद तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं एक बेहतर शख्सियत हूँ ,
   पर सीरत तुम्हारी अच्छी  हैं

मैं आसमान की चाह रखती हूँ,
   पर उड़ानें तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं तुमसे बहुत बहस करती  हूँ ,
   पर दलीलें तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं तुमसे बेहतर गाती हूँ ,
   पर धुन तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं गज़ल खूब कहती हूँ,
   पर तकरीर तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं कितना भी कुछ कहती रहूँ ,
   पर हर बात तुम्हारी अच्छी हैं !