गुरुवार, 25 मई 2017

रवायत अजब ही रही जिंदगी की

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

रवायत अजब ही रही जिंदगी की
हुई ना ये अपनी जहां में किसी की

सितारे बिछाने में मसरूफ था वो
तलब आसमां को कहां थी जमीं की

करम फर्ज अहसान के नाम पर ही
लगी कीमतें फिर मेरी बेकसी की

हुआ फैसला रंजिशे इश्क का यूं
सुलह मैंने तो जंग उसने नहीं की

यकीन था मगर जिक्र मेरा हुआ नहीं
छिड़ी दास्तां फिर से उसी अजनबी की

©©©©©©©
*CHAMPAWAT*

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