बुधवार, 31 मई 2017

हवा का रुख

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

हवा का रुख नहीं वो अब संभल जा
जमाने को बदल या खुद बदल जा

नहीं चालाकियां ये तेरे बस की
तू तो मासूम बच्चे सा मचल जा

मिलेगा कौन तुझको तुझसा बहशी
जहां में खोजने खुद को निकल जा

ज़माने से ज़मी बंजर है दिल की
कि दरिया सा किनारों से उबल जा

सुलगता ही रहा बन के धुँआ सा
दहकना लाज़मीं तेरा तू जल जा

©©©©©©©
*CHAMPAWAT*

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