पेश ए. खिदमत
❤ दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..
लग रही है अजनबी सी वादियां
बेरहम है वक्त की यह आंधियां
उड़ गई शाखों से सारी बुलबुलें
कह रही है फूल से यूं तितलियां
ए सियासत ! क्यों तुझे था लाजमी
मौत पर मेरी बजाना तालियां
रास आएेंगें तुझे ये हौसले
आ सजा दे लब पे मेरे सिसकियां
हो गई मसमूम सारी जिंदगी
क्या बिगाड़ेगी अब मेरा ये तल्खियां
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*CHAMPAWAT*
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