मंगलवार, 1 नवंबर 2016

दिया उम्मीद का..

जरा सलीके से बटोरना, बुझे दीयों को दोस्तों,

इन्होंने अमावस की अँधेरी रात में हमें रौशनी दी थी,

किसी और को जलाकर खुश होना अलग बात है,

इन्होंने तो खुद को जलाकर हमें खुशी दी थी.....

एक दिया उम्मीद का..

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