बुधवार, 23 नवंबर 2016

बच्चे सा

❤❤ दिल की देहरी से ❤❤

कुछ स्पंदन

चलो आज किसी बच्चे सा मचल कर देखें
फिर बातों ही बातों में बहल कर देखें
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ज़माने को बदलने में तो नाकाम रहे
अब क्यों ना आज खुद को बदल कर देखें
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कहते हैं लोग कि इश्क आग का दरिया है
आओ इस पर भी कुछ कदम चल कर देखें
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हर नफ़स एक नयी इन्तिहां होती है
इस ज़िंदगी के सांचों में ढल कर देखें
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परवानों के हक़ में यह हंगामा क्यों
श़ब भर कभी शम्मा की तरह जल कर देखें
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तारीकियों में  बेपनाह नूर सिमटा है
ज़िस्मों की हद से बाहर निकल कर देखे
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*रतनसिंह चंपावत कृत*

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