*हज़ार-पाँच सौ के दोहे:*
'छुट्टे' कहें 'हज़ार' से, काहे अकड़ दिखाय ।
क्या जाने कब फेंकना, रद्दी में पड़ जाय ।।
घरवाला क्या जान सके, घरवाली की पीर ।
रात रायता हो गई, दिन-दिन जोड़ी खीर ।।
रातों-रात बदल गयी, बस्ती की तस्वीर ।
साहब ठन-ठन हो गए, धनपति हुए फ़क़ीर ।।
सौ, हज़ार दोऊ पड़े, काको लियूँ उठाय ।
क़ीमत सौ के नोट की, मोदी दियो बताय ।।
लंबी लाइन में खड़े, कितनों के अरमान ।
सकल बैंक तीरथ हुए, एटीएम भगवान ।।
काले धन को रोकने, सभी लगाएँ ज़ोर ।
डाल-डाल कानून है, पात-पात पर चोर ।।
लाख टके के प्रश्न पर, हर कोई है मौन ।
दो हज़ार के नोट की, रिश्वत रोके कौन ?
थैलसीमिया-सा करे, काला धन व्यवहार ।
'ख़ून' बदलना है फ़क़त, अस्थायी उपचार ।।
मोदी जी सुन लीजिये, *पुरी* की अरदास ।
जल्दी नोट छपाइये, बचा न कुछ भी पास ।।
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