नैननि पिय मूरति बसै, तेहि रस रहै समाय
ये लच्छन सुनि प्रेम के, और न कछु सुहाय
और न कछु सुहाय, फिरै अपनौ मदमातौ
कुटुम्ब देह सों जाइ, टूटि सबहि बिधि नातौ
जहँ जहँ पिय की बात सुनै, खोजत तिन गैननि
छिन छिन प्रति ध्रुव लेत प्रेम जल भरि भरि नैननि
कहा कहौं गति प्रेम की, बढ़ी चाह की पीर
लोचन भूखे रुप के, भरि भरि ढारत नीर
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