बुधवार, 21 दिसंबर 2016

तलाश

दिल की देहरी से
❤❤ कुछ स्पंदन❤❤
यहां बुझी न बुझी तश्नगी वहाँ मेरी
न जाने ले गई मुझ को तलाश कहाँ मेरी

निगाह की जुम्बिश में बयां हुआ सब कुछ
बड़ी़ अदा से पढ़ी उसने दास्ताँ मेरी

शुमार था उसी का नाम मेरे कातिल में
खुली नहीं फिर भी जाने क्यों जुबॉं मेरी

नज़ाकतें जितनी थी नफ़ासतें  उतनी
नसीहतें  हिज़्ब की थी कि रायगाँ मेरी

चढ़ा सुरूर कुछ ऐसा उसकी चाहत का
रही न सालिम फिर ये जि़स्मों ज़ाँ मेरी
©© *रतनसिंह चम्पावत*

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