चारुचंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है,
अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से॥
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की इन अनुपम पंक्तियों से "शरद ऋतु" के आगमन की "हार्दिक शुभकामनाऐं".....
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