सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

घर चाहे कैसा भी हो

*घर चाहे कैसा भी हो,*
*उसके एक कोने में,*
*खुलकर हंसने की जगह रखना,*

*सूरज कितना भी दूर हो, उसको घर आने का रास्ता देना,*

*कभी कभी छत पर चढ़कर*
*तारे अवश्य गिनना,*
*हो सके तो हाथ बढ़ा कर*,
*चाँद को छूने की कोशिश करना,*

*अगर हो लोगों से मिलना जुलना तो,*
*घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना,*

*भीगने देना बारिश में,*
*उछल कूद भी करने देना,*
*हो सके तो बच्चों को,*
*एक कागज़ की किश्ती चलाने देना,*

*कभी हो फुरसत,आसमान भी साफ हो,तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना*,
*हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना,*

*घर के सामने रखना एक पेड़,*
*उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य सुनना,*

*घर के एक कोने में खुलकर हँसने की जगह रखना.*

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