सर्जिकल
कवि युगराज जैन
शेर दहाड़ उठा ,
पड़ौस में पहाड़ टूटा ,
था आतंक का नासूर ,
घमंड हुआ चकनाचूर ,
कई बार दिया मौका ,
किन्तु हर बार भौंका ,
सेना पर है हमें नाज ,
जिसके पास हर इलाज ,
सर्जिकल तो केवल झांकी है ,
युद्ध तो अभी बाकी है ,
बोल युद्ध झेलेगा या सर्जिकल है काफी ,
अक्ल है तो जल्दी मांग ले माफी ,
वर्ना तेरी भी जनता तुझ पर टूट जायेगी ,
सीमाएं भी तुझसे अब रूठ जायेंगी ,
अब भी वक्त है पागलपन छोड़ दे ,
इंसानियत से नाता जोड़ दे ।
जय हिंद जय भारत
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