एक सैनिक ने क्या खूब कहा है...
किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ,
मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ,
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ,
मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ...!!
शहीदो को शत शत नमन।।
हिंदी की श्रेष्ठ कविताओं का संग्रह - वीर रस श्रृंगार रस , शिक्षक पर्व दिवस , collection of best hindi poems
एक सैनिक ने क्या खूब कहा है...
किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ,
मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ,
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ,
मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ...!!
शहीदो को शत शत नमन।।
ये एक *अंग्रेज़ी ग़ज़ल* है जो सभी रिश्ते नातों से ऊपर है और हम सब के ऊपर लागू होती है --->
एक अंग्रेज़ी ग़ज़ल
*"When I'll be dead.....,*
*Your tears will flow,..*
*But I won't know...*
*Cry for me now instead !*
(कल जब मैं मर जाऊंगा,
तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे
.....पर मुझे पता नही चलेगा
तो ....उसके बजाय मेरे लिए आज रोओ ना...)
*You will send flowers,..*
*But I won't see...*
*Send them now instead !*
(तुम मेरे लिए फूल चढ़ाओगे
.....पर मैं तो नही देखूंगा
तो .....उसके बजाय मुझे आज फूल दो ना)
*You'll say words of praise,..*
*But I won't hear..*
*Praise me now instead !*
(कल तुम मेरी तारीफ़ में लफ्ज़ बोलोगे
पर मैं तो नही सुन पाऊंगा
तो उसके बजाय आज तारीफ़ के लफ्ज़ बोलो ना)
*You'll forget my faults,..*
*But I won't know...*
*Forget them now, Instead !*
(कल तुम मेरी गलतियां भूल जाओगे
पर मुझे नही पता चलेगा,
तो उसके बजाय आज मेरी गलतियां भूल जाओ ना)
*You'll miss me then,...*
*But I won't feel...*
*Miss me now, instead*
(मेरे बाद तुम मेरे लिए तड़पोगे
पर मैं नही महसूस करूँगा
तो उसके बजाय आज मेरे लिए तड़पो ना)
*You'll wish...*
*You could have spent more time with me,...*
*Spend it now instead !!"*
(कल तुम तमन्ना करोगे की....
काश मेरे साथ और वख्त बिता पाते
तो ....उसके उसके बजाय मेरे साथ आज वख्त बिताओ ना)
Moral......
Spend time with every person you love,
Every one you care for.
Make them feel special,
For you never know when time will take them away from you......
पुरुष का श्रृंगार तो स्वयम प्रकृति ने किया है..
स्त्रीया कांच का टुकड़ा है....
.
जो मेकअप की रौशनी पड़ने पर ही चमकती है..
किन्तु पुरुष हीरा है जो अँधेरे में भी चमकता है और उसे मेकअप की कोई आवश्यकता नहीं होती।
खूबसूरत मोर होता है मोरनी नहीं.. मोर रंग बिरंगा और हरे नीले रंग से सुशोभित..
जबकि मोरनी काली सफ़ेद..
मोर के पंख होते है इसीलिए उन्हें मोरपंख कहते है....
मोरनी के पंख नहीं होते..
दांत हाथी के होते है,हथिनी के नहीं। हांथी के दांत बेशकीमती होते है।
नर हाथी मादा हाथी के मुकाबले बहुत खूबसूरत होता है।
कस्तूरी नर हिरन में पायी जाती है। मादा हिरन में नहीं।
नर हिरन मादा हिरन के मुकाबले बहुत सुन्दर होता है।
मणि नाग के पास होती है ,
नागिन के पास नहीं।
नागिन ऐसे नागो की दीवानी होती है जिनके पास मणि होती है।
रत्न महासागर में पाये जाते है, नदियो में नहीं..
और अंत में नदियो को उसी महासागर में गिरना पड़ता है।
संसार की बेशकीमती तत्व इस प्रकृति ने पुरुषो को सौंपे..
प्रकृति ने पुरुष के साथ
अन्याय नहीं किया..
9 महीने स्त्री के गर्भ में रहने के बावजूद भी औलाद का चेहरा स्वाभाव पिता की तरह होना, ये संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है..
क्योंकि पुरुष का श्रृंगार प्रकृति ने करके भेजा है,
उसे श्रृंगार की आवश्यकता नहीं...
जरूर शेयर करे पहली बार कोई लेख पुरुषो के लिए आया है
हास्य कविता **
अक्ल बाटने लगे विधाता,
लंबी लगी कतारें ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
कहीं नहीं थी नारी ।
सभी नारियाँ कहाँ रह गई.
था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
पहुँच गई थी सारी।
मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इंतजार में,
कब आएगी बारी ।
उधर विधाता ने पुरूषों में,
अक्ल बाँट दी सारी ।
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर,
जब पहुँची सब नारी ।
बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
नींद खुली ब्रह्मा की ।
पूछा कैसा शोर हो रहा है,
ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
पुरुष ले गए सारे ।
ब्रह्मा जी ने कहा देवियों ,
बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल वो मैंने,
पुरुषों में भर दी है ।
लगी चीखने महिलाये ,
ये कैसा न्याय तुम्हारा?
कुछ भी करो हमें तो चाहिए.
आधा भाग हमारा ।
पुरुषो में शारीरिक बल है,
हम ठहरी अबलाएं ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी ,
निज रक्षा कर पाएं ।
सोचकर दाढ़ी सहलाकर ,
तब बोले ब्रह्मा जी ।
एक वरदान तुम्हे देता हूँ ,
अब हो जाओ राजी ।
थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी ,
रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमंद हो,
अक्ल जायेगी मारी ।
एक औरत ने तर्क दिया,
मुश्किल बहुत होती है।
हंसने से ज्यादा महिलाये,
जीवन भर रोती है ।
ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
अक्ल हर लेगा ।
एक अधेड़ बोली बाबा ,
हंसना रोना नहीं आता ।
झगड़े में है सिद्धहस्त हम,
खूब झगड़ना भाता ।
ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
यह भी बात तुम्हारी ।
झगडे के आगे भी नर की,
अक्ल जायेगी मारी ।
ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
अंतिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हे दिए.
पूरा न्याय हमारा ।
इन अचूक शस्त्रों में भी,
जो मानव नहीं फंसेगा ।निश्चित समझो,
उसका घर नहीं बसेगा ।
कहे कवि मित्र ध्यान से,
सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
नर पर नारी भारी।
पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है..
आजकल AC के ज़माने में हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है...
अपने घर की कलह से फुरसत मिले, तो सुने..
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है...
जहां, जब, जिसका, जी चाहा थूक दिया..
आजकल हाथों में पीकदान कौन रखता है...
हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है...
बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां बाप को..
आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है....
कुछ बीज प्रेम के बो जाऊँगी |
मर कर भी अमर मैं हो जाऊँगी |
बैठ गया यदि मैल हृदय में
अपने अंसुअन से धो जाऊँगी
मैं बहुत प्रेम करती हूँ आपसे
आपके प्रेम में मैं खो जाऊँगी
कुछ गीत लिखूंगी आपके लिए ,
और चिर निद्रा में सो जाऊँगी |
भरना मांग जब सजूं चिता पर
मैं सदा सुहागन हो जाऊँगी
***********************
दिल की खिड़की से बाहर देखो ना कभी
बारिश की बूँदों सा है एहसास मेरा
घनी जुल्फों की गिरह खोलो ना कभी
बहती हवाओं सा है एहसास मेरा
छूकर देखो कभी तो मालूम होगा तुम्हें
सर्दियों की धूप सा है एहसास मेरा ।
खून जमाती ठण्ड में भी, सीना ताने खड़े हुए
बदन जलाती गर्मी में भी सीमाओं पर अड़े हुए
बाँध शहादत का सहरा, मृत्यु से ब्याह रचाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
बर्फीली वायु हो चाहे, तूफानों ने दी हो चुनौती
चाहे दुश्मन के खेमे से गोली की बौछारें होती
चाहे हो कैसी भी विपदा, पर ये ना घबराते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
माँ, पत्नी, बच्चों से दूर, राष्ट्र धर्म में रमे हुए
दिल में कितना दर्द ये पाले पर सीमा पर डंटे हुए
अपनी जान गंवाकर भी दुश्मन को धूल चटाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
धरती माँ के सच्चे बेटे, सर पर कफ़न बाँध कर बैठे
नींद नहीं उनकी आँखों में ताकि हम सब चैन से लेटे
देश की रक्षा के खातिर वे वीरगति को पाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
कुर्बानी वीरों की जीवन कितनो को दे जाती है
उनके रक्त से सिंचित धरती धन्य धन्य हो जाती है.
मौत भी क्या मारेगी उनको, जो मरकर भी जी जाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
देख तिरंगा इन वीरों को गर्वित हो लहराता है
भारत माँ का मस्तक भी शान से यूँ इठलाता है
जब-जब सीना ताने ये जीत का बिगुल बजाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
इन्हें जन्म देने वाली कोख के अहसानमंद
पत्नी और परिवार के बलिदान को शत-शत नमन
इस अतुल्य त्याग का हम मिलकर गीत गाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.
ए “सुबह ” तुम जब भी आना,
सब के लिए बस "खुशियाँ" लाना.
हर चेहरे पर “हंसी ” सजाना,
हर आँगन मैं “फूल ” खिलाना..
जो “रोये ” हैं इन्हें हँसाना.
जो “रूठे ” हैं इन्हें मनाना,
जो “बिछड़े” हैं तुम इन्हें मिलाना.
प्यारी “सुबह ” तुम जब भी आना,
सब के लिए बस “खुशिया ”ही लाना.
सुप्रभात
गुलज़ार साहब की कविता :-
गुलज़ार साहब की कविता :-
जब मैं छोटा था
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है
मेरे घर से "स्कूल" तक का
वो रास्ता,
क्या क्या
नहीं था वहां,
चाट के ठेले,
जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले
सब कुछ,
अब वहां
"मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी
सब सूना है..
शायद
अब दुनिया
सिमट रही है...
.
.
.
जब
मैं छोटा था,
शायद
शामें बहुत लम्बी
हुआ करती थीं...
मैं हाथ में
पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी
"साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो
हर शाम
थक के चूर हो जाना,
अब
शाम नहीं होती,
दिन ढलता है
और
सीधे रात हो जाती है.
शायद
वक्त सिमट रहा है..
जब
मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी
हुआ करती थी,
दिन भर
वो हुजूम बनाकर
खेलना,
वो
दोस्तों के
घर का खाना,
वो
अपने प्यार की
बातें,
वो
साथ रोना...
अब भी
मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती
जाने कहाँ है,
जब भी
"traffic signal"
पर मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,
और
अपने अपने
रास्ते चल देते हैं,
होली,
दीवाली,
जन्मदिन,
नए साल पर
बस SMS आ जाते हैं,
शायद
अब रिश्ते
बदल रहें हैं..
जब
मैं छोटा था,
तब खेल भी
अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई,
लंगडी टांग,
पोषम पा,
टिप्पी टीपी टाप.
अब
internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद
ज़िन्दगी
बदल रही है.
.
.
जिंदगी का
सबसे बड़ा सच
यही है..
जो अकसर
क़ब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर
लिखा होता है...
"मंजिल तो
यही थी,
बस
जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है...
कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल
सिर्फ सपने में ही है..
अब
बच गए
इस पल में..
तमन्नाओं से भरे
इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.
कुछ रफ़्तार
धीमी करो,
और
इस ज़िंदगी को जियो
खूब जियो ............ ।।
गुलज़ार
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है
मेरे घर से "स्कूल" तक का
वो रास्ता,
क्या क्या
नहीं था वहां,
चाट के ठेले,
जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले
सब कुछ,
अब वहां
"मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी
सब सूना है..
शायद
अब दुनिया
सिमट रही है...
.
.
.
जब
मैं छोटा था,
शायद
शामें बहुत लम्बी
हुआ करती थीं...
मैं हाथ में
पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी
"साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो
हर शाम
थक के चूर हो जाना,
अब
शाम नहीं होती,
दिन ढलता है
और
सीधे रात हो जाती है.
शायद
वक्त सिमट रहा है..
जब
मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी
हुआ करती थी,
दिन भर
वो हुजूम बनाकर
खेलना,
वो
दोस्तों के
घर का खाना,
वो
अपने प्यार की
बातें,
वो
साथ रोना...
अब भी
मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती
जाने कहाँ है,
जब भी
"traffic signal"
पर मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,
और
अपने अपने
रास्ते चल देते हैं,
होली,
दीवाली,
जन्मदिन,
नए साल पर
बस SMS आ जाते हैं,
शायद
अब रिश्ते
बदल रहें हैं..
जब
मैं छोटा था,
तब खेल भी
अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई,
लंगडी टांग,
पोषम पा,
टिप्पी टीपी टाप.
अब
internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद
ज़िन्दगी
बदल रही है.
.
.
जिंदगी का
सबसे बड़ा सच
यही है..
जो अकसर
क़ब्रिस्तान के बाहर
बोर्ड पर
लिखा होता है...
"मंजिल तो
यही थी,
बस
जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
ज़िंदगी का लम्हा
बहुत छोटा सा है...
कल की
कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल
सिर्फ सपने में ही है..
अब
बच गए
इस पल में..
तमन्नाओं से भरे
इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं.
कुछ रफ़्तार
धीमी करो,
और
इस ज़िंदगी को जियो
खूब जियो ............ ।।
गुलज़ार
बड़े बावरे हिन्दी के मुहावरे
हिंदी के मुहावरे,बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है....
कहीं पर फल है तो कहीं आटा दालें है ,
कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले है ,
फलों की ही बात ले लो....
आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,
कभी अंगूर खट्टे हैं,
कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,
कहीं दाल में काला है,
तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती,
कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो कोई लोहे के चने चबाता है,
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
मुफलिसी में जब आटा गीला होता है ,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,
सफलता के लिए बेलने पड़ते है कई पापड़,
आटे में नमक तो जाता है चल,
पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,
अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है,
गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,
और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,
कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है,
कभी ऊँट के मुंह में जीरा है ,
कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है,
किसी के दांत दूध के हैं ,
तो कई दूध के धुले हैं,
कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है,
तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है,
किसी को छटी का दूध याद आ जाता है ,
दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है ,
और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है ,
शादी बूरे के लड्डू हैं , जिसने खाए वो भी पछताए,
और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है ,
और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं,
कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है,
किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है...
कभी कोई चाय पानी करवाता है,
कोई मख्खन लगाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है ,
तो सभी के मुंह में पानी आता है,तो कभी १०० चूहें खाकर बिली हज करने चली जाती है और उलटा चोर कोतवाली को डाटता है और
चोर चोर मोसरे भाई़ बन जाते है तो
सो सुनार की ऐक लुहार की़ और
खुद गरज गधे की भी दोसती़ पकी होजाती है लेकिन आ बैल मुजे मार की कीमत भी चुकानी पडती है ।
भाई साहब अब कुछ भी हो ,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है,
जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
सब अपनी अपनी बीन बजाते है,
पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है ,
सभी बहरे है, बावरें है
ये सब हिंदी के मुहावरें हैं ..
ये गज़ब मुहावरे नहीं बुजुर्गों के अनुभवों की खान हैं....सच पूछो तो हिन्दी भाषा की जान हैं....थोड़ा आया था थोड़ा हमने जोड़ा है ...आप भी आगे बढ़ाओ ये संदेश लम्बी दौड़ का घोड़ा है।
*रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।*
*इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।*
*1.* रक्षा के लिए
*मामभिरक्षक रघुकुल नायक |*
*घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||*
*2.* विपत्ति दूर करने के लिए
*राजिव नयन धरे धनु सायक |*
*भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||*
*3.* सहायता के लिए
*मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |*
*एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||*
*4.* सब काम बनाने के लिए
*वंदौ बाल रुप सोई रामू |*
*सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||*
*5.* वश मे करने के लिए
*सुमिर पवन सुत पावन नामू |*
*अपने वश कर राखे राम ||*
*6.* संकट से बचने के लिए
*दीन दयालु विरद संभारी |*
*हरहु नाथ मम संकट भारी ||*
*7.* विघ्न विनाश के लिए
*सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |*
*राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||*
*8.* रोग विनाश के लिए
*राम कृपा नाशहि सव रोगा |*
*जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||*
*9.* ज्वार ताप दूर करने के लिए
*दैहिक दैविक भोतिक तापा |*
*राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||*
*10.* दुःख नाश के लिए
*राम भक्ति मणि उस बस जाके |*
*दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||*
*11.* खोई चीज पाने के लिए
*गई बहोरि गरीब नेवाजू |*
*सरल सबल साहिब रघुराजू ||*
*12.* अनुराग बढाने के लिए
*सीता राम चरण रत मोरे |*
*अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||*
*13.* घर मे सुख लाने के लिए
*जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |*
*सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||*
*14.* सुधार करने के लिए
*मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |*
*जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||*
*15.* विद्या पाने के लिए
*गुरू गृह पढन गए रघुराई |*
*अल्प काल विधा सब आई ||*
*16.* सरस्वती निवास के लिए
*जेहि पर कृपा करहि जन जानी |*
*कवि उर अजिर नचावहि बानी ||*
*17.* निर्मल बुद्धि के लिए
*ताके युग पदं कमल मनाऊँ |*
*जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||*
*18.* मोह नाश के लिए
*होय विवेक मोह भ्रम भागा |*
*तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||*
*19.* प्रेम बढाने के लिए
*सब नर करहिं परस्पर प्रीती |*
*चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||*
*20.* प्रीति बढाने के लिए
*बैर न कर काह सन कोई |*
*जासन बैर प्रीति कर सोई ||*
*21.* सुख प्रप्ति के लिए
*अनुजन संयुत भोजन करही |*
*देखि सकल जननी सुख भरहीं ||*
*22.* भाई का प्रेम पाने के लिए
*सेवाहि सानुकूल सब भाई |*
*राम चरण रति अति अधिकाई ||*
*23.* बैर दूर करने के लिए
*बैर न कर काहू सन कोई |*
*राम प्रताप विषमता खोई ||*
*24.* मेल कराने के लिए
*गरल सुधा रिपु करही मिलाई |*
*गोपद सिंधु अनल सितलाई ||*
*25.* शत्रु नाश के लिए
*जाके सुमिरन ते रिपु नासा |*
*नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||*
*26.* रोजगार पाने के लिए
*विश्व भरण पोषण करि जोई |*
*ताकर नाम भरत अस होई ||*
*27.* इच्छा पूरी करने के लिए
*राम सदा सेवक रूचि राखी |*
*वेद पुराण साधु सुर साखी ||*
*28.* पाप विनाश के लिए
*पापी जाकर नाम सुमिरहीं |*
*अति अपार भव भवसागर तरहीं ||*
*29.* अल्प मृत्यु न होने के लिए
*अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |*
*सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||*
*30.* दरिद्रता दूर के लिए
*नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |*
*नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||*
*31.* प्रभु दर्शन पाने के लिए
*अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |*
*प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||*
*32.* शोक दूर करने के लिए
*नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |*
*आए जन्म फल होहिं विशोकी ||*
*33.* क्षमा माँगने के लिए
*अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |*
*क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||*
*पेट खाली* है
और........ *योग* करवाया जा रहा है....,
*जेब खाली*और....... *खाता* खुलवाया जा रहा है.....,
रहने का *घर नहीं*और....... *शौचालय* बनवाया जा रहा है......
गाँव मे *बिजली नही*और... *डिजिटल India* बन रहा है.....
कंपनीया सारी *विदेशी*और........मेक इन *India* कर रहा है.....
जाति कि *गंदगी दिमाग मे* हैऔर..... *स्वच्छ भारत* अभियान चल रहा है.....
*आटा* दिनो दिन महंगा हो रहा है,और....... *डाटा* सस्ता कर रहे है.....
*सचमुच देश बदल रहा है.....!!!*
सादर वन्दे
जो भरानहीं भावोंसे उसमे बहती रसधारनहीं
हृदयनहीं पत्थरहै जिसमे स्वदेशका प्यारनहीं
*हिन्दीभाषा नहीं भावों की अभिव्यक्ति है*
*यह मातृभूमि पर मर मिटने की भक्ति है.!*
आपको मातृभाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं
*वन्देमातरम*
संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।
पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।
वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।
प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष को दूर करने में जितनी सहायता हमे हिन्दी के प्रचार से मिलेगी , उतनी किसी चीज से नही मिल सकती, अपनी प्रांतीय भाषाओं की भरपूर उन्नती कीजिये उसमे कोई बाधा नही डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते है , पर सारे प्रान्तों की सार्वजानिक भाषा का पद हिन्दी या हिदुस्तानी को ही मिला है
*नेताजी सुभाष चंद्र बोस*
दादी माँ बनाती थी.. रोटी !!
पहली.. गाय की ,
और आखरी.. कुत्ते की..!
हर सुबह.. नन्दी आ जाता था ,
दरवाज़े पर.. गुड़ की डली के लिए..!
कबूतर का.. चुग्गा ,
चीटियों.. का आटा..!
शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा.. सरसों का तेल ,
गली में.. काली कुतिया के ब्याने पर.. चने गुड़ का प्रसाद..!
सब कुछ.. निकल आता था !
वो भी उस घर से..,
जिसमें.. भोग विलास के नाम पर.. एक टेबल फैन भी न था..!
आज..
सामान से.. भरे घरों में..
कुछ भी.. नहीं निकलता !
सिवाय लड़ने की.. कर्कश आवाजों के.!
....हमको को आज भी याद है -
मकान चाहे.. कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे.. सच्चे थे..!!
चारपाई पर.. बैठते थे ,
दिल में प्रेम से.. रहते थे..!
सोफे और डबल बैड.. क्या आ गए ?
दूरियां हमारी.. बढा गए..!
छतों पर.. सब सोते थे !
बात बतंगड.. खूब होते थे..!
आंगन में.. वृक्ष थे ,
सांझे.. सबके सुख दुख थे..!
दरवाजा खुला रहता था ,
राही भी.. आ बैठता था...!
कौवे छत पर.. कांवते थे
मेहमान भी.. आते जाते थे...!
एक साइकिल ही.. पास था ,
फिर भी.. मेल जोल का वास था..!
रिश्ते.. सभी निभाते थे ,
रूठते थे , और मनाते थे...!
पैसा.. चाहे कम था ,
फिर भी..
माथे पे.. ना कोई गम था..!
मकान चाहे.. कच्चे थे ,
पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!!
अब शायद..सब कुछ पा लिया है !
पर..
लगता है कि.. बहुत कुछ गंवा दिया!!!
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