बुधवार, 12 जुलाई 2017

You Start Dying Slowly

नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..

1) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।

2) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।

3) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।

4) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।

5) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
*तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!*

इस सुन्दर कविता के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।।

शनिवार, 1 जुलाई 2017

बिखरे काग़ज़ पे

बिखरे काग़ज़ पे कूँचियाँ  ,कलर ट्यूब
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते हैं यह मुझसे
मेरे बच्चों ने खयालों को अपने कुछ रंगो से भरा है

चादर की सिलवटों पे औंधे पड़े तकिये
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते हैं यह मुझसे
मेरे बच्चों ने रात को अपने कुछ ख़्वाबों से छुआ है

बेतरतीब रखी किताबों से झाँकते बुकमार्क
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते है यह मुझसे
मेरे बच्चों ने दुनिया को अपने कुछ सवालों से टटोला है

पसीने से भीगे कपड़े , गर्द मे लिपटे जूते
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते है यह मुझसे
मेरे बच्चों ने माटी को अपने कुछ खेलों से छुआ है

दिवार से टिका गिटार, कोने में रखा पयानो
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते हैं यह मुझसे
मेरे बच्चों ने हवा को अपने कुछ सुरों से सुना है

छेदों से भरे यहाँ वहाँ से झाँकते टारगेट पेपर
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते हैं यह मुझसे
मेरे बच्चों नें ध्यान से अपने कुछ लक्ष्यों को भेदा है

मर्तबान के अधखुले ढक्कन , झूठे बर्तन
अच्छे लगते हैं मुझे
कहते हैं यह मुझसे
मेरे बच्चों ने भूख को अपने कुछ स्वाद से चखा है

बिखरा घर, खुल-बंद  का शोर करते  दरवाज़े
अच्छे लगते है मुझे
कहते है यह मुझसे
मेरे बच्चों ने जीवन को अपने कुछ अंदाज से जिया है

एक दिन न शोर होगा न फैला सामान होगा
अच्छा लगेगा मुझे तब भी
कहेगा मौन घर तब मुझसे
मेरे बच्चों ने आसमां को अपने कुछ हौसलों की परवाज़ से चूमा है

समेट लूँगी यह सामान घर की ख़ामोशी में
सजा दूँगी दिवारों को यादों से
पर तब तक यूँ ही उथल पथल सी रहने दो
मेरे बच्चों का बचपन यूँ फैला सा अच्छा लगता है मुझे
‍‍‍‍‍‍

बुधवार, 31 मई 2017

अजनबी सी वादियां

पेश ए. खिदमत

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

लग रही है अजनबी सी वादियां
बेरहम है वक्त की यह आंधियां

उड़ गई शाखों से सारी बुलबुलें
कह रही है फूल से यूं तितलियां

ए सियासत ! क्यों तुझे था लाजमी
मौत पर मेरी बजाना तालियां

रास आएेंगें तुझे ये हौसले
आ सजा दे लब पे मेरे सिसकियां

हो गई मसमूम सारी जिंदगी
क्या बिगाड़ेगी अब मेरा ये तल्खियां

©©©©©©©
*CHAMPAWAT*

जिंदगी ने दिया है जब इतना बेशुमार

जिंदगी ने दिया है जब इतना बेशुमार यहाँ,
तो फिर जो नहीं मिला उसका हिसाब क्या रखें ....

खुशी के दो पल काफी हैं, खिलने के लिये,
तो फिर उदासियों का हिसाब क्या रखें......

हसीन यादों के मंजर इतने हैं जिंदगानी में,
तो चंद दुख की बातों का हिसाब क्या रखें ......

मिले हैं फूल यहाँ इतने किन्हीं अपनों से,
फिर काँटों की चुभन का हिसाब क्या रखें .....

चाँद की चाँदनी जब इतनी दिलकश है,
तो उसमें भी दाग है, ये हिसाब क्या रखें.....

कुछ तो जरूर बहुत अच्छा है सभी में यारों,
फिर जरा सी बुराइयों का हिसाब क्या रखें..... !!

हवा का रुख

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

हवा का रुख नहीं वो अब संभल जा
जमाने को बदल या खुद बदल जा

नहीं चालाकियां ये तेरे बस की
तू तो मासूम बच्चे सा मचल जा

मिलेगा कौन तुझको तुझसा बहशी
जहां में खोजने खुद को निकल जा

ज़माने से ज़मी बंजर है दिल की
कि दरिया सा किनारों से उबल जा

सुलगता ही रहा बन के धुँआ सा
दहकना लाज़मीं तेरा तू जल जा

©©©©©©©
*CHAMPAWAT*

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....

Harivansh Rai Bachhan's poem...

मै यादों का
किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत
याद आते हैं....

...मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....

.....अब जाने कौन सी नगरी में,
आबाद हैं जाकर मुद्दत से....

....मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं....

....कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
....कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
....मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
....कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.

....सबकी जिंदगी बदल गयी,
....एक नए सिरे में ढल गयी,

....किसी को नौकरी से फुरसत नही...
....किसी को दोस्तों की जरुरत नही....

....सारे यार गुम हो गये हैं...
.... "तू" से "तुम" और "आप" हो गये है....

....मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं....

...धीरे धीरे उम्र कट जाती है...
...जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,
...कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है...
और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है ...

.....किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
....फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते...

.....जी लो इन पलों को हस के दोस्त,
फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ....

......हरिवंशराय बच्चन

dedicated to all beautiful people..

गुरुवार, 25 मई 2017

रवायत अजब ही रही जिंदगी की

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

रवायत अजब ही रही जिंदगी की
हुई ना ये अपनी जहां में किसी की

सितारे बिछाने में मसरूफ था वो
तलब आसमां को कहां थी जमीं की

करम फर्ज अहसान के नाम पर ही
लगी कीमतें फिर मेरी बेकसी की

हुआ फैसला रंजिशे इश्क का यूं
सुलह मैंने तो जंग उसने नहीं की

यकीन था मगर जिक्र मेरा हुआ नहीं
छिड़ी दास्तां फिर से उसी अजनबी की

©©©©©©©
*CHAMPAWAT*

बुधवार, 24 मई 2017

कुँवर प्रताप सिंह बारहठ के शहादत दिवस पर श्रदांजलि

बरेली की काल कोठरी में
जहाँ सूरज कम निकलता था
छेदों की रोशनी में
वो फिर अपना दम भरता था

हुँकार करता ,हुँकार भरता
अपना वजूद बताता था
था सिंग मेवाड का
आजादी का दिवाना था

गोरों की यातनाओं ने
उसका मन तोडा नहीं
राज था जो मन में
उसने कभी खोला नहीं

देख प्रताप अभी बता दे
जिन्दगी अभी लम्बी है
बोल कहा कहा ठिकाने है
कितने तेरे संगी है

तेरे पिता को मिलेगी जागीर वापस
सोने का तेरा सूरज होगा
राज सब बता दे
लाख पसार तेरा यश होगा

प्रलोभन कोई हिला न पाया
फिर अंग्रेज गुरराया
देख पगले तुझे प्यार है तेरी माँ से
तेरी माँ अब सब दिन रोती है
छोड चुकी खाना पिना
अपनी आँखे भिगोती है
तु भी है अब अधमरा
कुछ प्राप्त तुमकों होगा नही
कल सुबह तक राज बता देना
देगे हम भी धोखा नही

सुबह छेद की किरण से
उसने फिर हूँकार भरी
आँखे उसकी फिर उठी
उसने फिर आवाज भरी

आज अगर नहीं बताऊ
नाम अपने मतवालों के
तो सिर्फ मेरी माँ रोयेगी
गर बता दू तो
जाने कितनी माएँ रोएगी
मैं तुमसे पार पडुगा नही
तुम्हारें अत्याचारों से हिलुगा नहीं
हुँ सिर्फ भारत माँ का बेटा आज
बलिवेदी पर चढ़ जाऊगा
नाम मेरा सिंग प्रताप
बस ये तुम्हें बतलाऊ गा

सूरज की किरणें फिर दमकी
रंगरेजों की हार हुई
केसरी पुत्र शहिद हुआ
माँ की छाती में चित्कार हुई
पिता ने समझाया
धन्य माणक तुने प्रताप जाया
देख तेरे पूत्र ने दूध न लजाया
ये शहादत अग्नी को बढाएगी
बलिवेदी पर चढ चढ कर ही
एक दिन स्वतन्त्रता चली आएगी.....

                   =  विक्रमादित्य बारहठ
                       ( रूपावास)

बुधवार, 10 मई 2017

फलक के सीने पे गर आशियां कोई बनाना है

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

फलक के सीने पे गर आशियां कोई बनाना है
परों के दम हवाओं को हरा के खुद दिखाना है

दिखाने के लिए परदे यहां  लाखों मगर फिर भी
नहीं आसां नजर से खुद की खुद को ही छिपाना है

सुनाता क्या जमाना और दास्तानें रवायत की
शरीफों को शराफत से ही आईना दिखाना है

मिलेंगे अब कहां पर दुश्मनों से खैरख्वाह मुझको
कहूं सच तो तेरी दोस्ती गरज का इक बहाना है

हसीनों ने बताया है हकीमों को इलाज ए गम
दवा हो बेअसर तो दर्द को ही आजमाना है

©©©©©©©©
*CHAMPAWAT*

मंगलवार, 9 मई 2017

वक्त  तो रेत है


*वक्त  तो रेत है*
     *फिसलता  ही  जायेगा*
     *जीवन  एक  कारवां   है*
      *चलता  चला  जायेगा*
         *मिलेंगे  कुछ खास*
      *इस  रिश्ते  के  दरमियां*
      *थाम  लेना  उन्हें  वरना*
     *कोई  लौट  के  न  आयेगा*

*जिदंगी ' बेहतर ' तब होती है.*
         *जब आप खुश होते है...*

*लेकिन जिंदगी 'बेहतरीन' तब होती है ....*
        *जब आपकी वजह से*
           *लोग खुश होते है..*        
...
                 
                        
  

जज्बात

*सभी सहेलियों  को समर्पित*

मैं तुमसे बेहतर लिखती हूँ ,
   पर जज्बात तुम्हारे अच्छे हैं !

मैं तुमसे बेहतर दिखती हूँ ,
   पर अदा तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं खुश हरदम रहती हूँ ,
   पर मुस्कान तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं अपने उसूलों पर चलती हूँ ,
   पर ज़िद तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं एक बेहतर शख्सियत हूँ ,
   पर सीरत तुम्हारी अच्छी  हैं

मैं आसमान की चाह रखती हूँ,
   पर उड़ानें तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं तुमसे बहुत बहस करती  हूँ ,
   पर दलीलें तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं तुमसे बेहतर गाती हूँ ,
   पर धुन तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं गज़ल खूब कहती हूँ,
   पर तकरीर तुम्हारी अच्छी हैं !

मैं कितना भी कुछ कहती रहूँ ,
   पर हर बात तुम्हारी अच्छी हैं !

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

सखी री .....

सखी री .....

कह दे दिल की बात सखी री
काहे को सकुचात सखी री

प्रेम पथिक आने को सुनि के
मन मयूर हरषात सखी री

मधुर हास नयना कजरारे
पुलकित कोमल गात सखी री

मुक्त मुखर मन मुदित अति मम
अंग अनंग मुसकात सखी री

मन आँगन में आहट उनकी
विकल मोहि कर जात सखी री

का से कहूँ मैं विरह वेदना 
तरुण तृषा तरसात सखी री

प्रिय पाँहुन आये नहीं अजहूं
बीती सारी रात सखी री

©© रतनसिंह चम्पावत कृत©©

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

तराना

मेरी गजल

प्रेम का रिश्ता मनाना हो गया।
मुस्कुराये इक जम़ाना हो गया।

चुप हुए तो लोग  कहने  यूं लगे
हर तरीका अब बहाना हो गया।

चल रहे थे साथ बनकर साज से
जब सजी  यादें तराना हो गया।

बिन कहे जज्बात भी कहने लगा
आज ये  बच्चा सयाना हो गया।

कर रही हूँ गलतियां उनकी नजर
आज 'दीपा' फिर फसाना हो गया ।

दीपा परिहार

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

आगे सफर था और पीछे हमसफर था...

क्या खूब लिखा है किसी ने...

आगे सफर था और पीछे हमसफर था...

रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता...

मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी...

ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...

मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था

रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते...

यूँ समँझ लो,

प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी मे जहर था...

पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...


बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए...
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए...

वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता...
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता

सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर...


"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है...

"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,

पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया...

अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा...


लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ...

बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है...

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...

दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...

बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी...

भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की...

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है...

हंसने की इच्छा ना हो,
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो..?
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों,
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है...

"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती,
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट, ये ढूँढ रहे हैं की
मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...

पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं...

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ,
कि...

पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम...

गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने,
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम..
_▄▄_
(●_●)
╚═►

Anil Jangid

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

वह कहता था, वह सुनती थी

वह कहता था,
वह सुनती थी,

जारी था एक खेल
कहने-सुनने का।

खेल में थी दो पर्चियाँ
एक में लिखा था ‘कहो’,
एक में लिखा था ‘सुनो’

अब यह नियति थी
या महज़ संयोग.. ?

उसके हाथ लगती रही वही पर्ची
जिस पर लिखा था ‘सुनो’

वह सुनती रही
उसने सुने आदेश
उसने सुने उपदेश

बन्दिशें उसके लिए थीं
उसके लिए थीं वर्जनाएँ

वह जानती थी,
'कहना-सुनना'
नहीं हैं केवल क्रियाएं

राजा ने कहा,
'ज़हर पियो'
वह मीरा हो गई

ऋषि ने कहा,
'पत्थर बनो'
वह अहिल्या हो गई

प्रभु ने कहा,
'निकल जाओ'
वह सीता हो गई

चिता से निकली चीख,
किन्हीं कानों ने नहीं सुनी
वह सती हो गई

घुटती रही उसकी फरियाद,
अटके रहे शब्द,

सिले रहे होंठ,
रुन्धा रहा गला।

उसके हाथ
कभी नहीं लगी वह पर्ची,
जिस पर लिखा था, ‘कहो'

-अमृता प्रीतम-

तेरी बुराइयों को

*'कुछ पंक्तिया विचार करने लायक'*

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है।

ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,l
तू बच्ची को भी हुस्न ए बहार कहता है।

थक गया है हर शख़्स काम करते करते,
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।

गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।

जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है।

वो मिलने आते तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,
अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।

बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में।
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है।

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।         

गुरुवार, 9 मार्च 2017

कैसे जीना

*कैसे जीना*

कुछ हँस के
     बोल दिया करो,
कुछ हँस के
      टाल दिया करो,
यूँ तो बहुत
    परेशानियां है
तुमको भी
     मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
     वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
    हंसाने वाला मिले न मिले..
इसलिये आज ही
      हसरत निकाल लिया करो !!
समझौता
      करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा 
      झुक जाना
किसी रिश्ते को
         हमेशा के लिए
तोड़ देने से
           बहुत बेहतर है ।।।
किसी के साथ
     हँसते-हँसते
उतने ही हक से
      रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का
     पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
      रिश्तेदारी और
दोस्ती में
    कैसा मान अपमान ?
बस अपनों के 
     दिल मे रहना
आना चाहिए...!
                                       - गुलज़ार

बुधवार, 8 मार्च 2017

थकी हारी

जब दिन भर की थकी हारी पड़ती हूँ बिस्तर पर
तब थकावट नहीं एक संतुष्टि का भाव उमड़ता है
कि चलो आज का दिन बीत गया हँसते मुस्कुराते
अपनों का जीवन सरल सुगम बनाते बनाते
पैरों की खींचती हुई सी नसें कमर की अकड़न
याद दिलाती हैं कि कैसे चंचल हिरणी की तरह
दौड़ भाग कर सबकी जरूरतें पूरी की
एक संतुष्टि एक खुशी अपनों के लिए
रात बिस्तर पर पडे-पडे भी कल का मैन्यु तय करती हूँ
आहा मैं भी ना कमाल हूँ  मुझसे ही तो मकान घर है ना ……
हे ईश्वर ! तुझे लाखों प्रणाम  कि तूने मुझे स्त्री बनाया
ये संतुष्टि बिन स्त्री बने शायद  ना मिल पाती…………
मैं खुश हूँ मैं स्त्री हूँ ..नाज है मुझे मेरे स्त्रीत्व पर ……
और अपनी हर सहेली पर जो मेरी तरह ही एक स्त्री है.....

बुधवार, 1 मार्च 2017

मारवाड़ी भाषा रो आणंद

-: मारवाड़ी भाषा रो आणंद :-

भाईचारो मरतो दीखे,
पईसां लारे गेला होग्या।

घर सुं भाग गुरुजी बणग्या,
चोर उचक्का चेला होग्या।

चंदो खार कार में घुमे,
भगत मोकळा भेळा होग्या।

कम्प्यूटर रो आयो जमानो,
पढ़ लिख ढ़ोलीघोड़ा होग्या।

पढ़ी-लिखी लुगायां ल्याया
काम करण रा फोङा होग्या ।

घर-घर गाड़ी-घोड़ा होग्या,
जेब-जेब मोबाईल होग्या।

छोरयां तो होती आई पण
आज पराया छोरा होग्या।

राल्यां तो उधड़बा लागी,
न्यारा-न्यारा डोरा होग्या।

इतिहासां में गयो घूंघटो,
पाऊडर पुतिया मूंडा होग्या।

झरोखां री जाल्यां टूटी,
म्हेल पुराणां ढूंढा होग्या।

भारी-भारी बस्ता होग्या,
टाबर टींगर हळका होग्या।

मोठ बाजरी ने कुण पूछे,
पतळा-पतळा फलका होग्या।

रूंख भाडकर ठूंठ लेग्या
जंगळ सब मैदान होग्या।

नाडी नदियां री छाती पर
बंगला आलीशान होग्या।

मायड़ भाषा ने भूलग्या,
अंगरेजी का दास होग्या।

पूण कका रा आवे कोनी,
ऐमे बी.ए. पास होग्या।

सत संगत व्यापार होग्यो,
बिकाऊ ए भगवान होग्या।

आदमी रा नाम बदलता आया,
देवी देवता रा नाम बदलग्या।

भगवा भेष ब्याज रो धंधो,
धरम बेच धनवान होग्या।

ओल्ड बोल्ड मां बाप होग्या,
सासु सुसरा चौखा होग्या।

सेवा रा सपनां देख्या पण
आंख खुली तो धोखा होग्या।

बिना मूँछ रा मरद होग्या,
लुगायां रा राज होग्या।

दूध बेचकर दारू ल्यावे,
बरबादी रा साज होयग्या।

तीजे दिन तलाक होयग्यों,
लाडो लाडी न्यारा होग्या।

कांकण डोरां खुलियां पेली,
परण्या बींद कंवारा होग्या।

बिना रूत रा बेंगण होग्या,
सियाळा में आम्बा होग्या।

इंजेक्शन सूं गोळ तरबूज,
फूल-फूल कर लम्बा होग्या।

दिवलो करे उजास जगत में,
खुद रे तळे अंधेरा होग्या।

मन मरजीरा भाव होग्या,
पंसेरी रा पाव होग्या ।

थे पढ़र मजो ल्यो, और आगै भेजो ओ सन्देशो तो जरूर नवो होसी ।

घणा घणा रामरामसा          

सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

विभत्स हूँ... विभोर हूँ...

विभत्स हूँ... विभोर हूँ...
मैं समाधी में ही चूर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

घनघोर अँधेरा ओढ़ के...
मैं जन जीवन से दूर हूँ...
श्मशान में हूँ नाचता...
मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

साम – दाम तुम्हीं रखो...
मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

चीर आया चरम में...
मार आया “मैं” को मैं...
“मैं” , “मैं” नहीं...
”मैं” भय नहीं...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

जो सिर्फ तू है सोचता...
केवल वो मैं नहीं...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मैं काल का कपाल हूँ...
मैं मूल की चिंघाड़ हूँ...
मैं मग्न...मैं चिर मग्न हूँ...
मैं एकांत में उजाड़ हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मैं आग हूँ...
मैं राख हूँ...
मैं पवित्र राष हूँ...
मैं पंख हूँ...
मैं श्वाश हूँ...
मैं ही हाड़ माँस हूँ...
मैं ही आदि अनन्त हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मुझमें कोई छल नहीं...
तेरा कोई कल नहीं...
मौत के ही गर्भ में...
ज़िंदगी के पास हूँ...                       
अंधकार का आकार हूँ...
प्रकाश का मैं प्रकार हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मैं कल नहीं मैं काल हूँ...
वैकुण्ठ या पाताल नहीं...
मैं मोक्ष का भी सार हूँ...    
मैं पवित्र रोष हूँ...
मैं ही तो अघोर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

*अग्रिम शुभकामनाये
*महाशिवरात्रि महापर्व की *

कभी- कभी  तो दिल की भी मान लिया कर!

कभी- कभी  तो दिल की भी मान लिया कर!

गिरधर दान रतनू दासोड़ी

कभी- कभी तो दिल की भी मान लिया कर!
मुरझे हुए चेहरों पर भी मुस्कान दिया कर!!

निष्ठुरता से बने रिस्ते भी भूल जाते हैं लोग!
उत्साह उमंगों की तरंगों का छात तान लिया कर!!

अपनी मस्ती में मस्त में  रहना भी ठीक नहीं यार!
कभी कभी दूसरों के देख अरमान लिया कर!!

लोगों की बातों का क्या ?वो होती रहती है!
अपनी  बातों को सुनाने की कभी ठान लिया कर!!

ये जो चमक दिखाई दे रही है चौंधियाती सी!
ऊपर के मुखौटे भी कभी तो पहचान लिया कर!!

अखबारों की कतरनों पर इठलाने की मत कर!
हकीकत धरातल की सत्यता भी जान लिया कर!!

ज्यादा तानने से जंजीरें भी टूट जाती है यार!
दूसरों के भावों को भी कभी तो सम्मान दिया कर!!

पस्त करने की मंशा से हौंसले पस्त नहीं होते!!
ऐसे में रतनू जोश से जूझने की ठान लिया कर!!

गिरधर दान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

खुद के अवगुण खोजिये.

खुद के अवगुण खोजिये. ,
दूजै के गुण देख. !!
जदे सारथक जांणिये. ,
साचो जीवन शेख. !!1!!

अवगुण देखे और के. ,
तब कां मिळसी तोय. !!
परनिन्दा कज्ज प्रांणिया ,
हांण तिहारी होय  !!2!!

जो तूं चाहै जगत में. ,
भल्ल हुवै तव भाग. !!
श्रीहरी ने समरतां  ,
तन मन अवगुण त्याग. !!3!!

हेत राख भजिये हरी  ,
तजिये दोष तमाम. !!
लगन धार मन लीजिये. ,
रजिये ऐको राम. !!4!!

ध्यान राख नह धोविये  ,
मिनखां तणो ज मेल. !!
परनिन्दा तणें पाप सूं  ,
खोटा होसी खेल. !!5!!
मीठा मीर डभाल

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

ऐ मेरे स्कूल मुझे, जरा फिर से तो बुलाना.

*ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना..*

कमीज के बटन
ऊपर नीचे लगाना,
वो अपने बाल
खुद न काढ़ पाना,
पी टी शूज को
चाक से चमकाना,
वो काले जूतों को
पैंट से पोंछते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो बड़े नाखुनों को
दांतों से चबाना,
और लेट आने पर
मैदान का चक्कर लगाना,
वो प्रेयर के समय
क्लास में ही रुक जाना,
पकड़े जाने पर
पेट दर्द का बहाना बनाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो टिन के डिब्बे को
फ़ुटबाल बनाना,
ठोकर मार मार कर
उसे घर तक ले जाना,
साथी के बैठने से पहले
बेंच सरकाना,
और उसके गिरने पे
जोर से खिलखिलाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

गुस्से में एक-दूसरे की
कमीज पे स्याही छिड़काना,
वो लीक करते पेन को
बालों से पोंछते जाना,
बाथरूम में सुतली बम पे
अगरबत्ती लगाकर छुपाना,
और उसके फटने पे
कितना मासूम बन जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे'*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो Games Period
के लिए Sir को पटाना,
Unit Test को टालने के लिए
उनसे गिड़गिड़ाना,
जाड़ो में बाहर धूप में
Class लगवाना,
और उनसे घर-परिवार के
किस्से सुनते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना...*

वो बेर वाली के बेर
चुपके से चुराना,
लाल–पीला चूरन खाकर
एक दूसरे को जीभ दिखाना,
खट्टी मीठी इमली देख
जमकर लार टपकाना,
साथी से आइसक्रीम खिलाने
की मिन्नतें करते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो लंच से पहले ही
टिफ़िन चट कर जाना,
अचार की खुशबू
पूरे Class में फैलाना,
वो पानी पीने में
जमकर देर लगाना,
बाथरूम में लिखे शब्दों को
बार-बार पढ़के सुनाना...

ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना...

वो Exam से पहले
गुरूजी के चक्कर लगाना,
लगातार बस Important
ही पूछते जाना,
वो उनका पूरी किताब में
निशान लगवाना,
और हमारा ढेर सारे Course
को देखकर सर चकराना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो मेरे स्कूल का मुझे,
यहाँ तक पहुँचाना,
और मेरा खुद में खो
उसको भूल जाना,
बाजार में किसी
परिचित से टकराना,
वो जवान गुरूजी का
बूढ़ा चेहरा सामने आना...
तुम सब अपने स्कूल
एक बार जरुर जाना...