शनिवार, 22 अप्रैल 2017

सखी री .....

सखी री .....

कह दे दिल की बात सखी री
काहे को सकुचात सखी री

प्रेम पथिक आने को सुनि के
मन मयूर हरषात सखी री

मधुर हास नयना कजरारे
पुलकित कोमल गात सखी री

मुक्त मुखर मन मुदित अति मम
अंग अनंग मुसकात सखी री

मन आँगन में आहट उनकी
विकल मोहि कर जात सखी री

का से कहूँ मैं विरह वेदना 
तरुण तृषा तरसात सखी री

प्रिय पाँहुन आये नहीं अजहूं
बीती सारी रात सखी री

©© रतनसिंह चम्पावत कृत©©

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