जब दिन भर की थकी हारी पड़ती हूँ बिस्तर पर
तब थकावट नहीं एक संतुष्टि का भाव उमड़ता है
कि चलो आज का दिन बीत गया हँसते मुस्कुराते
अपनों का जीवन सरल सुगम बनाते बनाते
पैरों की खींचती हुई सी नसें कमर की अकड़न
याद दिलाती हैं कि कैसे चंचल हिरणी की तरह
दौड़ भाग कर सबकी जरूरतें पूरी की
एक संतुष्टि एक खुशी अपनों के लिए
रात बिस्तर पर पडे-पडे भी कल का मैन्यु तय करती हूँ
आहा मैं भी ना कमाल हूँ मुझसे ही तो मकान घर है ना ……
हे ईश्वर ! तुझे लाखों प्रणाम कि तूने मुझे स्त्री बनाया
ये संतुष्टि बिन स्त्री बने शायद ना मिल पाती…………
मैं खुश हूँ मैं स्त्री हूँ ..नाज है मुझे मेरे स्त्रीत्व पर ……
और अपनी हर सहेली पर जो मेरी तरह ही एक स्त्री है.....
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बुधवार, 8 मार्च 2017
थकी हारी
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