बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

अधूरी बात है लेकिन,

अधूरी बात है लेकिन,
मेरा कहना ज़रूरी है......

मेरी ये सांस चलने को,
तेरा होना ज़रूरी है.......

ये 'दिल' बेताब रहता है,
तेरा मिलना जरूरी है........

नजर मेरी तरसती है,
तेरा जलवा जरूरी है.......

अगर तू आग है तो फिर,
मेरा जलना जरूरी है........

अगर मंजिल जो पाना हो,
तो फिर साथ तेरा ज़रूरी है.......

जिंदगी गर अधूरी है,
इश्क करना जरूरी है........

अगर तू मौत है तो फिर
मेरा मरना जरूरी है........!!

जिंदगी से निराश

Heart touching lines

कभी कभी
आप अपनी जिंदगी से
निराश हो जाते हैं,
जबकि
दुनिया में उसी समय
कुछ लोग
आपकी जैसी जिंदगी
जीने का सपना देख रहे होते हैं।

घर पर खेत में खड़ा बच्चा
आकाश में उड़ते हवाई जहाज
को देखकर
उड़ने का सपना देख रहा होता है,
परंतु
उसी समय
उसी हवाई जहाज का पायलट
खेत ओर बच्चे को देख
घर लौटने का सपना
देख रहा होता है।

यही जिंदगी है।
जो तुम्हारे पास है उसका मजा लो।

अगर धन-दौलत रूपया पैसा ही
खुशहाल होने का सीक्रेट होता,
तो अमीर लोग नाचते दिखाई पड़ते,
लेकिन सिर्फ गरीब बच्चे
ऐसा करते दिखाई देते हैं।

अगर पाॅवर (शक्ति) मिलने से
सुरक्षा आ जाती
तो
नेता अधिकारी
बिना सिक्युरिटी के नजर आते।
परन्तु
जो सामान्य जीवन जीते हैं,
वे चैन की नींद सोते हैं।

अगर खुबसुरती और प्रसिद्धि
मजबूत रिश्ते कायम कर सकती
तो
सेलीब्रिटीज् की शादियाँ
सबसे सफल होती।
जबकि इनके तलाक
सबसे सफल होते हैं

इसलिए दोस्तों,
यह जिंदगी ......

सभी के लिए खुबसुरत है
इसको जी भरकर जीयों,
इसका भरपूर लुत्फ़ उठाओ
क्योंकि
जिदंगी ना मिलेगी दोबारा...

सामान्य जीवन जियें...
विनम्रता से चलें ...
और
ईमानदारी पूर्वक प्यार करें...

स्वर्ग यहीं है
एक ट्रक के पीछे एक
बड़ी अच्छी बात लिखी देखी....

"ज़िन्दगी एक सफ़र है,आराम से चलते रहो
उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगें, बस गियर बदलते रहो"
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!

तज़ुर्बा है हमारा... . .. मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!

जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,

यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!

जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....

जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...

पैसा इन्सान को ऊपर ले जा सकता है;
            
लेकिन इन्सान पैसा ऊपर नही ले जा सकता......

कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है....

पर रोटी की साईज़ लगभग  सब घर में एक जैसी ही होती है।

  : शानदार बात

इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,

और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले...
                   

कर्मो' से ही पहेचान होती है इंसानो की...

महेंगे 'कपडे' तो,'पुतले' भी पहनते है दुकानों में !!..

चंद लाइने पुरे ग्रुप के लीये…..

जिंदगी से हर पल एक मोज मिली,
कभी कभी नहीं हर रोज मिली.

बस एक अच्छा दोस्त मांगता था
जिन्दगी से…
पर मुझे तो पूरी विद्वानों की
फौज मिली।.
हमारा  group कोई वाशिंग पावडर
नहि है !
पहले ईस्तेमाल करे,  फिर विश्वास
करे !
हमारा group  तो LIC है !

          जिंदगी के साथ भी ,
          जिंदगी के बाद भी....

मुझे नही पता कि मैं एक बेहतरीन ग्रुप मेंबर हूँ या नही...
लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि
मैं जिस ग्रुप में हूँ उसके सारे मेंबर...
बहुत बेहतरीन हैं.....

सिर्फ एक दिन...

kabhi kabhi sach me aisa hi dil chahta hai...

व्यतीत करना चाहती हूँ ...
सिर्फ एक दिन...
खुद के लिये...
जिसमें न जिम्मेदारियों का दायित्व हो
न कर्त्तव्यों का परायण
न कार्य क्षेत्र का अवलोकन हो
न मजबूरियोँ का समायन
बस मैं ,
मेरे पल ..
मेरी चाहतें और
मेरा संबल
एक कप काफी से
हो मेरे दिन की शुरुआत
भीगकर अतीत के लम्हों में
खोजू अपने जज्बात
भूल गई जो जिंदगी जीना
उसे फिर से याद करु..
सबकी खातिर छोङ चुकी जो
उन ख्वाईशों की बात करु..
उलझी रहू बस स्वयं में ही
न कोई हो आस पास...
जी लू जी भर उन लम्हों को
जो मेरे हो सिर्फ खास..
मस्त मगन होकर में नाचूँ
अल्हङपन सी मस्ती में
जैसे चिङिया चहक रही हो
खुले आसमान सी बस्ती में..
मन का पहनू,
मन का खाऊं
न हो और किसी का ख्याल...
भूल गई हू जो जीना मैं
फिर से न हो मलाल..
शाम पङे सखियों से गपशप
और पानीपूरी खाऊं
डाक्टर के सारे निर्देशों को
बस एक दिन भूल जाऊँ..
मस्त हवा संग बाते करु
खुली सङक पर यूंही चलू..
बेफिक्री की राह पकङकर
अपनी बातों की धौंस धरु..
रात नशीली मेरे आंगन
इठलाती सी आये
लेकर अपनी आगोश में
चांद पूनम का दिखलायें...
सोऊं जब सपने में मुझे
वो राजकुमार आये
परियों की दुनियां से होकर
जो मेरे रंग में रंग जाये..
एकसाथ में बचपन ,
यौवन
फिर से जीना चाहती हूं....
काश! मिले वो लम्हेँ मुझको
एक दिन अगर जो पाती हू...
Dedicated to all women

धन तभी सार्थक

*धन* तभी
सार्थक है,
जब *धर्म* भी साथ हो।

*सुंदरता* तभी
सार्थक है,
जब *चरित्र* भी शुद्ध हो।

*संपत्ति* तभी
सार्थक है,
जब *स्वास्थ्य* भी
अच्छा हो।

*मंदिर* जाना तभी
सार्थक है,
जब *हृदय* में भाव हो।

अच्छा *व्यापार* तभी
सार्थक है,
जब *व्यवहार* भी
अच्छा हो।

*ज्ञानी* होना तभी
सार्थक है,
जब *सरलता* भी
साथ हो।

✌� *प्रसिद्धि* तभी
सार्थक है,
जब मन में
*निर अहंकारिता* हो।

✍� *बुद्धिमता* तभी
सार्थक है,
जब *विवेक* भी
साथ हो।

*अतिथि* बनकर जाना
तभी सार्थक है,
जब वहां *सत्कार* हो।

‍‍‍ *परिवार* का होना तभी
सार्थक है,
जब उसमें *प्यार* और
*आदर* हो।

*रिश्ते* तभी तक
सार्थक है,
जब तक आपस में
*विश्वास* हो।

  
                

आज तिरँगा गाड़ दो....!

जहाँ मिलें जिस जगह मिलें....
इनकी छाती ही फाड़ दो.....
आतंकी की देह में गहरे....
आज तिरँगा गाड़ दो....!

बहुत हो चुके शौकग्रस्त हम....
आज युद्ध की वेला है....
आज उरी में फ़िर कुत्तों ने....
खेल रक्त का खेला है...!

कब तक सैनिक वीर हमारे....
अपने प्राण गंवायेंगे....?
और तिरंगे में लिपटे...
कितने शव वापस आयेंगे....?

बहुत हुआ आतंक-नृत्य...
अब अन्तिम परदा गिरने दो....
सीमा के उस पार पापियों को-
भी कुछ शव गिनने दो..!!!

कूटनीति और राजनीति के...
बन्धन अब -सब छोड़ दो....
पाकिस्तानी कुत्तों की हर....
अकड़ की हड्डी तोड़ दो...!

आहत है यह देश हमारा....
आहत हैं भारत माता...
सेना को दे क्षति श्वान यह...
आखिर क्यों है बच जाता....???

समय पुकारे देश पुकारे...
अब तो सुन लो ओ सरकार....
सेना को दो छूट मचेगी...
पाकिस्तान में हाहाकार....!

पार करो सीमा को दम से...
सिहर उठे रावलपिंडी....
सदा सदा के लिये मिटा दो...
दहश्तग़र्दी की मंडी....!!

वन्दे मातरम.....

सुख सागर

सुख सागर 

कभी यह सोचिए कि , स्वयं को बदलना , कितना कठिन है  ,
       फिर औरों को बदलना , कैसे सरल हो सकता है..!!!
             .    ❤❤.   
दो हाथों से हम 50 लोगों को नही मार.सकते पर दो हाथ...
    जोड़ कर हम करोड़ों लोगों का दिल जीत सकते हैं....!
            .    .    ❤❤
पहचान से मिला काम ,
बहुत कम समय के लिए टिकता है ,
    लेकिन काम से मिली पहचान ,
उम्र भर कायम रहती है ।
                  
डाली से टूटा फूल फिर से लग नहीं सकता है मगर ,
     डाली मजबूत हो तो उस पर नया फूल खिल सकता है,
    उसी तरह ज़िन्दगी में             
खोये पल को ला नहीं सकते
मगर,.हौसलें व विश्वास से आने वाले हर पल को  खुबसूरत बना सकते हैं ......                  

       
             

मैं स्त्री हूँ...

मैं स्त्री हूँ...सहती हूँ...
तभी तो तुम कर पाते हो गर्व,अपने पुरुष होने पर।।

मैं झुकती हूँ......
तभी तो ऊँचा उठ पाता है तुम्हारे अहंकार का आकाश।।

मैं सिसकती हूँ......
तभी तो तुम मुझ पर कर पाते हो खुल कर अट्टहास।।

व्यवस्थित हूँ मैं......
इसलिए तो तुम रहते हो अस्त व्यस्त।।।।।

मैं मर्यादित हूँ.........
इसलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमाएं!!

स्त्री हूँ मैं...
हो सकती हूँ पुरुष भी...पर नहीं होती।
रहती हूँ स्त्री इसलिए...ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरुष।।।।।
मेरी ही नम्रता से पलता तुम्हारा पौरुष।।

मैं समर्पित हूँ....
इसलिए हूँ...अपेक्षित,तिरस्कृत!!!
त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान,ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान।

सुनो मैं नहीं व्यर्थ...मेरे बिना भी तुम्हारा नहीं कोई अर्थ!!!

सभी स्त्रियों को समर्पित

सर्जिकल स्ट्राइक

सर्जिकल
                 कवि युगराज जैन
शेर दहाड़ उठा ,
पड़ौस में पहाड़ टूटा ,
था आतंक का नासूर ,
घमंड हुआ चकनाचूर ,
कई बार दिया मौका ,
किन्तु हर बार भौंका ,
सेना पर है हमें नाज ,
जिसके पास हर इलाज ,
सर्जिकल तो केवल झांकी है ,
युद्ध तो अभी बाकी है ,
बोल युद्ध झेलेगा या सर्जिकल है काफी ,
अक्ल है तो जल्दी मांग ले माफी ,
वर्ना तेरी भी जनता तुझ पर टूट जायेगी ,
सीमाएं भी तुझसे अब रूठ जायेंगी ,
अब भी वक्त है पागलपन छोड़ दे ,
इंसानियत से नाता जोड़ दे ।
    

जय हिंद जय भारत

रब का जब तक

रब का जब तक / साया जग में
तब तक मेरी / काया जग में

जिसने सीखा / गम को पीना     
खुशियां लेकर /आया जग में

बिरवे रोपे / उम्मीदों के
फैली ठंडी / छाया जग में

एक परिंदा / बन उड जाऊं
उस रहमत को / पाया जग में

दीपा के मन / में है उलझन
ममता सच या माया जग मे़ं।

नाज हमें है उन वीरों पर


नाज हमें है उन वीरों पर,
                जो मान बड़ा कर आये हैं।
दुश्मन को घुसकर के मारा,
                शान बड़ा कर आये हैं...।I

मोदी जी अब मान गये हम,
                छप्पन   इंची   सीना   है।
कुचल, मसल दो उन सबको अब,
                चैन  जिन्होंने  छीना  है....।I

और आस अब बड़ी वतन की,
                अरमान .बड़ा कर  आये  हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर,
                जो शान  बड़ा कर आये हैं...।I

एक मरा तो सौ मारेंगे,
                अब  रीत  यही  बन  जाने  दो।
लहू का बदला सिर्फ लहू है,
                अब गीत यही बन जाने दो...।I

गिन ले लाशें दुश्मन जाकर,
                 शमसान बड़ा कर आये हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर,
                 जो मान बड़ा कर आये हैं....।I

अब बारी उन गद्दारों की,
                 जो  घर  के  होकर  डसते  हैं।
भारत की मिट्टी का खाते,
                 मगर  उसी  पर  हँसते  हैं....।I

उनको भी चुन चुन मारेंगे,
                 ऐलान  बड़ा  कर  आये  हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर,
                 जो मान बड़ा कर आये हैं....।I

रविवार, 25 सितंबर 2016

क्या खूब कहा है...

एक सैनिक ने क्या खूब कहा है...

किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ,
मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ,
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ,
मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ...!!

शहीदो को शत शत नमन।।

एक अंग्रेज़ी ग़ज़ल         

ये एक *अंग्रेज़ी ग़ज़ल* है जो सभी रिश्ते नातों से ऊपर है और हम सब के ऊपर लागू होती है --->

      
         एक अंग्रेज़ी ग़ज़ल
        

*"When I'll be dead.....,*
*Your tears will flow,..*
*But I won't know...*
    *Cry for me now instead !*
(कल जब मैं मर जाऊंगा,
तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे
.....पर मुझे पता नही चलेगा
तो ....उसके बजाय मेरे लिए आज रोओ ना...)

*You will send flowers,..*
*But I won't see...*
   *Send them now instead !*
(तुम मेरे लिए फूल चढ़ाओगे
.....पर मैं तो नही देखूंगा
तो .....उसके बजाय मुझे आज फूल दो ना)

*You'll say words of praise,..*
*But I won't hear..*
    *Praise me now instead !*
(कल तुम मेरी तारीफ़ में लफ्ज़ बोलोगे
पर मैं तो नही सुन पाऊंगा
तो उसके बजाय आज तारीफ़ के लफ्ज़ बोलो ना)

*You'll forget my faults,..*
*But I won't know...*
     *Forget them now, Instead !*
(कल तुम मेरी गलतियां भूल जाओगे
पर मुझे नही पता चलेगा,
तो उसके बजाय आज मेरी गलतियां भूल जाओ ना)

*You'll miss me then,...*
*But I won't feel...*
     *Miss me now, instead*
(मेरे बाद तुम मेरे लिए तड़पोगे
पर मैं नही महसूस करूँगा
तो उसके बजाय आज मेरे लिए तड़पो ना)

*You'll wish...*
*You could have spent more time with me,...*
      *Spend it now instead !!"*
(कल तुम तमन्ना करोगे की....
काश मेरे साथ और वख्त बिता पाते
तो ....उसके उसके बजाय मेरे साथ आज वख्त बिताओ ना)

Moral......
Spend time with every person you love,
Every one you care for.
Make them feel special,
For you never know when time will take them away from you......

पुरुष का श्रृंगार

पुरुष का श्रृंगार तो स्वयम प्रकृति ने किया है..

स्त्रीया कांच का टुकड़ा है....
.
जो मेकअप की रौशनी पड़ने पर ही चमकती है..

किन्तु पुरुष हीरा है जो अँधेरे में भी चमकता है और उसे मेकअप की कोई आवश्यकता नहीं होती।

खूबसूरत मोर होता है मोरनी नहीं.. मोर रंग बिरंगा और हरे नीले रंग से सुशोभित..

जबकि मोरनी काली सफ़ेद..
मोर के पंख होते है इसीलिए उन्हें मोरपंख कहते है....

मोरनी के पंख नहीं होते..

दांत हाथी के होते है,हथिनी के नहीं। हांथी के दांत बेशकीमती होते है।

नर हाथी मादा हाथी के मुकाबले बहुत खूबसूरत होता है।

कस्तूरी नर हिरन में पायी जाती है। मादा हिरन में नहीं।

नर हिरन मादा हिरन के मुकाबले बहुत सुन्दर होता है।

मणि नाग के पास होती है ,
नागिन के पास नहीं।

नागिन ऐसे नागो की दीवानी होती है जिनके पास मणि होती है।

रत्न महासागर में पाये जाते है, नदियो में नहीं..

और अंत में नदियो को उसी महासागर में गिरना पड़ता है।

संसार की बेशकीमती तत्व इस प्रकृति ने पुरुषो को सौंपे..
प्रकृति ने पुरुष के साथ
अन्याय नहीं किया..

9 महीने स्त्री के गर्भ में रहने के बावजूद भी औलाद का चेहरा स्वाभाव पिता की तरह होना, ये संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है..
क्योंकि पुरुष का श्रृंगार प्रकृति ने करके भेजा है,

उसे श्रृंगार की आवश्यकता नहीं...

जरूर शेयर करे पहली बार कोई लेख पुरुषो के लिए आया है

हास्य कविता

हास्य कविता  **

अक्ल बाटने लगे विधाता,
             लंबी लगी कतारें ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
            कहीं नहीं थी नारी ।

सभी नारियाँ कहाँ रह गई.
          था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
          पहुँच गई थी सारी।

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
           एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इंतजार में,
          कब आएगी बारी ।

उधर विधाता ने पुरूषों में,
         अक्ल बाँट दी सारी ।
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर,
        जब पहुँची सब नारी ।

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
        नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
        नींद खुली ब्रह्मा की ।

पूछा कैसा शोर हो रहा है,
         ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
          पुरुष ले गए सारे ।

ब्रह्मा जी ने कहा देवियों ,
          बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल वो मैंने,
          पुरुषों में भर दी है ।

लगी चीखने महिलाये ,
         ये कैसा न्याय तुम्हारा?
कुछ भी करो हमें तो चाहिए.
          आधा भाग हमारा ।

पुरुषो में शारीरिक बल है,
          हम ठहरी अबलाएं ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी ,
         निज रक्षा कर पाएं ।

सोचकर दाढ़ी सहलाकर ,
         तब बोले ब्रह्मा जी ।
एक वरदान तुम्हे देता हूँ ,
         अब हो जाओ राजी ।

थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी ,
         रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमंद हो,
         अक्ल जायेगी मारी ।

एक औरत ने तर्क दिया,
        मुश्किल बहुत होती है।
हंसने से ज्यादा महिलाये,
        जीवन भर रोती है ।

ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
        रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
        अक्ल हर लेगा ।

एक अधेड़ बोली बाबा ,
       हंसना रोना नहीं आता ।
झगड़े में है सिद्धहस्त हम,
       खूब झगड़ना भाता ।

ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
       यह भी बात तुम्हारी ।
झगडे के आगे भी नर की,
       अक्ल जायेगी मारी ।

ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
       अंतिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हे दिए.
       पूरा न्याय हमारा ।

इन अचूक शस्त्रों में भी,
       जो मानव नहीं फंसेगा ।निश्चित समझो,
       उसका घर नहीं बसेगा ।

कहे कवि मित्र ध्यान से,
       सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
       नर पर नारी भारी।

पुराना सामान

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है..

आजकल AC के ज़माने में हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है...

अपने घर की कलह से फुरसत मिले, तो सुने..

आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है...

जहां, जब, जिसका, जी चाहा थूक दिया..

आजकल हाथों में पीकदान कौन रखता है...

हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..

आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है...

बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां बाप को..

आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है....

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

सुहागन

कुछ बीज प्रेम के बो जाऊँगी |
मर कर भी अमर मैं हो जाऊँगी |

बैठ गया यदि मैल हृदय में
अपने अंसुअन से धो जाऊँगी

मैं बहुत प्रेम करती हूँ आपसे
आपके प्रेम में मैं खो जाऊँगी

कुछ गीत लिखूंगी आपके लिए ,
और चिर निद्रा में सो जाऊँगी |

भरना मांग जब सजूं चिता पर
मैं सदा सुहागन हो जाऊँगी
***********************

दिल की खिड़की

दिल की खिड़की से बाहर देखो ना कभी
बारिश की बूँदों सा है एहसास मेरा

घनी जुल्फों की गिरह खोलो ना कभी
बहती हवाओं सा है एहसास मेरा

छूकर देखो कभी तो मालूम होगा तुम्हें
सर्दियों की धूप सा है एहसास मेरा ।

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

वीर सिपाही देखो !

खून जमाती ठण्ड में भी, सीना ताने खड़े हुए
बदन जलाती गर्मी में भी सीमाओं पर अड़े हुए
बाँध शहादत का सहरा, मृत्यु से ब्याह रचाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

बर्फीली वायु हो चाहे, तूफानों ने दी हो चुनौती
चाहे दुश्मन के खेमे से गोली की बौछारें होती
चाहे हो कैसी भी विपदा, पर ये ना घबराते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

माँ, पत्नी, बच्चों से दूर, राष्ट्र धर्म में रमे हुए
दिल में कितना दर्द ये पाले पर सीमा पर डंटे हुए
अपनी जान गंवाकर भी दुश्मन को धूल चटाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

धरती माँ के सच्चे बेटे, सर पर कफ़न बाँध कर बैठे
नींद नहीं उनकी आँखों में ताकि हम सब चैन से लेटे
देश की रक्षा के खातिर वे वीरगति को पाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

कुर्बानी वीरों की जीवन कितनो को दे जाती है
उनके रक्त से सिंचित धरती धन्य धन्य हो जाती है.
मौत भी क्या मारेगी उनको, जो मरकर भी जी जाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

देख तिरंगा इन वीरों को गर्वित हो लहराता है
भारत माँ का मस्तक भी शान से यूँ इठलाता है
जब-जब सीना ताने ये जीत का बिगुल बजाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

इन्हें जन्म देने वाली कोख के अहसानमंद
पत्नी और परिवार के बलिदान को शत-शत नमन
इस अतुल्य त्याग का हम मिलकर गीत गाते हैं
देश के वीर सिपाही देखो ! माँ का कर्ज चुकाते हैं.

रविवार, 18 सितंबर 2016

ए “सुबह ”

ए “सुबह ” तुम जब भी आना,
     सब के लिए बस "खुशियाँ" लाना.
हर चेहरे पर “हंसी ” सजाना,
          हर आँगन मैं “फूल ” खिलाना..

जो “रोये ” हैं  इन्हें हँसाना.
               जो “रूठे ” हैं  इन्हें मनाना,
जो “बिछड़े” हैं तुम इन्हें मिलाना.
       प्यारी “सुबह ” तुम जब भी आना,
सब के लिए बस “खुशिया ”ही लाना.

           सुप्रभात
  

जब मैं छोटा था, 

गुलज़ार साहब की कविता :- 

गुलज़ार साहब की कविता :- 

जब मैं छोटा था
शायद दुनिया 
बहुत बड़ी हुआ करती थी.. 

मुझे याद है 
मेरे घर से "स्कूल" तक का 
वो रास्ता, 

क्या क्या 
नहीं था वहां, 
चाट के ठेले, 
जलेबी की दुकान, 
बर्फ के गोले 
सब कुछ, 

अब वहां 
"मोबाइल शॉप", 
"विडियो पार्लर" हैं, 

फिर भी 
सब सूना है.. 

शायद 
अब दुनिया 
सिमट रही है... 


जब 
मैं छोटा था, 
शायद 
शामें बहुत लम्बी 
हुआ करती थीं... 

मैं हाथ में 
पतंग की डोर पकड़े, 
घंटों उड़ा करता था, 

वो लम्बी 
"साइकिल रेस", 
वो बचपन के खेल, 

वो 
हर शाम 
थक के चूर हो जाना, 

अब 
शाम नहीं होती, 

दिन ढलता है 
और 
सीधे रात हो जाती है. 

शायद 
वक्त सिमट रहा है.. 

जब 
मैं छोटा था, 
शायद दोस्ती 
बहुत गहरी 
हुआ करती थी, 

दिन भर 
वो हुजूम बनाकर 
खेलना, 

वो 
दोस्तों के 
घर का खाना, 

वो 
अपने प्यार की 
बातें, 

वो 
साथ रोना... 

अब भी 
मेरे कई दोस्त हैं, 
पर दोस्ती 
जाने कहाँ है, 

जब भी 
"traffic signal" 
पर मिलते हैं 
"Hi" हो जाती है, 

और 
अपने अपने 
रास्ते चल देते हैं, 

होली, 
दीवाली, 
जन्मदिन, 
नए साल पर 
बस SMS आ जाते हैं, 

शायद 
अब रिश्ते 
बदल रहें हैं.. 

जब 
मैं छोटा था, 
तब खेल भी 
अजीब हुआ करते थे, 

छुपन छुपाई, 
लंगडी टांग, 
पोषम पा, 
टिप्पी टीपी टाप. 
अब 
internet, office, 
से फुर्सत ही नहीं मिलती.. 

शायद 
ज़िन्दगी 
बदल रही है. 


जिंदगी का 
सबसे बड़ा सच 
यही है.. 
जो अकसर 
क़ब्रिस्तान के बाहर 
बोर्ड पर 
लिखा होता है... 

"मंजिल तो 
यही थी, 
बस 
जिंदगी गुज़र गयी मेरी 
यहाँ आते आते" 

ज़िंदगी का लम्हा 
बहुत छोटा सा है... 

कल की 
कोई बुनियाद नहीं है 
और आने वाला कल 
सिर्फ सपने में ही है.. 

अब 
बच गए 
इस पल में.. 

तमन्नाओं से भरे 
इस जिंदगी में 
हम सिर्फ भाग रहे हैं. 

कुछ रफ़्तार 
धीमी करो, 

और 

इस ज़िंदगी को जियो 
खूब जियो ............ ।। 

गुलज़ार
शायद दुनिया 
बहुत बड़ी हुआ करती थी.. 

मुझे याद है 
मेरे घर से "स्कूल" तक का 
वो रास्ता, 

क्या क्या 
नहीं था वहां, 
चाट के ठेले, 
जलेबी की दुकान, 
बर्फ के गोले 
सब कुछ, 

अब वहां 
"मोबाइल शॉप", 
"विडियो पार्लर" हैं, 

फिर भी 
सब सूना है.. 

शायद 
अब दुनिया 
सिमट रही है... 


जब 
मैं छोटा था, 
शायद 
शामें बहुत लम्बी 
हुआ करती थीं... 

मैं हाथ में 
पतंग की डोर पकड़े, 
घंटों उड़ा करता था, 

वो लम्बी 
"साइकिल रेस", 
वो बचपन के खेल, 

वो 
हर शाम 
थक के चूर हो जाना, 

अब 
शाम नहीं होती, 

दिन ढलता है 
और 
सीधे रात हो जाती है. 

शायद 
वक्त सिमट रहा है.. 

जब 
मैं छोटा था, 
शायद दोस्ती 
बहुत गहरी 
हुआ करती थी, 

दिन भर 
वो हुजूम बनाकर 
खेलना, 

वो 
दोस्तों के 
घर का खाना, 

वो 
अपने प्यार की 
बातें, 

वो 
साथ रोना... 

अब भी 
मेरे कई दोस्त हैं, 
पर दोस्ती 
जाने कहाँ है, 

जब भी 
"traffic signal" 
पर मिलते हैं 
"Hi" हो जाती है, 

और 
अपने अपने 
रास्ते चल देते हैं, 

होली, 
दीवाली, 
जन्मदिन, 
नए साल पर 
बस SMS आ जाते हैं, 

शायद 
अब रिश्ते 
बदल रहें हैं.. 

जब 
मैं छोटा था, 
तब खेल भी 
अजीब हुआ करते थे, 

छुपन छुपाई, 
लंगडी टांग, 
पोषम पा, 
टिप्पी टीपी टाप. 
अब 
internet, office, 
से फुर्सत ही नहीं मिलती.. 

शायद 
ज़िन्दगी 
बदल रही है. 


जिंदगी का 
सबसे बड़ा सच 
यही है.. 
जो अकसर 
क़ब्रिस्तान के बाहर 
बोर्ड पर 
लिखा होता है... 

"मंजिल तो 
यही थी, 
बस 
जिंदगी गुज़र गयी मेरी 
यहाँ आते आते" 

ज़िंदगी का लम्हा 
बहुत छोटा सा है... 

कल की 
कोई बुनियाद नहीं है 
और आने वाला कल 
सिर्फ सपने में ही है.. 

अब 
बच गए 
इस पल में.. 

तमन्नाओं से भरे 
इस जिंदगी में 
हम सिर्फ भाग रहे हैं. 

कुछ रफ़्तार 
धीमी करो, 

और 

इस ज़िंदगी को जियो 
खूब जियो ............ ।। 

गुलज़ार