गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

ज़रा अ आसमां !

करवा चौथ स्पेशल

ज़रा अ आसमां ! तुम दिल को अपने थामना,देखो.
तुम्हारे चाँद का इस चाँद से है सामना, देखो.

मेरा महबूब छत पर आ गया है ओढ़ तारों को.
हुई हैरत जमीं पर देख तुमको क्यूँ सितारों को.
समेटे रंग दामन में,हँसी लेकर गुलाबी सी.
तुम्हारी रात को भी कर रही है वो शराबी सी.
धरा की अप्सरा है,पूछना तुम नाम ना, देखो.
तुम्हारे चाँद का....

बड़ी मुद्दत से कैसी ये अनोखी रात है आयी.
किसी को देख कर ये चाँदनी भी आज शरमायी.
चमकते पाँव के बिछुये,खनकते हाथ के कंगन.
हवा में खुशबुये ऐसे की जैसे महकता चंदन.
सजीला रूप देखूं तो बचे ना कामना,देखो.
तुम्हारे चाँद से...

ज़रा सा थाम धड़कन को,तू थोड़ा हौंसला रखना.
तू अपने चाँद से कह दे कि उनसे फासला रखना.
कहो तुम चाँदनी से कि बुझा आये सितारे भी.
धरा पर भी धरोहर है, फलक के हैं नजारे भी.
नज़र लग जाये ना उनको,
यूँ खुल्ले आम ना देखो.
तुम्हारे चाँद का....

विकास यशकीर्ति

उजली भोर  सुहाई कैसे।


उजली भोर  सुहाई कैसे।
तू ही कह दे आई  कैसे।

जब भी होते जग के मेले
लगती तब तन्हाई  कैसे।

कैसे पूछू किसको पूछू
तूने प्रीत भुलाई कैसे।

सब कुछ लूटा उसने पूछा
इस अनुराग नहाई कैसे।

लोग हुए हरजाई दीपा
समझे पीर पराई कैसे।
   ़दीपा परिहार

कहो आंख भर आई कैसे

दिल की देहरी से

कुछ स्पंदन

कहो आंख भर आई कैसे
महफिल में  तनहाई कैसे

वजूद मिटा कर जाना हमने
ये रस्म ए वफा निभाई कैसे

पूछूं किसको कौन बताए 
आखिर आग लगाई कैसे

मेरे बिन जो लम्हा था मुश्किल
सारी उम्र बिताई कैसे

समझ न पाया  राज़ आज तक
प्यारी पीर पराई कैसे

मेरे दिल में तेरी धड़कन
तू ही  कह दे आई कैसे

Ratan Singh Champawat

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

घर चाहे कैसा भी हो

*घर चाहे कैसा भी हो,*
*उसके एक कोने में,*
*खुलकर हंसने की जगह रखना,*

*सूरज कितना भी दूर हो, उसको घर आने का रास्ता देना,*

*कभी कभी छत पर चढ़कर*
*तारे अवश्य गिनना,*
*हो सके तो हाथ बढ़ा कर*,
*चाँद को छूने की कोशिश करना,*

*अगर हो लोगों से मिलना जुलना तो,*
*घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना,*

*भीगने देना बारिश में,*
*उछल कूद भी करने देना,*
*हो सके तो बच्चों को,*
*एक कागज़ की किश्ती चलाने देना,*

*कभी हो फुरसत,आसमान भी साफ हो,तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना*,
*हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना,*

*घर के सामने रखना एक पेड़,*
*उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य सुनना,*

*घर के एक कोने में खुलकर हँसने की जगह रखना.*

औरतें बेहद अजीब होतीं है

गुलज़ार द्वारा लिखी किताब *_The longest short story of my life with grace_*जो उन्होंने *"राखी"*को समर्पित की है से एक अंश ....

लोग सच कहते हैं -
औरतें बेहद अजीब होतीं है

रात भर पूरा सोती नहीं
थोड़ा थोड़ा जागती रहतीं है
नींद की स्याही में
उंगलियां डुबो कर
दिन की बही लिखतीं
टटोलती रहतीं है
दरवाजों की कुंडियाॅ
बच्चों की चादर
पति का मन..
और जब जागती हैं सुबह
तो पूरा नहीं जागती
नींद में ही भागतीं है

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

हवा की तरह घूमतीं, कभी घर में, कभी बाहर...
टिफिन में रोज़ नयी रखतीं कविताएँ
गमलों में रोज बो देती आशाऐं

पुराने अजीब से गाने गुनगुनातीं
और चल देतीं फिर
एक नये दिन के मुकाबिल
पहन कर फिर वही सीमायें
खुद से दूर हो कर भी
सब के करीब होतीं हैं

औरतें सच में, बेहद अजीब होतीं हैं

कभी कोई ख्वाब पूरा नहीं देखतीं
बीच में ही छोड़ कर देखने लगतीं हैं
चुल्हे पे चढ़ा दूध...

कभी कोई काम पूरा नहीं करतीं
बीच में ही छोड़ कर ढूँढने लगतीं हैं
बच्चों के मोजे, पेन्सिल, किताब
बचपन में खोई गुडिया,
जवानी में खोए पलाश,

मायके में छूट गयी स्टापू की गोटी,
छिपन-छिपाई के ठिकाने
वो छोटी बहन छिप के कहीं रोती...

सहेलियों से लिए-दिये..
या चुकाए गए हिसाब
बच्चों के मोजे, पेन्सिल किताब

खोलती बंद करती खिड़कियाँ
क्या कर रही हो?
सो गयी क्या ?
खाती रहती झिङकियाँ

न शौक से जीती है ,
न ठीक से मरती है
सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

कितनी बार देखी है...
मेकअप लगाये,
चेहरे के नील छिपाए
वो कांस्टेबल लडकी,
वो ब्यूटीशियन,
वो भाभी, वो दीदी...

चप्पल के टूटे स्ट्रैप को
साड़ी के फाल से छिपाती
वो अनुशासन प्रिय टीचर
और कभी दिख ही जाती है
कॉरीडोर में, जल्दी जल्दी चलती,
नाखूनों से सूखा आटा झाडते,

सुबह जल्दी में नहाई
अस्पताल मे आई वो लेडी डॉक्टर
दिन अक्सर गुजरता है शहादत में
रात फिर से सलीब होती है...

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

सूखे मौसम में बारिशों को
याद कर के रोतीं हैं
उम्र भर हथेलियों में
तितलियां संजोतीं हैं

और जब एक दिन
बूंदें सचमुच बरस जातीं हैं
हवाएँ सचमुच गुनगुनाती हैं
फिजाएं सचमुच खिलखिलातीं हैं

तो ये सूखे कपड़ों, अचार, पापड़
बच्चों और सारी दुनिया को
भीगने से बचाने को दौड़ जातीं हैं...

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

खुशी के एक आश्वासन पर
पूरा पूरा जीवन काट देतीं है
अनगिनत खाईयों को
अनगिनत पुलो से पाट देतीं है.

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

ऐसा कोई करता है क्या?
रस्मों के पहाड़ों, जंगलों में
नदी की तरह बहती...
कोंपल की तरह फूटती...

जिन्दगी की आँख से
दिन रात इस तरह
और कोई झरता है क्या?
ऐसा कोई करता है क्या?

सच मे, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं..

गुलज़ार

(हमारे जीवन में ख़ुशी, समर्पण और प्रेम बरसाने वाली हर महिलाओं को सादर समर्पित)

Only Gulzar can write such a poem

Women are fickle minded.

Women are fickle minded.
At 18, they want handsome men.
At 25, they want matured men.
At 30, they want successful men.
At 40, they want established men.
At 50 ,they want faithful men.

Men are very simple.
At 18, they want pretty young girls.
At 25, they want pretty young girls.
At 30, they want pretty young girls.
At 40, they want pretty young girls.
At 50, they still want pretty young girls.

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त

चारुचंद्र की चंचल किरणें,

खेल रहीं हैं जल थल में,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है,

अवनि और अम्बरतल में।

पुलक प्रकट करती है धरती,

हरित तृणों की नोकों से,

मानों झूम रहे हैं तरु भी,

मन्द पवन के झोंकों से॥

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की इन अनुपम पंक्तियों से "शरद ऋतु" के आगमन की "हार्दिक शुभकामनाऐं".....

एक खेल कहने-सुनने का।

वह कहता था,
वह सुनती थी,
जारी था एक खेल
कहने-सुनने का।

खेल में थी दो पर्चियाँ।
एक में लिखा था ‘कहो’,
एक में लिखा था ‘सुनो’।
अब यह नियति थी
या महज़ संयोग?
उसके हाथ लगती रही
वही पर्ची
जिस पर लिखा था ‘सुनो’।

वह सुनती रही।
उसने सुने आदेश।
उसने सुने उपदेश।
बन्दिशें उसके लिए थीं।
उसके लिए थीं वर्जनाएँ।
वह जानती थी,
'कहना-सुनना'
नहीं हैं केवल क्रियाएं।

राजा ने कहा, 'ज़हर पियो'
वह मीरा हो गई।
ऋषि ने कहा, 'पत्थर बनो'
वह अहिल्या हो गई।
प्रभु ने कहा, 'निकल जाओ'
वह सीता हो गई।
चिता से निकली चीख,
किन्हीं कानों ने नहीं सुनी।
वह सती हो गई।

घुटती रही उसकी फरियाद,
अटके रहे शब्द,
सिले रहे होंठ,
रुन्धा रहा गला।
उसके हाथ कभी नहीं लगी
वह पर्ची,
जिस पर लिखा था, ‘ कहो ’।

-Amrita Pritam

शरदपूर्णिमा

शरदचन्द्र बरसा रहा ,अमृत चाँदनी आज
धवल केश लहरा रही, धरा पहनकर ताज //

शरदपूर्णिमा रात है, जैसे खिली कपास
सागर चंदा खेलते ,आज डांडिया रास //

रासोत्सव ले आ गया,शरद चाँदनी रात
साजन से सजनी मिली,पाकर यह सौगात // 

शरदोत्सव ले आ गया ,आश्विन कार्तिक मास
शरद पूर्णिमा रात में ,मन छाया उल्लास //

शरदपूर्णिमा दे गई ,आकर यह सन्देश
शारदीय ऋतु आ गई ,धर बसंत का वेश //
.............

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

Sapne saakar dollars kamane ke

ज़रा सोचिए , अगर आपको कुछ Android Apps इनस्टॉल करते ही $1.00 मिल जाए तो ?

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जय हो हजबैंड

करवाचौथ में पतिदेव की आरती

मैं तो आरती उतारूँ रे, बच्चों के पापा की।
जय हो हजबैंड, तेरी जय जय हो...
जय हो हजबैंड, तेरी जय जय हो...
* बड़ी पूँजी है बड़ा-बड़ा कैश इसके बटुए में।
जिंदगी के हैं सारे ऐश इसके बटुए में।।
क्यूँ न झाँकूँ मैं बारम्बार इसके बटुए में।
दिखे हर घड़ी मॉल और बाजार इसके बटुए में।।
नृत्य करूँ झूम-झूम, बटुए को चूम-चूम,
बेलन ना मारूँ, आज इसे बेलन ना मारूँ रे...
मैं तो आरती उतारूँ रे, बच्चों के पापा की।।
* सदा होती है जय-जयकार मेरे हजबैंडवा की।
पर नारी पे टपके ना लार मेरे हजबैंडवा की।।
हो सबसे निराली कार मेरे हजबैंडवा की।
कभी इज्जत न हो तार-तार मेरे हजबैंडवा की।।
जो कमाए मुझे दे दें, जो भी दूँ हँसके ले ले
स्वामी पुकारूँ रे... कल 'टॉमी' पुकारूँ रे....
मैं तो आरती उतारूँ रे, बच्चों के पापा की।।
* हम हैं पत्तल तो तुम दोना, पति परमेश्वरजी।
हमसे कभी ना खफा होना, पति परमेश्वरजी।।
हम जो मारें तो मत रोना, पति परमेश्वरजी।
सबके कपडे सदा धोना, पति परमेश्वरजी।।
नौकर तुम, जोकर तुम, शोफर तुम, शौहर तुम
आठ आने वारूँ रे, तुम पे आठ आने वारूँ रे।।
मैं तो आरती उतारूँ रे, हजबैंड प्यारे की....
मैं तो आरती उतारूँ रे, बच्चों के पापा की।
जय हो हजबैंड, तेरी जय जय हो...
जय हो हजबैंड, तेरी जय जय हो.

औरत

*औरत*

वो "औरत " दौड़ कर रसोई तक,
दूध बिखरने से पहले बचा लेती है ।

समेटने के कामयाब मामूली लम्हो में,
बिखरे "ख्वाबो" का गम भुला देती है ।

वक़्त रहते रोटी जलने से बचा लेती,
कितनी "हसरतो" की राख उड़ा देती है ।

एक कप टूटने से पहले सम्हालती,
टूटे "हौसलो" को मर्ज़ी से गिरा देती है ।

कपड़ो के दाग छुड़ा लेती सलीके से,
ताज़ा जख्मो के हरे दाग भूला देती है ।

कैद करती "अरमान" भूलने की खातिर,
रसोई के एयर टाइट डब्बो में सज़ा लेती है।

कमजोर लम्हो के अफ़सोस की स्याही,
दिल की दिवार से बेबस मिटा लेती है ।

मेज़ कुर्सियों से "गर्द" साफ़ करती,
कुछ ख्वाबो पर "धूल" चढ़ा लेती है।

सबके सांचे में ढालते अपनी जिंदगी,
"हुनर" बर्तन धोते सिंक में बहा देती है।

कपड़ो की तह में लपेट खामोशी से,
अलमारी में कई "शौक" दबा देती है।

कुछ अज़ीज़ चेहरों की आसानी की खातिर,
अपने मकसद आले में रख भूला देती है।

घर भर को उन्मुक्त गगन में उड़ता देखने,
अपने सपनों के पंख काट लेती है ।

हाँ !
हर घर में एक *औरत*  है,
जो बिखरने से पहले सम्हाल लेती है ।

सभी औरतों को समर्पित
वन्दन

हाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिला

हाथ थाम कर भी तेरा सहारा न मिला
मैं वो लहर हूँ जिसे किनारा न मिला
मिल गया मुझे जो कुछ भी चाहा मैंने
मिला नहीं तो सिर्फ साथ तुम्हारा न मिला
वैसे तो सितारों से भरा हुआ है आसमान मिला
मगर जो हम ढूंढ़ रहे थे वो सितारा न मिला
कुछ इस तरह से बदली पहर ज़िन्दगी की हमारी
फिर जिसको भी पुकारा वो दुबारा न मिला
एहसास तो हुआ उसे मगर देर बहुत हो गयी
उसने जब ढूँढा तो निशान भी हमारा न मिला

अंदरके रावण

किस रावण की काटूं बाहें, किस लंका को आग लगाऊँ..!
*घर घर रावण पग पग लंका, इतने राम कहाँ से लाऊँ..,!!!
*जरुरी है अपने ज़ेहन में 'राम' को जिन्दा रखना...
*क्योंकि पुतले जलाने से कभी 'रावण' नहीं मरते..
*क्यों ना आज अपने ही भीतर झांका जाय,
*एक तीर अंदरके रावण पर भी चलाया जाय ।

दुआ

जहाँ में रंग भर दे जो लबों पर वो दुआ लाओ।
धनक इक आसमां से जा के धरती पर उठा लाओ।
ज़माने भर की नफरत से हमारा दम न घुट जाये।
कि दो पल तुम मुहब्बत के कहीं से भी चुरा लाओ।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

अधूरी बात है लेकिन,

अधूरी बात है लेकिन,
मेरा कहना ज़रूरी है......

मेरी ये सांस चलने को,
तेरा होना ज़रूरी है.......

ये 'दिल' बेताब रहता है,
तेरा मिलना जरूरी है........

नजर मेरी तरसती है,
तेरा जलवा जरूरी है.......

अगर तू आग है तो फिर,
मेरा जलना जरूरी है........

अगर मंजिल जो पाना हो,
तो फिर साथ तेरा ज़रूरी है.......

जिंदगी गर अधूरी है,
इश्क करना जरूरी है........

अगर तू मौत है तो फिर
मेरा मरना जरूरी है........!!

जिंदगी से निराश

Heart touching lines

कभी कभी
आप अपनी जिंदगी से
निराश हो जाते हैं,
जबकि
दुनिया में उसी समय
कुछ लोग
आपकी जैसी जिंदगी
जीने का सपना देख रहे होते हैं।

घर पर खेत में खड़ा बच्चा
आकाश में उड़ते हवाई जहाज
को देखकर
उड़ने का सपना देख रहा होता है,
परंतु
उसी समय
उसी हवाई जहाज का पायलट
खेत ओर बच्चे को देख
घर लौटने का सपना
देख रहा होता है।

यही जिंदगी है।
जो तुम्हारे पास है उसका मजा लो।

अगर धन-दौलत रूपया पैसा ही
खुशहाल होने का सीक्रेट होता,
तो अमीर लोग नाचते दिखाई पड़ते,
लेकिन सिर्फ गरीब बच्चे
ऐसा करते दिखाई देते हैं।

अगर पाॅवर (शक्ति) मिलने से
सुरक्षा आ जाती
तो
नेता अधिकारी
बिना सिक्युरिटी के नजर आते।
परन्तु
जो सामान्य जीवन जीते हैं,
वे चैन की नींद सोते हैं।

अगर खुबसुरती और प्रसिद्धि
मजबूत रिश्ते कायम कर सकती
तो
सेलीब्रिटीज् की शादियाँ
सबसे सफल होती।
जबकि इनके तलाक
सबसे सफल होते हैं

इसलिए दोस्तों,
यह जिंदगी ......

सभी के लिए खुबसुरत है
इसको जी भरकर जीयों,
इसका भरपूर लुत्फ़ उठाओ
क्योंकि
जिदंगी ना मिलेगी दोबारा...

सामान्य जीवन जियें...
विनम्रता से चलें ...
और
ईमानदारी पूर्वक प्यार करें...

स्वर्ग यहीं है
एक ट्रक के पीछे एक
बड़ी अच्छी बात लिखी देखी....

"ज़िन्दगी एक सफ़र है,आराम से चलते रहो
उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगें, बस गियर बदलते रहो"
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!

तज़ुर्बा है हमारा... . .. मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!

जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,

यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!

जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ....

जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए...

पैसा इन्सान को ऊपर ले जा सकता है;
            
लेकिन इन्सान पैसा ऊपर नही ले जा सकता......

कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है....

पर रोटी की साईज़ लगभग  सब घर में एक जैसी ही होती है।

  : शानदार बात

इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,

और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले...
                   

कर्मो' से ही पहेचान होती है इंसानो की...

महेंगे 'कपडे' तो,'पुतले' भी पहनते है दुकानों में !!..

चंद लाइने पुरे ग्रुप के लीये…..

जिंदगी से हर पल एक मोज मिली,
कभी कभी नहीं हर रोज मिली.

बस एक अच्छा दोस्त मांगता था
जिन्दगी से…
पर मुझे तो पूरी विद्वानों की
फौज मिली।.
हमारा  group कोई वाशिंग पावडर
नहि है !
पहले ईस्तेमाल करे,  फिर विश्वास
करे !
हमारा group  तो LIC है !

          जिंदगी के साथ भी ,
          जिंदगी के बाद भी....

मुझे नही पता कि मैं एक बेहतरीन ग्रुप मेंबर हूँ या नही...
लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि
मैं जिस ग्रुप में हूँ उसके सारे मेंबर...
बहुत बेहतरीन हैं.....

सिर्फ एक दिन...

kabhi kabhi sach me aisa hi dil chahta hai...

व्यतीत करना चाहती हूँ ...
सिर्फ एक दिन...
खुद के लिये...
जिसमें न जिम्मेदारियों का दायित्व हो
न कर्त्तव्यों का परायण
न कार्य क्षेत्र का अवलोकन हो
न मजबूरियोँ का समायन
बस मैं ,
मेरे पल ..
मेरी चाहतें और
मेरा संबल
एक कप काफी से
हो मेरे दिन की शुरुआत
भीगकर अतीत के लम्हों में
खोजू अपने जज्बात
भूल गई जो जिंदगी जीना
उसे फिर से याद करु..
सबकी खातिर छोङ चुकी जो
उन ख्वाईशों की बात करु..
उलझी रहू बस स्वयं में ही
न कोई हो आस पास...
जी लू जी भर उन लम्हों को
जो मेरे हो सिर्फ खास..
मस्त मगन होकर में नाचूँ
अल्हङपन सी मस्ती में
जैसे चिङिया चहक रही हो
खुले आसमान सी बस्ती में..
मन का पहनू,
मन का खाऊं
न हो और किसी का ख्याल...
भूल गई हू जो जीना मैं
फिर से न हो मलाल..
शाम पङे सखियों से गपशप
और पानीपूरी खाऊं
डाक्टर के सारे निर्देशों को
बस एक दिन भूल जाऊँ..
मस्त हवा संग बाते करु
खुली सङक पर यूंही चलू..
बेफिक्री की राह पकङकर
अपनी बातों की धौंस धरु..
रात नशीली मेरे आंगन
इठलाती सी आये
लेकर अपनी आगोश में
चांद पूनम का दिखलायें...
सोऊं जब सपने में मुझे
वो राजकुमार आये
परियों की दुनियां से होकर
जो मेरे रंग में रंग जाये..
एकसाथ में बचपन ,
यौवन
फिर से जीना चाहती हूं....
काश! मिले वो लम्हेँ मुझको
एक दिन अगर जो पाती हू...
Dedicated to all women

धन तभी सार्थक

*धन* तभी
सार्थक है,
जब *धर्म* भी साथ हो।

*सुंदरता* तभी
सार्थक है,
जब *चरित्र* भी शुद्ध हो।

*संपत्ति* तभी
सार्थक है,
जब *स्वास्थ्य* भी
अच्छा हो।

*मंदिर* जाना तभी
सार्थक है,
जब *हृदय* में भाव हो।

अच्छा *व्यापार* तभी
सार्थक है,
जब *व्यवहार* भी
अच्छा हो।

*ज्ञानी* होना तभी
सार्थक है,
जब *सरलता* भी
साथ हो।

✌� *प्रसिद्धि* तभी
सार्थक है,
जब मन में
*निर अहंकारिता* हो।

✍� *बुद्धिमता* तभी
सार्थक है,
जब *विवेक* भी
साथ हो।

*अतिथि* बनकर जाना
तभी सार्थक है,
जब वहां *सत्कार* हो।

‍‍‍ *परिवार* का होना तभी
सार्थक है,
जब उसमें *प्यार* और
*आदर* हो।

*रिश्ते* तभी तक
सार्थक है,
जब तक आपस में
*विश्वास* हो।

  
                

आज तिरँगा गाड़ दो....!

जहाँ मिलें जिस जगह मिलें....
इनकी छाती ही फाड़ दो.....
आतंकी की देह में गहरे....
आज तिरँगा गाड़ दो....!

बहुत हो चुके शौकग्रस्त हम....
आज युद्ध की वेला है....
आज उरी में फ़िर कुत्तों ने....
खेल रक्त का खेला है...!

कब तक सैनिक वीर हमारे....
अपने प्राण गंवायेंगे....?
और तिरंगे में लिपटे...
कितने शव वापस आयेंगे....?

बहुत हुआ आतंक-नृत्य...
अब अन्तिम परदा गिरने दो....
सीमा के उस पार पापियों को-
भी कुछ शव गिनने दो..!!!

कूटनीति और राजनीति के...
बन्धन अब -सब छोड़ दो....
पाकिस्तानी कुत्तों की हर....
अकड़ की हड्डी तोड़ दो...!

आहत है यह देश हमारा....
आहत हैं भारत माता...
सेना को दे क्षति श्वान यह...
आखिर क्यों है बच जाता....???

समय पुकारे देश पुकारे...
अब तो सुन लो ओ सरकार....
सेना को दो छूट मचेगी...
पाकिस्तान में हाहाकार....!

पार करो सीमा को दम से...
सिहर उठे रावलपिंडी....
सदा सदा के लिये मिटा दो...
दहश्तग़र्दी की मंडी....!!

वन्दे मातरम.....

सुख सागर

सुख सागर 

कभी यह सोचिए कि , स्वयं को बदलना , कितना कठिन है  ,
       फिर औरों को बदलना , कैसे सरल हो सकता है..!!!
             .    ❤❤.   
दो हाथों से हम 50 लोगों को नही मार.सकते पर दो हाथ...
    जोड़ कर हम करोड़ों लोगों का दिल जीत सकते हैं....!
            .    .    ❤❤
पहचान से मिला काम ,
बहुत कम समय के लिए टिकता है ,
    लेकिन काम से मिली पहचान ,
उम्र भर कायम रहती है ।
                  
डाली से टूटा फूल फिर से लग नहीं सकता है मगर ,
     डाली मजबूत हो तो उस पर नया फूल खिल सकता है,
    उसी तरह ज़िन्दगी में             
खोये पल को ला नहीं सकते
मगर,.हौसलें व विश्वास से आने वाले हर पल को  खुबसूरत बना सकते हैं ......                  

       
             

मैं स्त्री हूँ...

मैं स्त्री हूँ...सहती हूँ...
तभी तो तुम कर पाते हो गर्व,अपने पुरुष होने पर।।

मैं झुकती हूँ......
तभी तो ऊँचा उठ पाता है तुम्हारे अहंकार का आकाश।।

मैं सिसकती हूँ......
तभी तो तुम मुझ पर कर पाते हो खुल कर अट्टहास।।

व्यवस्थित हूँ मैं......
इसलिए तो तुम रहते हो अस्त व्यस्त।।।।।

मैं मर्यादित हूँ.........
इसलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमाएं!!

स्त्री हूँ मैं...
हो सकती हूँ पुरुष भी...पर नहीं होती।
रहती हूँ स्त्री इसलिए...ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरुष।।।।।
मेरी ही नम्रता से पलता तुम्हारा पौरुष।।

मैं समर्पित हूँ....
इसलिए हूँ...अपेक्षित,तिरस्कृत!!!
त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान,ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान।

सुनो मैं नहीं व्यर्थ...मेरे बिना भी तुम्हारा नहीं कोई अर्थ!!!

सभी स्त्रियों को समर्पित

सर्जिकल स्ट्राइक

सर्जिकल
                 कवि युगराज जैन
शेर दहाड़ उठा ,
पड़ौस में पहाड़ टूटा ,
था आतंक का नासूर ,
घमंड हुआ चकनाचूर ,
कई बार दिया मौका ,
किन्तु हर बार भौंका ,
सेना पर है हमें नाज ,
जिसके पास हर इलाज ,
सर्जिकल तो केवल झांकी है ,
युद्ध तो अभी बाकी है ,
बोल युद्ध झेलेगा या सर्जिकल है काफी ,
अक्ल है तो जल्दी मांग ले माफी ,
वर्ना तेरी भी जनता तुझ पर टूट जायेगी ,
सीमाएं भी तुझसे अब रूठ जायेंगी ,
अब भी वक्त है पागलपन छोड़ दे ,
इंसानियत से नाता जोड़ दे ।
    

जय हिंद जय भारत

रब का जब तक

रब का जब तक / साया जग में
तब तक मेरी / काया जग में

जिसने सीखा / गम को पीना     
खुशियां लेकर /आया जग में

बिरवे रोपे / उम्मीदों के
फैली ठंडी / छाया जग में

एक परिंदा / बन उड जाऊं
उस रहमत को / पाया जग में

दीपा के मन / में है उलझन
ममता सच या माया जग मे़ं।

नाज हमें है उन वीरों पर


नाज हमें है उन वीरों पर,
                जो मान बड़ा कर आये हैं।
दुश्मन को घुसकर के मारा,
                शान बड़ा कर आये हैं...।I

मोदी जी अब मान गये हम,
                छप्पन   इंची   सीना   है।
कुचल, मसल दो उन सबको अब,
                चैन  जिन्होंने  छीना  है....।I

और आस अब बड़ी वतन की,
                अरमान .बड़ा कर  आये  हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर,
                जो शान  बड़ा कर आये हैं...।I

एक मरा तो सौ मारेंगे,
                अब  रीत  यही  बन  जाने  दो।
लहू का बदला सिर्फ लहू है,
                अब गीत यही बन जाने दो...।I

गिन ले लाशें दुश्मन जाकर,
                 शमसान बड़ा कर आये हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर,
                 जो मान बड़ा कर आये हैं....।I

अब बारी उन गद्दारों की,
                 जो  घर  के  होकर  डसते  हैं।
भारत की मिट्टी का खाते,
                 मगर  उसी  पर  हँसते  हैं....।I

उनको भी चुन चुन मारेंगे,
                 ऐलान  बड़ा  कर  आये  हैं।
नाज हमें है उन वीरों पर,
                 जो मान बड़ा कर आये हैं....।I

रविवार, 25 सितंबर 2016

क्या खूब कहा है...

एक सैनिक ने क्या खूब कहा है...

किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ,
मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ,
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ,
मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ...!!

शहीदो को शत शत नमन।।