बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

खुद के अवगुण खोजिये.

खुद के अवगुण खोजिये. ,
दूजै के गुण देख. !!
जदे सारथक जांणिये. ,
साचो जीवन शेख. !!1!!

अवगुण देखे और के. ,
तब कां मिळसी तोय. !!
परनिन्दा कज्ज प्रांणिया ,
हांण तिहारी होय  !!2!!

जो तूं चाहै जगत में. ,
भल्ल हुवै तव भाग. !!
श्रीहरी ने समरतां  ,
तन मन अवगुण त्याग. !!3!!

हेत राख भजिये हरी  ,
तजिये दोष तमाम. !!
लगन धार मन लीजिये. ,
रजिये ऐको राम. !!4!!

ध्यान राख नह धोविये  ,
मिनखां तणो ज मेल. !!
परनिन्दा तणें पाप सूं  ,
खोटा होसी खेल. !!5!!
मीठा मीर डभाल

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

ऐ मेरे स्कूल मुझे, जरा फिर से तो बुलाना.

*ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना..*

कमीज के बटन
ऊपर नीचे लगाना,
वो अपने बाल
खुद न काढ़ पाना,
पी टी शूज को
चाक से चमकाना,
वो काले जूतों को
पैंट से पोंछते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो बड़े नाखुनों को
दांतों से चबाना,
और लेट आने पर
मैदान का चक्कर लगाना,
वो प्रेयर के समय
क्लास में ही रुक जाना,
पकड़े जाने पर
पेट दर्द का बहाना बनाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो टिन के डिब्बे को
फ़ुटबाल बनाना,
ठोकर मार मार कर
उसे घर तक ले जाना,
साथी के बैठने से पहले
बेंच सरकाना,
और उसके गिरने पे
जोर से खिलखिलाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

गुस्से में एक-दूसरे की
कमीज पे स्याही छिड़काना,
वो लीक करते पेन को
बालों से पोंछते जाना,
बाथरूम में सुतली बम पे
अगरबत्ती लगाकर छुपाना,
और उसके फटने पे
कितना मासूम बन जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे'*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो Games Period
के लिए Sir को पटाना,
Unit Test को टालने के लिए
उनसे गिड़गिड़ाना,
जाड़ो में बाहर धूप में
Class लगवाना,
और उनसे घर-परिवार के
किस्से सुनते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना...*

वो बेर वाली के बेर
चुपके से चुराना,
लाल–पीला चूरन खाकर
एक दूसरे को जीभ दिखाना,
खट्टी मीठी इमली देख
जमकर लार टपकाना,
साथी से आइसक्रीम खिलाने
की मिन्नतें करते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो लंच से पहले ही
टिफ़िन चट कर जाना,
अचार की खुशबू
पूरे Class में फैलाना,
वो पानी पीने में
जमकर देर लगाना,
बाथरूम में लिखे शब्दों को
बार-बार पढ़के सुनाना...

ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना...

वो Exam से पहले
गुरूजी के चक्कर लगाना,
लगातार बस Important
ही पूछते जाना,
वो उनका पूरी किताब में
निशान लगवाना,
और हमारा ढेर सारे Course
को देखकर सर चकराना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो मेरे स्कूल का मुझे,
यहाँ तक पहुँचाना,
और मेरा खुद में खो
उसको भूल जाना,
बाजार में किसी
परिचित से टकराना,
वो जवान गुरूजी का
बूढ़ा चेहरा सामने आना...
तुम सब अपने स्कूल
एक बार जरुर जाना...

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

अजनबी होता शहर देखा

बेगाने होते लोग देखे,
अजनबी होता शहर देखा
हर इंसान को यहाँ,
मैंने खुद से हीं बेखबर देखा।

रोते हुए नयन देखे,
मुस्कुराता हुआ अधर देखा
गैरों के हाथों में मरहम,
अपनों के हाथों में खंजर देखा।

मत पूछ इस जिंदगी में,
इन आँखों ने क्या मंजर देखा
मैंने हर इंसान को यहाँ,
बस खुद से हीं बेखबर देखा।

दुनिया की भीड़ में खो जाते है

बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं

अपनी जान से ज़्यादा प्यारा desk top छोड़ कर
अलमारी के ऊप र धूल खाता गिटार छोड़ कर
Gym के dumbles, और बाकी gadgets
मेज़ पर बेतरतीब पड़ी worksheets, pens और pencils बिखेर कर
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं

मुझे ये colour /style पसंद नहीं
कह कर brand new शर्ट अलमारी में छोड़ कर
Graduation ceremony का सूट, जस का तस
पुराने मोज़े, बनियान , रूमाल, (ये भी कोई सहेज़ के रखने वाली चीज़ है )
सब बेकार हम समेटे हैं, उनको परवाह नहीं
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनियां की भीड़ में खो जाते हैं

जिस तकिये के बिना नींद नहीं आती थी
वो अब कहीं भी सो जाते हैं
खाने में नखरे दिखाने वाले अब कुछ भी खा कर रह जाते हैं
अपने room के बारे में इतनेpossessive होने वाले
अब रूम share करने से नहीं हिचकिचाते
अपने career बनाने की ख्वाहिश में
बेटे भी माँ बाप से बिछड़ जाते हैं
दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं

घर को मिस करते हैं, पर कहते नहीं
माँ बाप को 'ठीक हूँ 'कह कर झूठा दिलासा दिलाते हैं
जो हर चीज़ की ख्वाहिशमंद होते थे
अब  'कुछ नहीं चाहिए' की रट लगाये रहते हैं
जल्द से जल्द कमाऊ पूत बन जाने की हसरत में
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनियां की भीड़ में खो जाते हैं

हमें पता है,
वोअब वापस नहीं आएंगे, आएंगे तो छुट्टी मनाने
उनके करियर की उड़ान उन्हें दूर कहीं ले जाएगी
फिर भी हम रोज़ उनका कमरा साफ़ करते हैं
दीवारों पर चिपके पोस्टर निहारते हैं
संजोते हैं यादों में उन पलों को,
जब वो नज़दीक थे, परेशान करते थे
अब चाह कर भी वो परेशानी नसीब में नहीं
क्योंकि
बेटे भी बेटियों की तरह घर छोड़ जाते हैं
दुनियां की भीड़ में खो जाते हैं

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

दांतों फंसी सुपारी

*गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं । दांतों फंसी सुपारी हो गए हैं ।।*

*महकमा सारा हमको ढूँढता है।*
*हम संक्रामक बीमारी हो गए हैं ।।*

*इसे चमचागिरी की हद ही कहिये।*
*कई शिक्षक अधिकारी हो गए हैं ।।*

*अब वे अकेले  कईयों को नचाते हैं ।*
*और हम टीचर से मदारी हो गए हैं ।।*

*उन्हें अब चाक डस्टर से क्या मतलब ।*
*जो ब्लॉक/संकुल प्रभारी हो गए हैं ।।*

*कमीशन इसमें,उसमें, इसमें भी दो।*
*हम दे-दे कर भिखारी हो गए हैं ॥*

*मिला है MDM का चार्ज जबसे ।*
*गुरुजी भी भंडारी हो गए हैं ॥*

*बी ई ओ ऑफिस को मंदिर समझ कर ।*
*कई टीचर पुजारी हो गए हैं ॥*

*पढ़ाने से जिन्हें मतलब नहीं है ।*
*वो प्रशिक्षण प्रभारी हो गए हैं ॥*

*खटारा बस बनी शिक्षा व्यवस्था ।*
*और हम लटकी सवारी हो गए हैं ।*                               *स्कूलों में पढ़ाने नहीं दे रही  सरकार ।*                             *केवल डाक देने और लेने वाले डाकिया हो गये ।*          *स्कूलों में चारदीवार नहीं होने से ।*                               *जानवरोँ द्वारा फैलाई गंदगी साफ करने वाले ।*                *सफाई कर्मचारी हो गए ।*     *हक की लड़ाई लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है ।*                                          *शिक्षक अब गुरु नहीं रहे केवल सरकारी गुलाम रह गए ।।।।*                               *अब विभाग ई-अटेंडेंस से हमारी निगरानी करेगा ।।।*    *मानो हम "शिक्षक" नहीं, "मोस्ट वांटेड अपराधी" हो गए ।।।*

खुशनुमा

दिल की देहरी  से

आलमे खुशनुमा हो गया
कोई फिर बदगुमां हो गया

सर झुका आया हूँ सजदे में
फर्ज मेरा अदा हो गया

लोग किसको मनाने निकले
कौन खुद से ख़फा हो गया

मंजिले पास आई तभी
दरमियाँ फासला हो गया

बोलते देख कर आईने
तूं क्यों बेजुबाँ हो गगया

©©©©©©©
रतन सिंह चंपावत कृत

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

उलझनों और कश्मकश में..

उलझनों और कश्मकश में..
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ..

ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए..
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का ...
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l

चल मान लिया.. दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक..
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक ...
मुझे क्या फ़िक्र.., मैं कश्तीया और दोस्त... बेमिसाल लिए बैठा हूँ...

रविवार, 29 जनवरी 2017

सौ गुना बढ़ जाती है खूबसूरती

एक कवि ने क्या खूब लिखा है:-

सौ गुना बढ़ जाती है खूबसूरती,
महज़ मुस्कराने से,

फिर भी बाज नही आते लोग,
मुँह फुलाने से ।

ज़िन्दगी एक हसीन ख़्वाब है ,
जिसमें जीने की चाहत होनी चाहिये।

ग़म खुद ही ख़ुशी में बदल जायेंगे,
सिर्फ मुस्कुराने की आदत होनी चाहिये।

मंजिल तुमसे दूर नहीं

पावों में यदि जान हो तो

मंजिल तुमसे दूर नहीं।

आँखों में यदि पहचान हो, तो
                   
इंसान तुमसे दूर नहीं।

दिल में यदि स्थान हो तो
                    
अपने तुमसे दूर नहीं।

भावना में यदि जान हो, तो
                   
भगवान तुमसे दूर नहीं।

एक सच्चाई और

परिवार के मालिक नही,माली बनकर रहो

जीवन खुशियों से हरा भरा रहेगा...

 

पद्मिनी का प्रेम

*पद्मिनी का प्रेम*
- *डॉ. गजादान चारण 'शक्तिसुत'*

सुंदरता खुद जिससे मिलकर, सुंदरतम हो आई थी।
जिसके मन मंदिर में अपने, पिय की शक्ल समाई थी।

शील, पतिव्रत की दुनिया को, जिसने सीख सिखाई थी।
जौहर की ज्वाला में जलकर, जिसने जान लुटाई थी।

सदियों के गौरव को जिसने, अम्बर तक पहुंचाया था।
स्वाभिमान को शक्ति देकर, खिलजी से भिड़वाया था।

जीते जी राणा को चाहा, और चाह ना उसकी थी।
सत-पथ पे चलती थी हरदम, सत पे जीती मरती थी।

चित्तौड़ दुर्ग की वह महारानी, रति से सुंदर दिखती थीं।
उर्वशी, रम्भा सी परियां, नहीं एक पल टिकती थीं।

कामदेव भी जिसे देखकर, विचलित सा हो जाता था।
अलाउद्दीन खिलजी उसको ही, हुरम बनाना चाहता था।

पर वो राजपूत की बेटी, प्रण की बड़ी पुजारी थी।
पति के सिवा उसे दुनिया में, कोई चीज न प्यारी थी।

खिलजी की तो उस पदमण पर, परछाई भी नहीं पड़ी।
लाज बचाने के खातिर वो, अग्निकुंड में कूद पड़ी।

मर के अमर हुई महारानी, तीर्थ बनी चित्तौड़ धरा।
उज्ज्वल क्षत्री वंश हुआ और राजस्थानी वसुंधरा।

उसको कामी खिलजी की ये, आज प्रेमिका कहते हैं।
हैरत है ये अर्थपुजारी, इस भारत में रहते हैं।

जिनका धर्म इमां पैसा है, वे क्या जाने मर्यादा।
पैसा लेकर जहां प्यार को, कर लेते आधा आधा।

राजस्थानी कुल-कानी को, समझे ऐसी सोच कहाँ।
प्रगतिवाद के इन पुतलों में, मानवता का लोच कहाँ।

गर इतिहास हुआ खंडित तो, पीछे कुछ ना बच पाएगा।!!
संस्कृति का अमृत निर्झर, जहर सना हो जाएगा।

हर गौरव की थाती को ये, मनोविनोदी ले लेंगे।
और उसे विकृत कर करके, फिल्मकहानी गढ़ लेंगे।

अब पानी सर पर है आया, उठ पतवार संभालो तुम।
डूब न जाए अर्थ-समंद में, ये इतिहास बचालो तुम।

मेरे भारत के युवाओ! इक रानी की बात नहीं।
पद्मिनी हो या जोधा को, फिल्माने की बात नहीं।

बात सिर्फ है स्वाभिमान की, सत्य सनातन वो ज्योती।
उसपे घात करे कोई तो, हमसे सहन नहीं होती।
डॉ. गजादान चारण 'शक्तिसुत'

शनिवार, 28 जनवरी 2017

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिया करो

अपनी गृहस्थी को कुछ
इस तरह बचा लिया करो
कभी आँखें दिखा दी
कभी सर झुका लिया करो

आपसी नाराज़गी को लम्बा
चलने ही न दिया करो
वो न भी हंसें तो
तुम मुस्करा दिया करो

रूठ कर बैठे रहने से
घर भला कहाँ चलते हैं
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया
कभी तुम मना लिया करो

खाने पीने पे विवाद
कभी होने ही  न दिया करो
कभी गरम खा ली
कभी बासी से काम चला लिया करो

मीयां हो या बीबी
महत्व में कोई भी कम नहीं
कभी खुद डॉन बन गए
तो कभी उन्हें बॉस बना दिया करो

अपनी गृहस्थी को कुछ
इस तरह बचा लिया करो...

Dedicated to  All Couples

शनिवार, 14 जनवरी 2017

ज़िन्दगी से प्यार कर


.............*ग़ज़ल*.............

ज़िन्दगी से प्यार कर
खुशियों को शुमार कर
            .........
दिल पराया.ही सही
ग़म अपना अख़्तियार कर
            ..........
है यही तो ज़िन्दगी
खुद को सोग़वार कर
            ...........
हैं सुख़न तल्ख मगर
सच का ऐतबार कर
            .........
मंजिलों का साथ पा
राह को पुरख़ार कर
            .........
मंजिल नहीं ये आस्मां
ज़रा आस्मां को पार कर
           ..........
और नज़र में ताब ला
देख फिर दिदार कर
          ........
जी से *जुनैद* जी तो ले
फिर मौत का इन्तज़ार कर
...........................
*जुनैद अख़्तर*

............................

लंगूर

नौ मईना भार्यां मरी, फोगट घमायो नूर।
हमीद कलाम तूँ ना जण्यो, जलम्यो छे तैमूर।।
गई आबरू पीहर री, दादे रो गरूर ।
रह जाती तुन बाँझड़ी, आछो जायो लंगूर।।

वतन हिन्द में

वतन हिन्द में विसहत्थी  ,
अमन राखियो आप. !!
सुख में जन रहवे सदा  ,
परगळ तव परताप. !!1!!

सौरभ हुवे संसार में. ,
भारत तणी ज भल्ल. !!
आप दया सूं ईसरी. ,
आवे नाम अवल्ल. !!2!!

चमन महक्के चौगुणों  ,
हद जुग में हिंदवांण. !!
वसुधा में ख्याति वधो. ,
परम्म नाम प्रमाण. !!3!!

गूंजै वातां ज्ञान री. ,
हिन्द तणीह हमेश. !!
भारत ओ हौवे भलां. ,
दुनिया चावो देश. !!4!!

ज्ञान विज्ञान'र गणित ही  ,
भौतिक साहित भल्ल. !!
सहु विद्या में हो सदा  ,
गजब हिन्द री गल्ल. !!5!!

नेक नीयत'र नेहवत  ,
सदाचार की शान. !!
सदा हुवे संसार में  ,
मेरो देश महान. !!6!!

प्रजा रेहसी प्रेम सूं. ,
द्वेष राग कर दूर. !!
जद ओ सघळा जांणजो  ,
मुलक हिन्द मशहूर  !!7!!

हिन्दु मुसलीम हेत री. ,
गजब बहावे गंग. !!
देखे उन्नति देश की. ,
दुनिया होवे दंग. !!8!!

सुक्ख अमन रे साथ में  ,
हरदम रहणो होय  !!
मिसरी दुध रे ज्युं.मिळे ,
सदा रहीजो सोय. !!9!!

राजनेता ज राज में ,
भुंडी रखै नह भ्रांत. !!
तरक्की हुय भारत तणी  ,
परम सुखी सब प्रांत. !!10!!

हिन्दु मुसलीम रा हुवै  ,
भला ज मन रा भाव. !!
करनल इण हित कारणें. ,
आप दया कर आव. !!11!!

गळी नगर हर गांव में. ,
सुखी रहे जन सोय. !!
देवी भारत देश री. ,
हरदम ख्याति होय. !!12!!
मीठा मीर डभाल

आदमी की औकात

बिलकुल सत्य दोहा है ।

एक माचिस की तिल्ली,
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात !!!!*

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया ,
अपनी सारी ज़िन्दगी ,
परिवार के नाम कर गया।
कहीं रोने की सुगबुगाहट  ,
तो कहीं फुसफुसाहट ,
....अरे जल्दी ले जाओ
कौन रखेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!*

मरने के बाद नीचे देखा ,
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ  ज़बरदस्ती
रो रहे थे।
नहीं रहा.. ........चला गया..........
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!!*

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा ,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी ......
अखबार में
अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे ,
जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात !!!!!!*

जिन्दगी भर ,
मेरा- मेरा- मेरा  किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जीया ...
कोई न देगा साथ...जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका
ले जाने की भी
है हमारी औकात   ???

*ये है हमारी औकात*  फिर घमंड कैसा ?  ✍

अनवरत बहती धारा में .

अति सुंदर पंक्तियां -

समय की .. इस अनवरत बहती धारा में ..
अपने चंद सालों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

जिंदगी ने .. दिया है जब इतना .. बेशुमार यहाँ ..
तो फिर .. जो नहीं मिला उसका हिसाब क्या रखें .. !!

दोस्तों ने .. दिया है .. इतना प्यार यहाँ ..
तो दुश्मनी .. की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

दिन हैं .. उजालों से .. इतने भरपूर यहाँ ..
तो रात के अँधेरों का .. हिसाब क्या रखे .. !!

खुशी के दो पल .. काफी हैं .. खिलने के लिये ..
तो फिर .. उदासियों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

हसीन यादों के मंजर .. इतने हैं जिंदगानी में ..
तो चंद दुख की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

मिले हैं फूल यहाँ .. इतने किन्हीं अपनों से ..
फिर काँटों की .. चुभन का हिसाब क्या रखें .. !!

चाँद की चाँदनी .. जब इतनी दिलकश है ..
तो उसमें भी दाग है .. ये हिसाब क्या रखें .. !!

जब खयालों से .. ही पुलक .. भर जाती हो दिल में ..
तो फिर मिलने .. ना मिलने का .. हिसाब क्या रखें .. !!

कुछ तो जरूर .. बहुत अच्छा है .. सभी में यारों ..
फिर जरा सी .. बुराइयों का .. हिसाब क्या रखें .. !!!

रविवार, 8 जनवरी 2017

इंसान

*कमियाँ तो मुझमें भी बहुत है,*
                      *पर मैं बेईमान नहीं।*

*मैं सबको अपना मानता हूँ,*
     *सोचता फायदा या नुकसान नहीं।*

*एक शौक है ख़ामोशी से जीने का,*
           *कोई और मुझमें गुमान नहीं।*

*छोड़ दूँ बुरे वक़्त में दोस्तों का साथ,*
                  *वैसा तो मैं इंसान नहीं।*

शनिवार, 7 जनवरी 2017

कुहरे में डूबी है सुबह

कुहरे में डूबी है सुबह ,
जी भर के जी लें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||

मिल-बैठ सुनें ज़रा आओ ,
मौसम की आहट |
ठण्डे हैं पड़ गए रिश्ते ,
भर दें गरमाहट |
मौका है चलो दें निकाल ,
कटुता की कीलें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||

फिर से इशारों में खेलें ,
प्यार वाला खेल |
जो कुछ भी मन में है दबा ,
सब कुछ दें उड़ेल |
मन से हो मन का संवाद ,
होंठों को सी लें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||

जितने भी हैं शिकवे-गिले ,
बिसरायें सारे |
रात के आँचल में मिलकर ,
टाँक दें सितारे |
गहरा न जाये अन्धकार ,
जला दें कंदीलें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें |सुप्रभात

रविवार, 1 जनवरी 2017

जीवन पथ

इस साल के अंतिम दिन पर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की चन्द अनमोल पंक्तियॉ...

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद....

नया साल आपके और आपके समस्त परिजनों के लिये मंगलमय हो!!

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

बीवी कपडे  वाले की....व्यंग्य

*बीवी कपडे  वाले की*....व्यंग्य का आनंद लें.
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हाय राम हमारी किस्मत तो,
लगता है एकदम सो गई है;
जबसे मेरी शादी,
एक अध्यापक जी से हो गई है।

सुबह 7 बजे घर से निकलें, ढाई बजे आ जाते हैं;
घर पड़े पड़े फिर पूरा दिन वह,
मुझपे हुकुम चलाते हैं।

भगवान बनाया क्यों मुझे, एक बीवी टीचिंग वाले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।

सुबह के निकले सैँया जी, देर रात घर आएंगे;
बिना किसी झगड़े दंगे,
दो पैग लगा सो जाएंगे

गजब निराली माया होगी, व्हिस्की औ रम के प्याले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।
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*कपडे वाले* जीवन जीते, पत्नी रोमाँस मे;
वीस हजार खर्च करें,
पत्नी के मेंटिनेन्स मे।

पतिदेव की कमाई
जैसे जैसे बढ़ती जायेगी;
सच कहती हूँ सुंदरता,
मेरी और निखरती जायेगी।

परवाह नहीं बनाना मुझको,
गोरे की या काले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।
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जब मेरा जी ना चाहे,
मै खाना नही बनाऊँगी;
पतिदेव से कहके,
खाना होटल से मंगवाऊँगी।

बैठके पीछे बाईक पर,
हर हफ्ते पिक्चर जाऊँगी,
जीन्स टाप सब ब्रैण्डेड सैण्डल,
पैंट पहन इतराऊँगी।

शकल देखना चाहूं न मै, साड़ी शाल दुशाले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।
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*कपडे वाले* हद से ज्यादा,
बीवी की केयर करते हैं;
बड़े बड़े अफसर तक भी, अपनी बीवीजी से डरते हैं।

कभी कभी गलती से ही, बीवी पर गुस्सा खाते हैं;
थोडा आँख दिखा दो तो, तुरंत ही घबरा जाते हैं।

बत्ती गुल हो जाती है, अच्छे अच्छे किस्मत वाले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले*की।।
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पर अगले जनम तक इन्तज़ार करना ,
भी मुश्किल हो जायेगा; *कपडे वाले*की खातिर, यह दिल पागल ही हो जायेगा।

अगर इसी जनम मे मिल जाए,
कोई *कपडे वाला* इस साधक को;
सच कहती हूँ छोड़ भगूंगी, इस पगले अध्यापक को।

परवाह नहीं बनाना मुझको,
गोरे की या काले की;
अगले जनम मे मुझे , बीवी बनाना *कपडे वाले की*।।
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अगले जनम मे मुझे बनाना, बीवी *कपडे वाले की*।।

याद

वो    जिसे  भूलने में ज़माने लगे।
फिर मुझे याद आकर सताने लगे।

लो   सितारे  हँसे   फूल  गाने  लगे।
वादियों   में  नया  घर बसाने  लगे।
 
अब मुझे छोड़कर वो ख़फा हो चले।
फिर  मनाने  में उनको  ज़माने लगे।

लौटकर आऊँगा कह गया वो मुझे ।
देखकर  अब  नज़र भी हटाने लगे।

तीर   दीपा नज़र  के  चलाए   मगर ।
उसकी आँखों में  भी सौ बहाने लगे ।

⚱⚱दीपा परिहार⚱⚱

दिल दुखाना

नही चाहिये दिल दुखाना किसी का,
सदा ना रहा है सदा ना रहेगा,
जमाना किसी का॥॥

आयेगा बुलावा तो जाना पड़ेगा,
सर तुझ को आखिर झुकाना पड़ेगा,
वहाँ ना चलेगा बहाना किसी का।
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

शोहरत तुम्हारी बह जायेगी ये,
दौलत यही पर रह जायेगी ये,
नही साथ जाता खजाना किसी का,
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

पहले तो तुम अपने आप को सम्भलौ,
हक है नही तुमको बुराई औरों मे निकालो,
बुरा है बुरा जग मे बताना किसी का,
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

दुनिया का गुलशन सदा ही रहेगा,
ये जहाँ मे लगा ही रहेगा,
आना किसी का जग मे जाना किसी का,
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

कुछ हँस के बोल दिया करो,

कुछ हँस के
     बोल दिया करो,
कुछ हँस के
      टाल दिया करो,
यूँ तो बहुत
    परेशानियां है
तुमको भी
     मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
     वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
    हंसाने वाला मिले न मिले..
इसलिये आज ही
      हसरत निकाल लिया करो !!
समझौता
      करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा 
      झुक जाना
किसी रिश्ते को
         हमेशा के लिए
तोड़ देने से
           बहुत बेहतर है ।।।
किसी के साथ
     हँसते-हँसते
उतने ही हक से
      रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का
     पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
      रिश्तेदारी और
दोस्ती में
    कैसा मान अपमान ?
बस अपनों के 
     दिल मे रहना
आना चाहिए...!
                           

मिलते जुलते रहा करो


         *मिलते जुलते रहा करो*
       
        धार वक़्त की बड़ी प्रबल है,
        इसमें लय से बहा करो,
        जीवन कितना क्षणभंगुर है,
        मिलते जुलते रहा करो।

        यादों की भरपूर पोटली,
        क्षणभर में न बिखर जाए,
        दोस्तों की अनकही कहानी,
        तुम भी थोड़ी कहा करो।

        हँसते चेहरों के पीछे भी,
        दर्द भरा हो सकता है,
        यही सोच मन में रखकर के,
        हाथ दोस्त का गहा करो।

        सबके अपने-अपने दुःख हैं,
        अपनी-अपनी पीड़ा है,
        यारों के संग थोड़े से दुःख,
        मिलजुल कर के सहा करो।

        किसका साथ कहाँ तक होगा,
        कौन भला कह सकता है,
        मिलने के कुछ नए बहाने,
        रचते-बुनते रहा करो।

        मिलने जुलने से कुछ यादें,
        फिर ताज़ा हो उठती हैं,
        इसीलिए यारों नाहक भी,
        मिलते जुलते रहा करो।

   

जीवन यादों की पुस्तक

"धीरे धीरे उम्र कट जाती हैं!
"जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है!

"कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है!
"और कभी यादों के सहारे जिंदगी कट जाती है!

"किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते!
"फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते!

"जी लो इन पलों को हंस के दोस्त!
"फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं  आते!!