.............*ग़ज़ल*.............
ज़िन्दगी से प्यार कर
खुशियों को शुमार कर
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दिल पराया.ही सही
ग़म अपना अख़्तियार कर
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है यही तो ज़िन्दगी
खुद को सोग़वार कर
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हैं सुख़न तल्ख मगर
सच का ऐतबार कर
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मंजिलों का साथ पा
राह को पुरख़ार कर
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मंजिल नहीं ये आस्मां
ज़रा आस्मां को पार कर
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और नज़र में ताब ला
देख फिर दिदार कर
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जी से *जुनैद* जी तो ले
फिर मौत का इन्तज़ार कर
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*जुनैद अख़्तर*
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