दिल की देहरी से
आलमे खुशनुमा हो गया
कोई फिर बदगुमां हो गया
सर झुका आया हूँ सजदे में
फर्ज मेरा अदा हो गया
लोग किसको मनाने निकले
कौन खुद से ख़फा हो गया
मंजिले पास आई तभी
दरमियाँ फासला हो गया
बोलते देख कर आईने
तूं क्यों बेजुबाँ हो गगया
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रतन सिंह चंपावत कृत
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