शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

खुशनुमा

दिल की देहरी  से

आलमे खुशनुमा हो गया
कोई फिर बदगुमां हो गया

सर झुका आया हूँ सजदे में
फर्ज मेरा अदा हो गया

लोग किसको मनाने निकले
कौन खुद से ख़फा हो गया

मंजिले पास आई तभी
दरमियाँ फासला हो गया

बोलते देख कर आईने
तूं क्यों बेजुबाँ हो गगया

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रतन सिंह चंपावत कृत

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