शनिवार, 22 अप्रैल 2017

सखी री .....

सखी री .....

कह दे दिल की बात सखी री
काहे को सकुचात सखी री

प्रेम पथिक आने को सुनि के
मन मयूर हरषात सखी री

मधुर हास नयना कजरारे
पुलकित कोमल गात सखी री

मुक्त मुखर मन मुदित अति मम
अंग अनंग मुसकात सखी री

मन आँगन में आहट उनकी
विकल मोहि कर जात सखी री

का से कहूँ मैं विरह वेदना 
तरुण तृषा तरसात सखी री

प्रिय पाँहुन आये नहीं अजहूं
बीती सारी रात सखी री

©© रतनसिंह चम्पावत कृत©©

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

तराना

मेरी गजल

प्रेम का रिश्ता मनाना हो गया।
मुस्कुराये इक जम़ाना हो गया।

चुप हुए तो लोग  कहने  यूं लगे
हर तरीका अब बहाना हो गया।

चल रहे थे साथ बनकर साज से
जब सजी  यादें तराना हो गया।

बिन कहे जज्बात भी कहने लगा
आज ये  बच्चा सयाना हो गया।

कर रही हूँ गलतियां उनकी नजर
आज 'दीपा' फिर फसाना हो गया ।

दीपा परिहार

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

आगे सफर था और पीछे हमसफर था...

क्या खूब लिखा है किसी ने...

आगे सफर था और पीछे हमसफर था...

रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता...

मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी...

ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...

मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था

रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते...

यूँ समँझ लो,

प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी मे जहर था...

पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...


बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए...
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए...

वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता...
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता

सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर...


"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है...

"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,

पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया...

अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा...


लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ...

बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है...

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...

दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...

बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी...

भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की...

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है...

हंसने की इच्छा ना हो,
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो..?
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों,
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है...

"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती,
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट, ये ढूँढ रहे हैं की
मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...

पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं...

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ,
कि...

पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम...

गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने,
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम..
_▄▄_
(●_●)
╚═►

Anil Jangid

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

वह कहता था, वह सुनती थी

वह कहता था,
वह सुनती थी,

जारी था एक खेल
कहने-सुनने का।

खेल में थी दो पर्चियाँ
एक में लिखा था ‘कहो’,
एक में लिखा था ‘सुनो’

अब यह नियति थी
या महज़ संयोग.. ?

उसके हाथ लगती रही वही पर्ची
जिस पर लिखा था ‘सुनो’

वह सुनती रही
उसने सुने आदेश
उसने सुने उपदेश

बन्दिशें उसके लिए थीं
उसके लिए थीं वर्जनाएँ

वह जानती थी,
'कहना-सुनना'
नहीं हैं केवल क्रियाएं

राजा ने कहा,
'ज़हर पियो'
वह मीरा हो गई

ऋषि ने कहा,
'पत्थर बनो'
वह अहिल्या हो गई

प्रभु ने कहा,
'निकल जाओ'
वह सीता हो गई

चिता से निकली चीख,
किन्हीं कानों ने नहीं सुनी
वह सती हो गई

घुटती रही उसकी फरियाद,
अटके रहे शब्द,

सिले रहे होंठ,
रुन्धा रहा गला।

उसके हाथ
कभी नहीं लगी वह पर्ची,
जिस पर लिखा था, ‘कहो'

-अमृता प्रीतम-

तेरी बुराइयों को

*'कुछ पंक्तिया विचार करने लायक'*

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है।

ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है,l
तू बच्ची को भी हुस्न ए बहार कहता है।

थक गया है हर शख़्स काम करते करते,
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।

गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।

जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है।

वो मिलने आते तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,
अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है।

बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में।
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है।

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है।         

गुरुवार, 9 मार्च 2017

कैसे जीना

*कैसे जीना*

कुछ हँस के
     बोल दिया करो,
कुछ हँस के
      टाल दिया करो,
यूँ तो बहुत
    परेशानियां है
तुमको भी
     मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
     वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
    हंसाने वाला मिले न मिले..
इसलिये आज ही
      हसरत निकाल लिया करो !!
समझौता
      करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा 
      झुक जाना
किसी रिश्ते को
         हमेशा के लिए
तोड़ देने से
           बहुत बेहतर है ।।।
किसी के साथ
     हँसते-हँसते
उतने ही हक से
      रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का
     पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
      रिश्तेदारी और
दोस्ती में
    कैसा मान अपमान ?
बस अपनों के 
     दिल मे रहना
आना चाहिए...!
                                       - गुलज़ार

बुधवार, 8 मार्च 2017

थकी हारी

जब दिन भर की थकी हारी पड़ती हूँ बिस्तर पर
तब थकावट नहीं एक संतुष्टि का भाव उमड़ता है
कि चलो आज का दिन बीत गया हँसते मुस्कुराते
अपनों का जीवन सरल सुगम बनाते बनाते
पैरों की खींचती हुई सी नसें कमर की अकड़न
याद दिलाती हैं कि कैसे चंचल हिरणी की तरह
दौड़ भाग कर सबकी जरूरतें पूरी की
एक संतुष्टि एक खुशी अपनों के लिए
रात बिस्तर पर पडे-पडे भी कल का मैन्यु तय करती हूँ
आहा मैं भी ना कमाल हूँ  मुझसे ही तो मकान घर है ना ……
हे ईश्वर ! तुझे लाखों प्रणाम  कि तूने मुझे स्त्री बनाया
ये संतुष्टि बिन स्त्री बने शायद  ना मिल पाती…………
मैं खुश हूँ मैं स्त्री हूँ ..नाज है मुझे मेरे स्त्रीत्व पर ……
और अपनी हर सहेली पर जो मेरी तरह ही एक स्त्री है.....

बुधवार, 1 मार्च 2017

मारवाड़ी भाषा रो आणंद

-: मारवाड़ी भाषा रो आणंद :-

भाईचारो मरतो दीखे,
पईसां लारे गेला होग्या।

घर सुं भाग गुरुजी बणग्या,
चोर उचक्का चेला होग्या।

चंदो खार कार में घुमे,
भगत मोकळा भेळा होग्या।

कम्प्यूटर रो आयो जमानो,
पढ़ लिख ढ़ोलीघोड़ा होग्या।

पढ़ी-लिखी लुगायां ल्याया
काम करण रा फोङा होग्या ।

घर-घर गाड़ी-घोड़ा होग्या,
जेब-जेब मोबाईल होग्या।

छोरयां तो होती आई पण
आज पराया छोरा होग्या।

राल्यां तो उधड़बा लागी,
न्यारा-न्यारा डोरा होग्या।

इतिहासां में गयो घूंघटो,
पाऊडर पुतिया मूंडा होग्या।

झरोखां री जाल्यां टूटी,
म्हेल पुराणां ढूंढा होग्या।

भारी-भारी बस्ता होग्या,
टाबर टींगर हळका होग्या।

मोठ बाजरी ने कुण पूछे,
पतळा-पतळा फलका होग्या।

रूंख भाडकर ठूंठ लेग्या
जंगळ सब मैदान होग्या।

नाडी नदियां री छाती पर
बंगला आलीशान होग्या।

मायड़ भाषा ने भूलग्या,
अंगरेजी का दास होग्या।

पूण कका रा आवे कोनी,
ऐमे बी.ए. पास होग्या।

सत संगत व्यापार होग्यो,
बिकाऊ ए भगवान होग्या।

आदमी रा नाम बदलता आया,
देवी देवता रा नाम बदलग्या।

भगवा भेष ब्याज रो धंधो,
धरम बेच धनवान होग्या।

ओल्ड बोल्ड मां बाप होग्या,
सासु सुसरा चौखा होग्या।

सेवा रा सपनां देख्या पण
आंख खुली तो धोखा होग्या।

बिना मूँछ रा मरद होग्या,
लुगायां रा राज होग्या।

दूध बेचकर दारू ल्यावे,
बरबादी रा साज होयग्या।

तीजे दिन तलाक होयग्यों,
लाडो लाडी न्यारा होग्या।

कांकण डोरां खुलियां पेली,
परण्या बींद कंवारा होग्या।

बिना रूत रा बेंगण होग्या,
सियाळा में आम्बा होग्या।

इंजेक्शन सूं गोळ तरबूज,
फूल-फूल कर लम्बा होग्या।

दिवलो करे उजास जगत में,
खुद रे तळे अंधेरा होग्या।

मन मरजीरा भाव होग्या,
पंसेरी रा पाव होग्या ।

थे पढ़र मजो ल्यो, और आगै भेजो ओ सन्देशो तो जरूर नवो होसी ।

घणा घणा रामरामसा          

सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

विभत्स हूँ... विभोर हूँ...

विभत्स हूँ... विभोर हूँ...
मैं समाधी में ही चूर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

घनघोर अँधेरा ओढ़ के...
मैं जन जीवन से दूर हूँ...
श्मशान में हूँ नाचता...
मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

साम – दाम तुम्हीं रखो...
मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

चीर आया चरम में...
मार आया “मैं” को मैं...
“मैं” , “मैं” नहीं...
”मैं” भय नहीं...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

जो सिर्फ तू है सोचता...
केवल वो मैं नहीं...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मैं काल का कपाल हूँ...
मैं मूल की चिंघाड़ हूँ...
मैं मग्न...मैं चिर मग्न हूँ...
मैं एकांत में उजाड़ हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मैं आग हूँ...
मैं राख हूँ...
मैं पवित्र राष हूँ...
मैं पंख हूँ...
मैं श्वाश हूँ...
मैं ही हाड़ माँस हूँ...
मैं ही आदि अनन्त हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मुझमें कोई छल नहीं...
तेरा कोई कल नहीं...
मौत के ही गर्भ में...
ज़िंदगी के पास हूँ...                       
अंधकार का आकार हूँ...
प्रकाश का मैं प्रकार हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

मैं कल नहीं मैं काल हूँ...
वैकुण्ठ या पाताल नहीं...
मैं मोक्ष का भी सार हूँ...    
मैं पवित्र रोष हूँ...
मैं ही तो अघोर हूँ...

*मैं शिव हूँ।*  *मैं शिव हूँ।* *मैं शिव हूँ।*

*अग्रिम शुभकामनाये
*महाशिवरात्रि महापर्व की *

कभी- कभी  तो दिल की भी मान लिया कर!

कभी- कभी  तो दिल की भी मान लिया कर!

गिरधर दान रतनू दासोड़ी

कभी- कभी तो दिल की भी मान लिया कर!
मुरझे हुए चेहरों पर भी मुस्कान दिया कर!!

निष्ठुरता से बने रिस्ते भी भूल जाते हैं लोग!
उत्साह उमंगों की तरंगों का छात तान लिया कर!!

अपनी मस्ती में मस्त में  रहना भी ठीक नहीं यार!
कभी कभी दूसरों के देख अरमान लिया कर!!

लोगों की बातों का क्या ?वो होती रहती है!
अपनी  बातों को सुनाने की कभी ठान लिया कर!!

ये जो चमक दिखाई दे रही है चौंधियाती सी!
ऊपर के मुखौटे भी कभी तो पहचान लिया कर!!

अखबारों की कतरनों पर इठलाने की मत कर!
हकीकत धरातल की सत्यता भी जान लिया कर!!

ज्यादा तानने से जंजीरें भी टूट जाती है यार!
दूसरों के भावों को भी कभी तो सम्मान दिया कर!!

पस्त करने की मंशा से हौंसले पस्त नहीं होते!!
ऐसे में रतनू जोश से जूझने की ठान लिया कर!!

गिरधर दान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

खुद के अवगुण खोजिये.

खुद के अवगुण खोजिये. ,
दूजै के गुण देख. !!
जदे सारथक जांणिये. ,
साचो जीवन शेख. !!1!!

अवगुण देखे और के. ,
तब कां मिळसी तोय. !!
परनिन्दा कज्ज प्रांणिया ,
हांण तिहारी होय  !!2!!

जो तूं चाहै जगत में. ,
भल्ल हुवै तव भाग. !!
श्रीहरी ने समरतां  ,
तन मन अवगुण त्याग. !!3!!

हेत राख भजिये हरी  ,
तजिये दोष तमाम. !!
लगन धार मन लीजिये. ,
रजिये ऐको राम. !!4!!

ध्यान राख नह धोविये  ,
मिनखां तणो ज मेल. !!
परनिन्दा तणें पाप सूं  ,
खोटा होसी खेल. !!5!!
मीठा मीर डभाल

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

ऐ मेरे स्कूल मुझे, जरा फिर से तो बुलाना.

*ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना..*

कमीज के बटन
ऊपर नीचे लगाना,
वो अपने बाल
खुद न काढ़ पाना,
पी टी शूज को
चाक से चमकाना,
वो काले जूतों को
पैंट से पोंछते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो बड़े नाखुनों को
दांतों से चबाना,
और लेट आने पर
मैदान का चक्कर लगाना,
वो प्रेयर के समय
क्लास में ही रुक जाना,
पकड़े जाने पर
पेट दर्द का बहाना बनाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो टिन के डिब्बे को
फ़ुटबाल बनाना,
ठोकर मार मार कर
उसे घर तक ले जाना,
साथी के बैठने से पहले
बेंच सरकाना,
और उसके गिरने पे
जोर से खिलखिलाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

गुस्से में एक-दूसरे की
कमीज पे स्याही छिड़काना,
वो लीक करते पेन को
बालों से पोंछते जाना,
बाथरूम में सुतली बम पे
अगरबत्ती लगाकर छुपाना,
और उसके फटने पे
कितना मासूम बन जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे'*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो Games Period
के लिए Sir को पटाना,
Unit Test को टालने के लिए
उनसे गिड़गिड़ाना,
जाड़ो में बाहर धूप में
Class लगवाना,
और उनसे घर-परिवार के
किस्से सुनते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना...*

वो बेर वाली के बेर
चुपके से चुराना,
लाल–पीला चूरन खाकर
एक दूसरे को जीभ दिखाना,
खट्टी मीठी इमली देख
जमकर लार टपकाना,
साथी से आइसक्रीम खिलाने
की मिन्नतें करते जाना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो लंच से पहले ही
टिफ़िन चट कर जाना,
अचार की खुशबू
पूरे Class में फैलाना,
वो पानी पीने में
जमकर देर लगाना,
बाथरूम में लिखे शब्दों को
बार-बार पढ़के सुनाना...

ऐ मेरे स्कूल मुझे,
जरा फिर से तो बुलाना...

वो Exam से पहले
गुरूजी के चक्कर लगाना,
लगातार बस Important
ही पूछते जाना,
वो उनका पूरी किताब में
निशान लगवाना,
और हमारा ढेर सारे Course
को देखकर सर चकराना...

* ऐ मेरे स्कूल मुझे,*
*जरा फिर से तो बुलाना...*

वो मेरे स्कूल का मुझे,
यहाँ तक पहुँचाना,
और मेरा खुद में खो
उसको भूल जाना,
बाजार में किसी
परिचित से टकराना,
वो जवान गुरूजी का
बूढ़ा चेहरा सामने आना...
तुम सब अपने स्कूल
एक बार जरुर जाना...

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

अजनबी होता शहर देखा

बेगाने होते लोग देखे,
अजनबी होता शहर देखा
हर इंसान को यहाँ,
मैंने खुद से हीं बेखबर देखा।

रोते हुए नयन देखे,
मुस्कुराता हुआ अधर देखा
गैरों के हाथों में मरहम,
अपनों के हाथों में खंजर देखा।

मत पूछ इस जिंदगी में,
इन आँखों ने क्या मंजर देखा
मैंने हर इंसान को यहाँ,
बस खुद से हीं बेखबर देखा।

दुनिया की भीड़ में खो जाते है

बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं

अपनी जान से ज़्यादा प्यारा desk top छोड़ कर
अलमारी के ऊप र धूल खाता गिटार छोड़ कर
Gym के dumbles, और बाकी gadgets
मेज़ पर बेतरतीब पड़ी worksheets, pens और pencils बिखेर कर
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं

मुझे ये colour /style पसंद नहीं
कह कर brand new शर्ट अलमारी में छोड़ कर
Graduation ceremony का सूट, जस का तस
पुराने मोज़े, बनियान , रूमाल, (ये भी कोई सहेज़ के रखने वाली चीज़ है )
सब बेकार हम समेटे हैं, उनको परवाह नहीं
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनियां की भीड़ में खो जाते हैं

जिस तकिये के बिना नींद नहीं आती थी
वो अब कहीं भी सो जाते हैं
खाने में नखरे दिखाने वाले अब कुछ भी खा कर रह जाते हैं
अपने room के बारे में इतनेpossessive होने वाले
अब रूम share करने से नहीं हिचकिचाते
अपने career बनाने की ख्वाहिश में
बेटे भी माँ बाप से बिछड़ जाते हैं
दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं

घर को मिस करते हैं, पर कहते नहीं
माँ बाप को 'ठीक हूँ 'कह कर झूठा दिलासा दिलाते हैं
जो हर चीज़ की ख्वाहिशमंद होते थे
अब  'कुछ नहीं चाहिए' की रट लगाये रहते हैं
जल्द से जल्द कमाऊ पूत बन जाने की हसरत में
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
दुनियां की भीड़ में खो जाते हैं

हमें पता है,
वोअब वापस नहीं आएंगे, आएंगे तो छुट्टी मनाने
उनके करियर की उड़ान उन्हें दूर कहीं ले जाएगी
फिर भी हम रोज़ उनका कमरा साफ़ करते हैं
दीवारों पर चिपके पोस्टर निहारते हैं
संजोते हैं यादों में उन पलों को,
जब वो नज़दीक थे, परेशान करते थे
अब चाह कर भी वो परेशानी नसीब में नहीं
क्योंकि
बेटे भी बेटियों की तरह घर छोड़ जाते हैं
दुनियां की भीड़ में खो जाते हैं

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

दांतों फंसी सुपारी

*गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं । दांतों फंसी सुपारी हो गए हैं ।।*

*महकमा सारा हमको ढूँढता है।*
*हम संक्रामक बीमारी हो गए हैं ।।*

*इसे चमचागिरी की हद ही कहिये।*
*कई शिक्षक अधिकारी हो गए हैं ।।*

*अब वे अकेले  कईयों को नचाते हैं ।*
*और हम टीचर से मदारी हो गए हैं ।।*

*उन्हें अब चाक डस्टर से क्या मतलब ।*
*जो ब्लॉक/संकुल प्रभारी हो गए हैं ।।*

*कमीशन इसमें,उसमें, इसमें भी दो।*
*हम दे-दे कर भिखारी हो गए हैं ॥*

*मिला है MDM का चार्ज जबसे ।*
*गुरुजी भी भंडारी हो गए हैं ॥*

*बी ई ओ ऑफिस को मंदिर समझ कर ।*
*कई टीचर पुजारी हो गए हैं ॥*

*पढ़ाने से जिन्हें मतलब नहीं है ।*
*वो प्रशिक्षण प्रभारी हो गए हैं ॥*

*खटारा बस बनी शिक्षा व्यवस्था ।*
*और हम लटकी सवारी हो गए हैं ।*                               *स्कूलों में पढ़ाने नहीं दे रही  सरकार ।*                             *केवल डाक देने और लेने वाले डाकिया हो गये ।*          *स्कूलों में चारदीवार नहीं होने से ।*                               *जानवरोँ द्वारा फैलाई गंदगी साफ करने वाले ।*                *सफाई कर्मचारी हो गए ।*     *हक की लड़ाई लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है ।*                                          *शिक्षक अब गुरु नहीं रहे केवल सरकारी गुलाम रह गए ।।।।*                               *अब विभाग ई-अटेंडेंस से हमारी निगरानी करेगा ।।।*    *मानो हम "शिक्षक" नहीं, "मोस्ट वांटेड अपराधी" हो गए ।।।*

खुशनुमा

दिल की देहरी  से

आलमे खुशनुमा हो गया
कोई फिर बदगुमां हो गया

सर झुका आया हूँ सजदे में
फर्ज मेरा अदा हो गया

लोग किसको मनाने निकले
कौन खुद से ख़फा हो गया

मंजिले पास आई तभी
दरमियाँ फासला हो गया

बोलते देख कर आईने
तूं क्यों बेजुबाँ हो गगया

©©©©©©©
रतन सिंह चंपावत कृत

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

उलझनों और कश्मकश में..

उलझनों और कश्मकश में..
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ..

ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए..
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का ...
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l

चल मान लिया.. दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक..
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक ...
मुझे क्या फ़िक्र.., मैं कश्तीया और दोस्त... बेमिसाल लिए बैठा हूँ...

रविवार, 29 जनवरी 2017

सौ गुना बढ़ जाती है खूबसूरती

एक कवि ने क्या खूब लिखा है:-

सौ गुना बढ़ जाती है खूबसूरती,
महज़ मुस्कराने से,

फिर भी बाज नही आते लोग,
मुँह फुलाने से ।

ज़िन्दगी एक हसीन ख़्वाब है ,
जिसमें जीने की चाहत होनी चाहिये।

ग़म खुद ही ख़ुशी में बदल जायेंगे,
सिर्फ मुस्कुराने की आदत होनी चाहिये।

मंजिल तुमसे दूर नहीं

पावों में यदि जान हो तो

मंजिल तुमसे दूर नहीं।

आँखों में यदि पहचान हो, तो
                   
इंसान तुमसे दूर नहीं।

दिल में यदि स्थान हो तो
                    
अपने तुमसे दूर नहीं।

भावना में यदि जान हो, तो
                   
भगवान तुमसे दूर नहीं।

एक सच्चाई और

परिवार के मालिक नही,माली बनकर रहो

जीवन खुशियों से हरा भरा रहेगा...

 

पद्मिनी का प्रेम

*पद्मिनी का प्रेम*
- *डॉ. गजादान चारण 'शक्तिसुत'*

सुंदरता खुद जिससे मिलकर, सुंदरतम हो आई थी।
जिसके मन मंदिर में अपने, पिय की शक्ल समाई थी।

शील, पतिव्रत की दुनिया को, जिसने सीख सिखाई थी।
जौहर की ज्वाला में जलकर, जिसने जान लुटाई थी।

सदियों के गौरव को जिसने, अम्बर तक पहुंचाया था।
स्वाभिमान को शक्ति देकर, खिलजी से भिड़वाया था।

जीते जी राणा को चाहा, और चाह ना उसकी थी।
सत-पथ पे चलती थी हरदम, सत पे जीती मरती थी।

चित्तौड़ दुर्ग की वह महारानी, रति से सुंदर दिखती थीं।
उर्वशी, रम्भा सी परियां, नहीं एक पल टिकती थीं।

कामदेव भी जिसे देखकर, विचलित सा हो जाता था।
अलाउद्दीन खिलजी उसको ही, हुरम बनाना चाहता था।

पर वो राजपूत की बेटी, प्रण की बड़ी पुजारी थी।
पति के सिवा उसे दुनिया में, कोई चीज न प्यारी थी।

खिलजी की तो उस पदमण पर, परछाई भी नहीं पड़ी।
लाज बचाने के खातिर वो, अग्निकुंड में कूद पड़ी।

मर के अमर हुई महारानी, तीर्थ बनी चित्तौड़ धरा।
उज्ज्वल क्षत्री वंश हुआ और राजस्थानी वसुंधरा।

उसको कामी खिलजी की ये, आज प्रेमिका कहते हैं।
हैरत है ये अर्थपुजारी, इस भारत में रहते हैं।

जिनका धर्म इमां पैसा है, वे क्या जाने मर्यादा।
पैसा लेकर जहां प्यार को, कर लेते आधा आधा।

राजस्थानी कुल-कानी को, समझे ऐसी सोच कहाँ।
प्रगतिवाद के इन पुतलों में, मानवता का लोच कहाँ।

गर इतिहास हुआ खंडित तो, पीछे कुछ ना बच पाएगा।!!
संस्कृति का अमृत निर्झर, जहर सना हो जाएगा।

हर गौरव की थाती को ये, मनोविनोदी ले लेंगे।
और उसे विकृत कर करके, फिल्मकहानी गढ़ लेंगे।

अब पानी सर पर है आया, उठ पतवार संभालो तुम।
डूब न जाए अर्थ-समंद में, ये इतिहास बचालो तुम।

मेरे भारत के युवाओ! इक रानी की बात नहीं।
पद्मिनी हो या जोधा को, फिल्माने की बात नहीं।

बात सिर्फ है स्वाभिमान की, सत्य सनातन वो ज्योती।
उसपे घात करे कोई तो, हमसे सहन नहीं होती।
डॉ. गजादान चारण 'शक्तिसुत'

शनिवार, 28 जनवरी 2017

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिया करो

अपनी गृहस्थी को कुछ
इस तरह बचा लिया करो
कभी आँखें दिखा दी
कभी सर झुका लिया करो

आपसी नाराज़गी को लम्बा
चलने ही न दिया करो
वो न भी हंसें तो
तुम मुस्करा दिया करो

रूठ कर बैठे रहने से
घर भला कहाँ चलते हैं
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया
कभी तुम मना लिया करो

खाने पीने पे विवाद
कभी होने ही  न दिया करो
कभी गरम खा ली
कभी बासी से काम चला लिया करो

मीयां हो या बीबी
महत्व में कोई भी कम नहीं
कभी खुद डॉन बन गए
तो कभी उन्हें बॉस बना दिया करो

अपनी गृहस्थी को कुछ
इस तरह बचा लिया करो...

Dedicated to  All Couples