शनिवार, 14 जनवरी 2017

आदमी की औकात

बिलकुल सत्य दोहा है ।

एक माचिस की तिल्ली,
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात !!!!*

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया ,
अपनी सारी ज़िन्दगी ,
परिवार के नाम कर गया।
कहीं रोने की सुगबुगाहट  ,
तो कहीं फुसफुसाहट ,
....अरे जल्दी ले जाओ
कौन रखेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!*

मरने के बाद नीचे देखा ,
नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ  ज़बरदस्ती
रो रहे थे।
नहीं रहा.. ........चला गया..........
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!!*

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा ,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी ......
अखबार में
अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे ,
जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात !!!!!!*

जिन्दगी भर ,
मेरा- मेरा- मेरा  किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जीया ...
कोई न देगा साथ...जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका
ले जाने की भी
है हमारी औकात   ???

*ये है हमारी औकात*  फिर घमंड कैसा ?  ✍

अनवरत बहती धारा में .

अति सुंदर पंक्तियां -

समय की .. इस अनवरत बहती धारा में ..
अपने चंद सालों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

जिंदगी ने .. दिया है जब इतना .. बेशुमार यहाँ ..
तो फिर .. जो नहीं मिला उसका हिसाब क्या रखें .. !!

दोस्तों ने .. दिया है .. इतना प्यार यहाँ ..
तो दुश्मनी .. की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

दिन हैं .. उजालों से .. इतने भरपूर यहाँ ..
तो रात के अँधेरों का .. हिसाब क्या रखे .. !!

खुशी के दो पल .. काफी हैं .. खिलने के लिये ..
तो फिर .. उदासियों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

हसीन यादों के मंजर .. इतने हैं जिंदगानी में ..
तो चंद दुख की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !!

मिले हैं फूल यहाँ .. इतने किन्हीं अपनों से ..
फिर काँटों की .. चुभन का हिसाब क्या रखें .. !!

चाँद की चाँदनी .. जब इतनी दिलकश है ..
तो उसमें भी दाग है .. ये हिसाब क्या रखें .. !!

जब खयालों से .. ही पुलक .. भर जाती हो दिल में ..
तो फिर मिलने .. ना मिलने का .. हिसाब क्या रखें .. !!

कुछ तो जरूर .. बहुत अच्छा है .. सभी में यारों ..
फिर जरा सी .. बुराइयों का .. हिसाब क्या रखें .. !!!

रविवार, 8 जनवरी 2017

इंसान

*कमियाँ तो मुझमें भी बहुत है,*
                      *पर मैं बेईमान नहीं।*

*मैं सबको अपना मानता हूँ,*
     *सोचता फायदा या नुकसान नहीं।*

*एक शौक है ख़ामोशी से जीने का,*
           *कोई और मुझमें गुमान नहीं।*

*छोड़ दूँ बुरे वक़्त में दोस्तों का साथ,*
                  *वैसा तो मैं इंसान नहीं।*

शनिवार, 7 जनवरी 2017

कुहरे में डूबी है सुबह

कुहरे में डूबी है सुबह ,
जी भर के जी लें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||

मिल-बैठ सुनें ज़रा आओ ,
मौसम की आहट |
ठण्डे हैं पड़ गए रिश्ते ,
भर दें गरमाहट |
मौका है चलो दें निकाल ,
कटुता की कीलें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||

फिर से इशारों में खेलें ,
प्यार वाला खेल |
जो कुछ भी मन में है दबा ,
सब कुछ दें उड़ेल |
मन से हो मन का संवाद ,
होंठों को सी लें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||

जितने भी हैं शिकवे-गिले ,
बिसरायें सारे |
रात के आँचल में मिलकर ,
टाँक दें सितारे |
गहरा न जाये अन्धकार ,
जला दें कंदीलें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें |सुप्रभात

रविवार, 1 जनवरी 2017

जीवन पथ

इस साल के अंतिम दिन पर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की चन्द अनमोल पंक्तियॉ...

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद

साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद....

नया साल आपके और आपके समस्त परिजनों के लिये मंगलमय हो!!

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

बीवी कपडे  वाले की....व्यंग्य

*बीवी कपडे  वाले की*....व्यंग्य का आनंद लें.
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हाय राम हमारी किस्मत तो,
लगता है एकदम सो गई है;
जबसे मेरी शादी,
एक अध्यापक जी से हो गई है।

सुबह 7 बजे घर से निकलें, ढाई बजे आ जाते हैं;
घर पड़े पड़े फिर पूरा दिन वह,
मुझपे हुकुम चलाते हैं।

भगवान बनाया क्यों मुझे, एक बीवी टीचिंग वाले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।

सुबह के निकले सैँया जी, देर रात घर आएंगे;
बिना किसी झगड़े दंगे,
दो पैग लगा सो जाएंगे

गजब निराली माया होगी, व्हिस्की औ रम के प्याले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।
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*कपडे वाले* जीवन जीते, पत्नी रोमाँस मे;
वीस हजार खर्च करें,
पत्नी के मेंटिनेन्स मे।

पतिदेव की कमाई
जैसे जैसे बढ़ती जायेगी;
सच कहती हूँ सुंदरता,
मेरी और निखरती जायेगी।

परवाह नहीं बनाना मुझको,
गोरे की या काले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।
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जब मेरा जी ना चाहे,
मै खाना नही बनाऊँगी;
पतिदेव से कहके,
खाना होटल से मंगवाऊँगी।

बैठके पीछे बाईक पर,
हर हफ्ते पिक्चर जाऊँगी,
जीन्स टाप सब ब्रैण्डेड सैण्डल,
पैंट पहन इतराऊँगी।

शकल देखना चाहूं न मै, साड़ी शाल दुशाले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले* की।।
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*कपडे वाले* हद से ज्यादा,
बीवी की केयर करते हैं;
बड़े बड़े अफसर तक भी, अपनी बीवीजी से डरते हैं।

कभी कभी गलती से ही, बीवी पर गुस्सा खाते हैं;
थोडा आँख दिखा दो तो, तुरंत ही घबरा जाते हैं।

बत्ती गुल हो जाती है, अच्छे अच्छे किस्मत वाले की;
अगले जनम मे मुझे बनाना,
बीवी *कपडे वाले*की।।
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पर अगले जनम तक इन्तज़ार करना ,
भी मुश्किल हो जायेगा; *कपडे वाले*की खातिर, यह दिल पागल ही हो जायेगा।

अगर इसी जनम मे मिल जाए,
कोई *कपडे वाला* इस साधक को;
सच कहती हूँ छोड़ भगूंगी, इस पगले अध्यापक को।

परवाह नहीं बनाना मुझको,
गोरे की या काले की;
अगले जनम मे मुझे , बीवी बनाना *कपडे वाले की*।।
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अगले जनम मे मुझे बनाना, बीवी *कपडे वाले की*।।

याद

वो    जिसे  भूलने में ज़माने लगे।
फिर मुझे याद आकर सताने लगे।

लो   सितारे  हँसे   फूल  गाने  लगे।
वादियों   में  नया  घर बसाने  लगे।
 
अब मुझे छोड़कर वो ख़फा हो चले।
फिर  मनाने  में उनको  ज़माने लगे।

लौटकर आऊँगा कह गया वो मुझे ।
देखकर  अब  नज़र भी हटाने लगे।

तीर   दीपा नज़र  के  चलाए   मगर ।
उसकी आँखों में  भी सौ बहाने लगे ।

⚱⚱दीपा परिहार⚱⚱

दिल दुखाना

नही चाहिये दिल दुखाना किसी का,
सदा ना रहा है सदा ना रहेगा,
जमाना किसी का॥॥

आयेगा बुलावा तो जाना पड़ेगा,
सर तुझ को आखिर झुकाना पड़ेगा,
वहाँ ना चलेगा बहाना किसी का।
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

शोहरत तुम्हारी बह जायेगी ये,
दौलत यही पर रह जायेगी ये,
नही साथ जाता खजाना किसी का,
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

पहले तो तुम अपने आप को सम्भलौ,
हक है नही तुमको बुराई औरों मे निकालो,
बुरा है बुरा जग मे बताना किसी का,
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

दुनिया का गुलशन सदा ही रहेगा,
ये जहाँ मे लगा ही रहेगा,
आना किसी का जग मे जाना किसी का,
नही चाहिये दिल दुखाना किसी का॥॥

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

कुछ हँस के बोल दिया करो,

कुछ हँस के
     बोल दिया करो,
कुछ हँस के
      टाल दिया करो,
यूँ तो बहुत
    परेशानियां है
तुमको भी
     मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
     वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
    हंसाने वाला मिले न मिले..
इसलिये आज ही
      हसरत निकाल लिया करो !!
समझौता
      करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा 
      झुक जाना
किसी रिश्ते को
         हमेशा के लिए
तोड़ देने से
           बहुत बेहतर है ।।।
किसी के साथ
     हँसते-हँसते
उतने ही हक से
      रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का
     पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
      रिश्तेदारी और
दोस्ती में
    कैसा मान अपमान ?
बस अपनों के 
     दिल मे रहना
आना चाहिए...!
                           

मिलते जुलते रहा करो


         *मिलते जुलते रहा करो*
       
        धार वक़्त की बड़ी प्रबल है,
        इसमें लय से बहा करो,
        जीवन कितना क्षणभंगुर है,
        मिलते जुलते रहा करो।

        यादों की भरपूर पोटली,
        क्षणभर में न बिखर जाए,
        दोस्तों की अनकही कहानी,
        तुम भी थोड़ी कहा करो।

        हँसते चेहरों के पीछे भी,
        दर्द भरा हो सकता है,
        यही सोच मन में रखकर के,
        हाथ दोस्त का गहा करो।

        सबके अपने-अपने दुःख हैं,
        अपनी-अपनी पीड़ा है,
        यारों के संग थोड़े से दुःख,
        मिलजुल कर के सहा करो।

        किसका साथ कहाँ तक होगा,
        कौन भला कह सकता है,
        मिलने के कुछ नए बहाने,
        रचते-बुनते रहा करो।

        मिलने जुलने से कुछ यादें,
        फिर ताज़ा हो उठती हैं,
        इसीलिए यारों नाहक भी,
        मिलते जुलते रहा करो।

   

जीवन यादों की पुस्तक

"धीरे धीरे उम्र कट जाती हैं!
"जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है!

"कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है!
"और कभी यादों के सहारे जिंदगी कट जाती है!

"किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते!
"फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते!

"जी लो इन पलों को हंस के दोस्त!
"फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं  आते!!

गर्मी

बचपन में देखा कि गर्मी ऊन में होती है...

स्कूल में पता चला गर्मी जून में होती है...

पापा ने बताया, कि गर्मी खून में होती है...

बहुत ज़िंदगी में थपेढ़े खाये तब पता चला कि,
गर्मी ना खून,
ना जून,
ना ऊन में होती है...

जनाब,
गर्मी तो *"जुनून"* में होती है...

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

खूबसूरती

खूबसूरती :

हर किसी को अपनी खूबसूरती पर घमण्ड होता है | मै आज
आपको खूबसूरती की परिभाषा बताता हूँ

खूबसूरत है वो लब......
जिन पर, दूसरों के लिए कोई दुआ आ जाए !!

खूबसूरत है ............वो दिल जो ,
किसी के दुख मे शामिल हो जाए !!

खूबसूरत है.......... वो जज़बात जो,
दूसरो की भावनाओं को समझ जाए !!

खूबसूरत है........ वो एहसास जिस मे,
प्यार की मिठास हो जाए !!

खूबसूरत है............. वो बातें जिनमे,
शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ !!

खूबसूरत है.......... वो आँखे जिनमे,
किसी के खूबसूरत ख्वाब समा जाए !!

खूबसूरत है .........वो हाथ जो
किसी के लिए .मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए !!

खूबसूरत है..........वो सोच जिस मैं,
किसी कि सारी...... ख़ुशीछुप जाए !

खूबसूरत है............. .... वो दामन जो,
दुनिया से किसी के गमो को छुपा जाए !

खूबसूरत है.......वो आसूँ जो,
किसी और के गम मे बह जाए

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

मंदी में पति की लिखी एक कविता अपनी पत्नी को.....

*मंदी में पति की लिखी एक कविता अपनी पत्नी को..........!!!*

प्रिय क्यूँ तुम नए-नए
सूट सिलाती हो !

पुरानी साडी में भी तुम
अप्सरा सी नजर आती हो !!!

इन ब्यूटी पार्लरों के
चक्करों में ना पडा करो !

अपने चांद से चेहरे को
क्रीम पाउडर से यूँ ना ढका करो !!

रेस्टोरेंट होटल के खाने में क्या रखा है !

तुम्हारे हाथों से बना घर का खाना,
इनसे लाख गुना अच्छा है !!!

इन सैर सपाटों में वो बात कहाँ !

तुम्हारे मायके जैसा
ऐशो-आराम कहाँ !!!

नौकरों से खिटपिट में,
मत सेहत तुम अपनी खराब करो !

झाडू-पौछा लगा
हल्का सा व्यायाम करो !!!

सोने-चांदी में मिलती
अब सो सो खोट है !

तुम्हारी सुन्दरता ही
24 कैरेट प्योर गोल्ड है !!!

माया-माया मत किया कर पगली,
यह तो महा ठगिनी है !

मेरे इस घर-आंगन की तो,
तू ही असली धन लक्ष्मी है !!

        *हैप्पी मंदी*

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

तलाश

दिल की देहरी से
❤❤ कुछ स्पंदन❤❤
यहां बुझी न बुझी तश्नगी वहाँ मेरी
न जाने ले गई मुझ को तलाश कहाँ मेरी

निगाह की जुम्बिश में बयां हुआ सब कुछ
बड़ी़ अदा से पढ़ी उसने दास्ताँ मेरी

शुमार था उसी का नाम मेरे कातिल में
खुली नहीं फिर भी जाने क्यों जुबॉं मेरी

नज़ाकतें जितनी थी नफ़ासतें  उतनी
नसीहतें  हिज़्ब की थी कि रायगाँ मेरी

चढ़ा सुरूर कुछ ऐसा उसकी चाहत का
रही न सालिम फिर ये जि़स्मों ज़ाँ मेरी
©© *रतनसिंह चम्पावत*

Hum Sab Bharatiya Hain , Hum Sab Bharatiya Hain

Hum Sab Bharatiya Hain , Hum Sab Bharatiya Hain
Apni Manzil Ek Hai , Ha Ha Ha Ek Hai , Ho Ho Ho Ek Hai,
Hum Sab Bharatiya Hain
Kashmir Ki Dharti Rani Hai , Sartaj Himalaya Hai
Sadiyon Se Hamne Isko Apne Khoon Se Pala Hai
Desh Ki Raksha Ki Khatir Hum Shamshir Utha Lenge
Hum Shamshir Utha Lenge
Bikhre Bikhre Tare Hain Hum Lekin Jhilmil Ek Hai
Ha Ha Ha Ha Ek Hai, Hum Sab Bharatiya Hain
Mandir Gurudware Bhi Hain Yahan , Aur Masjid Bhi Hai Yahan
Girija Ka Ghadiyal Kahin , Mulla Ki Kahin Hai Azan
Ek Hi Apna Ram Hai , Ek Hi Allah-Tala Hai
Ek Hi Allah-Tala Hai
Rang –Birange Deepak Hain , Lekin Mahfil Ek Hai
Ha Ha Ha Ek Hai , Ho Ho Ho Ek Hai
Hum Sab Bharatiya Hain , Hum Sab Bharatiya Hain !!

 

रिश्तो के  बाज़ार में..

✳कदम  रुक  गए  जब  पहुंचे
      हम  "रिश्तो" के  बाज़ार में..

✳बिक  रहे  थे  रिश्ते,
       खुले  आम  व्यापार  में..

✳कांपते  होठों  से  मैंने  पूँछा,
      "क्या  "भाव'  है  भाई
       इन  रिश्तों  का..?"

✳ दुकानदार  बोला:-

✳ "कौन  सा  लोगे..?

✳ बेटे  का  ..या  बाप  का..?

✳ बहिन  का..या  भाई  का..?

✳ बोलो  कौन  सा  चाहिए..?

✳ इंसानियत  का..या  प्रेम का..?

✳ माँ   का..या   विश्वास का..?

✳बाबूजी   कुछ  तो   बोलो
      कौन.  सा   चाहिए??

✳चुपचाप   खड़े   हो
       कुछ  बोलो  तो  सही...

✳मैंने  डर  कर  पूँछ  लिया
      "दोस्त  का.."

✳दुकानदार  नम  आँखों  से बोला:-

✳"संसार  इसी  रिश्ते
      पर  ही  तो  टिका  है..."

✳माफ़  करना  बाबूजी
      ये  'रिश्ता बिकाऊ नहीं है..

✳इसका  कोई   मोल
       नहीं   लगा   पाओगे,

✳और.  जिस   दिन
       ये   बिक   जायेगा...

✳उस  दिन  ये  संसार   उजड़ जायेगा.....

✌सभी  मित्रों  को  समर्पित..

शनिवार, 17 दिसंबर 2016

औरतें बेहद अजीब होतीं ह

गुलज़ार द्वारा लिखी किताब 'The longest short story of my life with grace' से एक अंश ....

लोग सच कहते हैं -
औरतें बेहद अजीब होतीं है

रात भर पूरा सोती नहीं
थोड़ा थोड़ा जागती रहतीं है
नींद की स्याही में
उंगलियां डुबो कर
दिन की बही लिखतीं
टटोलती रहतीं है
दरवाजों की कुंडियाॅ
बच्चों की चादर
पति का मन..
और जब जागती हैं सुबह
तो पूरा नहीं जागती
नींद में ही भागतीं है

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

हवा की तरह घूमतीं, कभी घर में, कभी बाहर...
टिफिन में रोज़ नयी रखतीं कविताएँ
गमलों में रोज बो देती आशाऐं

पुराने अजीब से गाने गुनगुनातीं
और चल देतीं फिर
एक नये दिन के मुकाबिल
पहन कर फिर वही सीमायें
खुद से दूर हो कर भी
सब के करीब होतीं हैं

औरतें सच में, बेहद अजीब होतीं हैं

कभी कोई ख्वाब पूरा नहीं देखतीं
बीच में ही छोड़ कर देखने लगतीं हैं
चुल्हे पे चढ़ा दूध...

कभी कोई काम पूरा नहीं करतीं
बीच में ही छोड़ कर ढूँढने लगतीं हैं
बच्चों के मोजे, पेन्सिल, किताब
बचपन में खोई गुडिया,
जवानी में खोए पलाश,

मायके में छूट गयी स्टापू की गोटी,
छिपन-छिपाई के ठिकाने
वो छोटी बहन छिप के कहीं रोती...

सहेलियों से लिए-दिये..
या चुकाए गए हिसाब
बच्चों के मोजे, पेन्सिल किताब

खोलती बंद करती खिड़कियाँ
क्या कर रही हो?
सो गयी क्या ?
खाती रहती झिङकियाँ

न शौक से जीती है ,
न ठीक से मरती है
सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

कितनी बार देखी है...
मेकअप लगाये,
चेहरे के नील छिपाए
वो कांस्टेबल लडकी,
वो ब्यूटीशियन,
वो भाभी, वो दीदी...

चप्पल के टूटे स्ट्रैप को
साड़ी के फाल से छिपाती
वो अनुशासन प्रिय टीचर
और कभी दिख ही जाती है
कॉरीडोर में, जल्दी जल्दी चलती,
नाखूनों से सूखा आटा झाडते,

सूखे मौसम में बारिशों को
याद कर के रोतीं हैं
उम्र भर हथेलियों में
तितलियां संजोतीं हैं

और जब एक दिन
बूंदें सचमुच बरस जातीं हैं
हवाएँ सचमुच गुनगुनाती हैं
फिजाएं सचमुच खिलखिलातीं हैं

तो ये सूखे कपड़ों, अचार, पापड़
बच्चों और सारी दुनिया को
भीगने से बचाने को दौड़ जातीं हैं...

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

खुशी के एक आश्वासन पर
पूरा पूरा जीवन काट देतीं है
अनगिनत खाईयों को
अनगिनत पुलो से पाट देतीं है.

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

ऐसा कोई करता है क्या?
रस्मों के पहाड़ों, जंगलों में
नदी की तरह बहती...
कोंपल की तरह फूटती...

जिन्दगी की आँख से
दिन रात इस तरह
और कोई झरता है क्या?
ऐसा कोई करता है क्या?

सच मे, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं..
          -गुलज़ार

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

शब्द

शब्द

शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पावं....
"एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव....
.
"शब्द सम्भाले बोलियेे, शब्द खीँचते ध्यान....
"शब्द मन घायल करेँ, शब्द बढाते मान...
.
"शब्द मुँह से छूट गया, शब्द न वापस आय.....
"शब्द जो हो प्यार भरा, शब्द ही मन मेँ समाएँ....

"शब्द मेँ है भाव रंग का, शब्द है मान महान....
"शब्द जीवन रुप है, शब्द ही दुनिया जहान...

"शब्द ही कटुता रोप देँ, शब्द ही बैर हटाएं...
"शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाए ....

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

गर्व


     *अगर भूल से भी कभी आपको*
           *गर्व हो जाये की मेरे बिना तो*
     *यहाँ काम चल ही नहीं सकता..*
           *तब आप अपने घर की दीवारों पर*
     *टंगी अपने पूर्वजों की तस्वीरों की*
           *तरफ देख लेना तथा सोचना की क्या*
     *उनके जाने से कोई काम रुका है...?*
           *जवाब आपको स्वतः ही मिल जायेगा* 
      *चौरासी लाख योनियों में,*
           *एक इंसान ही पैसा कमाता है।*
     *अन्य कोई जीव कभी भूखा नहीं मरा,*
           *और एक इंसान जिसका कभी पेट नहीं भरा !!*

किरदार बुरा है वो इन्सान बुरा है

"मंदिर"में दाना चुगकर चिड़ियां "मस्जिद" में पानी पीती हैं
मैंने सुना है "राधा" की चुनरी
कोई "सलमा"बेगम सीती हैं                        
एक "रफी" था महफिल महफिल "रघुपति राघव" गाता था
एक "प्रेमचंद" बच्चों को
"ईदगाह" सुनाता था
कभी "कन्हैया"की महिमा गाता
"रसखान" सुनाई देता है
औरों को दिखते होंगे "हिन्दू" और "मुसलमान"
मुझे तो हर शख्स के भीतर "इंसान"
दिखाई देता है...
क्योंकि...
ना हिंदू बुरा है ना मुसलमान बुरा है
जिसका किरदार बुरा है वो इन्सान बुरा है. .

एक चेलेंज

बचपन मे 1 रु. की पतंग के पीछे
२ की.मी. तक भागते थे...
न जाने कीतने चोटे लगती थी...

वो पतंग भी हमे बहोत दौड़ाती थी...

आज पता चलता है,
दरअसल वो पतंग नहीं थी;
एक चेलेंज थी...

खुशीओं को हांसिल करने के लिए दौड़ना पड़ता है...
वो दुकानो पे नहीं मिलती...

शायद यही जिंदगी की दौड़ है ...!!!

जब  बचपन  था,  तो  जवानी  एक  ड्रीम  था...
जब  जवान  हुए,  तो  बचपन  एक  ज़माना  था... !!

जब  घर  में  रहते  थे,  आज़ादी  अच्छी  लगती  थी...

आज  आज़ादी  है,  फिर  भी  घर  जाने  की   जल्दी  रहती  है... !!

कभी  होटल  में  जाना  पिज़्ज़ा,  बर्गर  खाना  पसंद  था...

आज  घर  पर  आना  और  माँ  के  हाथ  का  खाना  पसंद  है... !!!

स्कूल  में  जिनके  साथ  ज़गड़ते  थे,  आज  उनको  ही  इंटरनेट  पे  तलाशते  है... !!

ख़ुशी  किसमे  होतीं है,  ये  पता  अब  चला  है...
बचपन  क्या  था,  इसका  एहसास  अब  हुआ  है...

काश  बदल  सकते  हम  ज़िंदगी  के  कुछ  साल..

.काश  जी  सकते  हम,  ज़िंदगी  फिर  एक  बार...!!

जब हम अपने शर्ट में हाथ छुपाते थे
और लोगों से कहते फिरते थे देखो मैंने
अपने हाथ जादू से हाथ गायब कर दिए
|

✏जब हमारे पास चार रंगों से लिखने
वाली एक पेन हुआ करती थी और हम
सभी के बटन को एक साथ दबाने
की कोशिश किया करते थे |❤

जब हम दरवाज़े के पीछे छुपते थे
ताकि अगर कोई आये तो उसे डरा सके..

जब आँख बंद कर सोने का नाटक करते
थे ताकि कोई हमें गोद में उठा के बिस्तर तक पहुचा दे |

सोचा करते थे की ये चाँद
हमारी साइकिल के पीछे पीछे
क्यों चल रहा हैं |

On/Off वाले स्विच को बीच में
अटकाने की कोशिश किया करते थे |

फल के बीज को इस डर से नहीं खाते
थे की कहीं हमारे पेट में पेड़ न उग जाए |

बर्थडे सिर्फ इसलिए मनाते थे
ताकि ढेर सारे गिफ्ट मिले |

फ्रिज को धीरे से बंद करके ये जानने
की कोशिश करते थे की इसकी लाइट
कब बंद होती हैं |

  सच , बचपन में सोचते हम बड़े
क्यों नहीं हो रहे ?

और अब सोचते हम बड़े क्यों हो गए ?⚡⚡

ये दौलत भी ले लो..ये शोहरत भी ले लो

भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी...

मगर मुझको लौटा दो बचपन
का सावन ....☔

वो कागज़
की कश्ती वो बारिश का पानी..
Bachpan ki storyes

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बचपन कि ये लाइन्स .
जिन्हे हम दिल से गाते
गुनगुनाते थे ..
और खेल खेलते थे ..!!
तो याद ताज़ा कर लीजिये ...!!

▶  मछली जल की रानी है,
       जीवन उसका पानी है।
       हाथ लगाओ डर जायेगी
       बाहर निकालो मर जायेगी।

***********

▶  आलू-कचालू बेटा कहाँ गये थे,
       बन्दर की झोपडी मे सो रहे थे।
       बन्दर ने लात मारी रो रहे थे,
       मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे।

************

▶  आज सोमवार है,
       चूहे को बुखार है।
       चूहा गया डाक्टर के पास,
       डाक्टर ने लगायी सुई,
       चूहा बोला उईईईईई।

**********

▶  झूठ बोलना पाप है,
       नदी किनारे सांप है।
       काली माई आयेगी,
       तुमको उठा ले जायेगी।

**********

▶  चन्दा मामा दूर के,
       पूए पकाये भूर के।
       आप खाएं थाली मे,
       मुन्ने को दे प्याली में।

**********

▶  तितली उड़ी,
       बस मे चढी।
       सीट ना मिली,
       तो रोने लगी।
       ड्राईवर बोला,
       आजा मेरे पास,
       तितली बोली ” हट बदमाश “।

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▶  मोटू सेठ,
       पलंग पर लेट ,
       गाडी आई,
       फट गया पेट

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आज सब अपना बचपन याद करो और अपने मित्र
को send kare```

सलीक़ा

कुए में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकती है,
तो भरकर बाहर आती 

जीवन का भी यही गणित है,
जो झुकता है वह
प्राप्त करता है…

जीवन में किसी का भला करोगे,
तो लाभ होगा…
क्योंकि भला का उल्टा लाभ होता है ।

और

जीवन में किसी पर दया करोगे,
तो वो याद करेगा…
क्योंकि दया का उल्टा याद होता है।

भरी जेब ने ‘ दुनिया ‘ की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ‘ इन्सानो ‘ की.

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,

अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती हैl

किनारे पर तैरने वाली लाश को देखकर ये समझ आया ..
..बोझ शरीर का नही साँसों का था..

सर झुकाने से नमाज़ें अदा नहीं होती…!!!
दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए…

पहले मैं होशियार था,
इसलिए दुनिया बदलने चला था,
आज मैं समझदार हूँ,
इसलिए खुद को बदल रहा हूँ.

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर…
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना.

〰➰➰〰➰➰〰
               प्रेम चाहिये तो
       समर्पण खर्च करना होगा।
            विश्वास चाहिये तो
        निष्ठा खर्च करनी होगी।
              साथ चाहिये तो
        समय खर्च करना होगा।
            किसने कहा रिश्ते
               मुफ्त मिलते हैं ।
    मुफ्त तो  हवा भी नहीं मिलती
       एक साँस भी तब आती है
    जब एक  साँस छोड़ी जाती हे
〰➰➰〰➰➰〰……

शपथ

*सत्य को कहने के लिए किसी,*
          *शपथ की जरूरत नहीं होती।*

*नदियों को बहने के लिए किसी,*
          *पथ की जरूरत नहीं होती।*

*जो बढ़ते हैं जमाने में,*
          *अपने मजबूत इरादों के बल,*

*उन्हें अपनी मंजिल पाने के लिए,*
          *किसी रथ की जरूरत नहीं होती।*