हिन्दी दिवस के सुअवसर पर मेरी कविता "हाँ !मैं ही तो हिन्दी हूँ" के कुछ अंश संक्षिप्त रूप में आपकी सेवा में प्रेषित है। आपसे सविनय निवेदन कि इस वैज्ञानिक भाषा को समृद्ध बनाने हेतु अपना यथा प्रयास करें।
संस्कृत सुता, देवनागरी की रचना
है गौरवमयी इतिहास मेरा।
नन्दन,निराला,भारतेन्दु की जननी
है देववाणी में वास मेरा।।
आदि का रासो, भक्ति मध्य की।
मीरा की प्रीत में सिमटी हूँ।।
हाँ! मैं ही तो हिन्दी हूँ ।
हाँ! मैं ही तो हिन्दी हूँ।
भारतेन्दु, द्विवेदी कई युग मेरे
जागरण, क्रान्ति का शंखनाद मैं।
शंकर, निराला,महादेवी,सुमित्रा के
सौन्दर्य चेतना का अनुराग मैं।।
प्रयोग, प्रगति, छाया, स्वच्छन्दता
सभी युगों को सींचती हूँ।
हाँ! मैं ही तो हिन्दी हूँ।
हाँ !मैं ही तो हिन्दी हूँ।
अर्वाचीन का वसन लपेटे
हिन्द की पहचान हूँ।
राष्ट्रभाषा तो मात्र पद सम
मैं खुद में एक जहान हूँ।
चिन्तन,ओजस्वी नये शिल्पियों संग
अपना पथ मैं गढ़ती हूँ।
हाँ! मैं ही तो हिन्दी हूँ।
हाँ! मैं ही तो हिन्दी हूँ
बलवन्त नेगी
रा0प्रा0वि0 गर्जिया, चौखुटिया
अल्मोड़ा।
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