मंगलवार, 29 मई 2018

धूप सिपाही

धूप सिपाही बन गई  , सूरज थानेदार !
गरम हवाएं बन गईं  , जुल्मी  साहूकार !!
:
शीतलता शरमा  रही , कर घूँघट की ओट !
मुरझाई सी छांव है , पड़ रही लू की चोट  !!
:
चढ़ी दुपहरी हो गया , कर्फ़्यू जैसा हाल !
घर भीतर सब बंद हैं , सूनी है चौपाल !!
:
लगता है जैसे हुए ,   सूरज जी नाराज़ !
आग बबूला हो रहे , गिरा  रहे  हैं गाज !!
:
तापमान यूँ बढ़ रहा , ज्यों जंगल की आग !
सूर्यदेव  गाने  लगे , फिर  से   दीपक  राग !!
:
कूलर हीटर सा लगे , पंखा उगले आग  !
कोयलिया कू-कू करे , उत अमवा के बाग़ !!
:
लिए बीजना हाथ में  , दादी  करे  बयार   !
कूलर और पंखा हुए , बिन बिजली बेकार !!
:
कूए ग़ायब हो गये ,   सूखे  पोखर - ताल !
पशु - पक्षी और आदमी , सभी हुए बेहाल !!
:
धरती व्याकुल हो रही , बढ़ती जाती प्यास !
दूर  अभी  आषाढ़  है , रहने  लगी  उदास  !!
:
सूरज भी औकात में , आयेगा  उस  रोज !
बरखा रानी आयगी , धरती पर जिस रोज !!
:
पेड़ लगाओ पानी बचाओ , कहता सब संसार !
ये देख  चेते नहीं ,तो इक दिन होगा बंटाधार !!!!

मंगलवार, 27 मार्च 2018

आरम्भ है प्रचंड

आरम्भ है प्रचंड,
बोले मस्तकों के झुण्ड,
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन, बान ,शान या की जान का हो दान,
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो
मन करे सो प्राण दे जो,
मन करे सो प्राण ले जो,
वही तो एक सर्व शक्तिमान है
ईश की पुकार है, ये भागवत का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो,
या पांडवो का नीड हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या जिंदगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यों डरे
ये जाके आसमानो में दहाड़ दो
आरम्भ है प्रचंड ….
हो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या की पूरे भाल पर जल रहे विजय का लाल
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या मृदुंग केसरी हो
या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो
जिस कवि की कल्पना में जिंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती नसों में आज, फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो
आरम्भ है प्रचंड ….

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

मेरा सफ़र

मेरा सफ़र ही मुझसे रूठा है
मै मंज़िल की क्या आस करूँ ?
जब आज ही धोखे देता हो
कल पे कैसे विस्वास करूँ ?

जो तुझसे रूठा बैठा है वो सफ़र ना तेरा है राही
वो मंज़िल ना व हमसाया..हमसफ़र ना तेरा है राही
वो प्यारा सा बस लम्हा है .. जो तुझको बाँधे बैठा है
तू राह पकड़ ..तू देर ना कर ..वो डगर ना तेरा है राही

वो लम्हा जीवन राग मेरा
वो चेत  मेरी ,अनुराग मेरा
मै उसके प्रेम का हूँ प्यासा
सावन की अब क्या प्यास करूँ ?
मेरा सफ़र ही मुझसे रूठा है
मैं  मंज़िल की क्या आस करूँ ?

तुम प्यासे हो जिस सागर के
अब उसमे विष है भरा हुआ
तुम माली थे जिन बागों के
बंजर सारा वो धरा हुआ
उठ जाग ज़रा अब मोह ना कर ..ये नगर ना तेरा है राही
वो मंज़िल ना वो हमसाया..हमसफ़र ना तेरा है राही
वो प्यारा सा बस लम्हा है .. जो तुझको बाँधे बैठा है
तू राह पकड़ ..तू देर ना कर ..वो डगर ना तेरा है राही

सोमवार, 22 जनवरी 2018

वाह री जिंदगी

*वाह री जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""
* दौलत की भूख ऐसी लगी की कमाने निकल गए *
* ओर जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए *
* बच्चो के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी *
* ओर जब फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए *
        
वाह री जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""

* जिंदगी की आधी उम्र तक पैसा कमाया*
*पैसा कमाने में इस शरीर को खराब किया *
* बाकी आधी उम्र उसी पैसे को *
* शरीर ठीक करने में लगाया *
* ओर अंत मे क्या हुआ *
* ना शरीर बचा ना ही पैसा *

           *वाह री जिंदगी*
             ""”"""""""""""""""'""""
* शमशान के बाहर लिखा था *
* मंजिल तो तेरी ये ही थी *
* बस जिंदगी बित गई आते आते *
* क्या मिला तुझे इस दुनिया से *
* अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते *
            *वाह री जिंदगी*
              ""”""""""""

बेतहाशा है रफ्तार..

*गैरमुकम्मल सी है ये जिंदगी,
      *और वक्त की बेतहाशा है रफ्तार..

*रात इकाई,
*नींद दहाई
*ख्वाब सैंकडा,
*दर्द हजार....

*फिर भी जिँदगी मजेदार•••!!