शनिवार, 26 अगस्त 2017

सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत

कितना रूप राग रंग
कुसुमित जीवन उमंग!
अर्ध्य सभ्य भी जग में
मिलती है प्रति पग में!

श्री गणपति का उत्सव,
नारी नर का मधुरव!
श्रद्धा विश्वास का
आशा उल्लास का
दृश्य एक अभिनव!
युवक नव युवती सुघर
नयनों से रहे निखर
हाव भाव सुरुचि चाव
स्वाभिमान अपनाव
संयम संभ्रम के कर!
कुसमय! विप्लव का डर!
आवे यदि जो अवसर
तो कोई हो तत्पर
कह सकेगा वचन प्रीत,
‘मारो मत मृत्यु भीत,
पशु हैं रहते लड़कर!
मानव जीवन पुनीत,
मृत्यु नहीं हार जीत,
रहना सब को भू पर!’
कह सकेगा साहस भर
देह का नहीं यह रण,
मन का यह संघर्षण!
‘आओ, स्थितियों से लड़ें
साथ साथ आगे बढ़ें
भेद मिटेंगे निश्वय
एक्य की होगी जय!
‘जीवन का यह विकास,
आ रहे मनुज पास!
उठता उर से रव है,–
एक हम मानव हैं
भिन्न हम दानव हैं!’

               Aj

तकदीर फूलों सी

❤  दिल की देहरी से ..❤
.. कुछ स्पन्दन ..

खरे को मैं खरा कहता रहूंगा
मिले जो भी सजा सहता रहूंगा

जमाना चाहे टुकड़े लाख कर दें
मगर मैं जितना था उतना रहूंगा

चला हूं हवा को थामने अब
पता है ख़ाक सा बिखरा रहूंगा

मेरी तकदीर फूलों सी लिखी है
मैं सड़ते  जिस्मों पर सजता रहूंगा

फकत दरिया हूँ इक अदना-सा मैं तो
किनारे तोड़ कर बहता रहूंगा

उजालों की गरज मुझको नहीं है
अंधेरे सायों से लिपटा रहूंगा

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*CHAMPAWAT*