शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

मेरा सफ़र

मेरा सफ़र ही मुझसे रूठा है
मै मंज़िल की क्या आस करूँ ?
जब आज ही धोखे देता हो
कल पे कैसे विस्वास करूँ ?

जो तुझसे रूठा बैठा है वो सफ़र ना तेरा है राही
वो मंज़िल ना व हमसाया..हमसफ़र ना तेरा है राही
वो प्यारा सा बस लम्हा है .. जो तुझको बाँधे बैठा है
तू राह पकड़ ..तू देर ना कर ..वो डगर ना तेरा है राही

वो लम्हा जीवन राग मेरा
वो चेत  मेरी ,अनुराग मेरा
मै उसके प्रेम का हूँ प्यासा
सावन की अब क्या प्यास करूँ ?
मेरा सफ़र ही मुझसे रूठा है
मैं  मंज़िल की क्या आस करूँ ?

तुम प्यासे हो जिस सागर के
अब उसमे विष है भरा हुआ
तुम माली थे जिन बागों के
बंजर सारा वो धरा हुआ
उठ जाग ज़रा अब मोह ना कर ..ये नगर ना तेरा है राही
वो मंज़िल ना वो हमसाया..हमसफ़र ना तेरा है राही
वो प्यारा सा बस लम्हा है .. जो तुझको बाँधे बैठा है
तू राह पकड़ ..तू देर ना कर ..वो डगर ना तेरा है राही

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